प्रदेश के सबसे बड़े डॉ. आंबेडकर अस्पताल में एक्स-रे व्यवस्था चरमरा गई है। यहां लगीं छह मशीनों में से पांच बंद हैं और मरीज एक के ही भरोसे हैं। उन्हें निजी अस्पतालों में 500 से 1500 रुपये देकर एक्स-रे करवाना पड़ रहा है।
आंबेडकर अस्पताल में रोज तीन से चार सौ मरीज एक्स-रे कराने आते हैं। इनमें गंभीर घायल और भर्ती मरीज शामिल हैं। मशीन खराब होने से मजबूरी में निजी अस्पताल जाकर मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है। वहीं प्रबंधन का कहना है कि तकनीकी खराबी के कारण मशीनें बंद हैं।
जैन समाज ने दी थी मशीन, तीन साल से वह भी बंद
अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां की एडवांस एक्स-रे मशीन, जिसे जैन समाज ने दान स्वरूप दिया था, तीन साल से अधिक समय से बंद पड़ी है। इस मशीन को मरीजों की सुविधा के लिए शुरू करने के लिए न तो अस्पताल प्रशासन ने सर्विसिंग की व्यवस्था की, न ही मेंटेनेंस कराया। नतीजतन, मरीजों को पुरानी और एकमात्र चालू मशीन पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
गरीबों पर दोहरी मार
सरकारी अस्पताल की एक्स-रे मशीनें बंद होने से गरीब और मध्यमवर्गीय मरीजों पर दोहरी मार पड़ रही है। निजी अस्पतालों में एक्स-रे जांच का शुल्क 500 से 1500 रुपये तक है। इतनी रकम जुटाना अधिकांश मरीजों के लिए मुश्किल हो जाता है। कई मरीज आर्थिक तंगी के कारण जांच ही टाल रहे हैं, जिससे इलाज प्रभावित हो रहा है।
कई गंभीर मरीज स्ट्रेचर, व्हीलचेयर पर लाइन में
नईदुनिया की टीम जब गुरुवार को डॉ. आंबेडकर अस्पताल के एक्स-रे विभाग पहुंची तो स्थिति बदतर मिली। सिर्फ एक मशीन के भरोसे 50 से अधिक मरीज और उनके स्वजन पंक्तिबद्ध खड़े थे। कोई स्ट्रेचर पर लेटा था तो कोई व्हीलचेयर पर बैठकर बारी आने का इंतजार कर रहा था। भीड़ और अव्यवस्था के कारण मरीज परेशान हो रहे थे।
दुर्ग से आए लोकेश ने बताया सड़क दुर्घटना में पैर में चोट लगी है, एक घंटे से लाइन में खड़े हैं, अब तक बारी नहीं आई।
कोंडागांव से आए एक मरीज के स्वजन ने कहा हम पहली बार रायपुर आए हैं। किसी तरह पूछताछ करके एक्स-रे रूम तक पहुंचे, लेकिन यहां भी आधे घंटे से ज्यादा हो गया, अभी तक जांच नहीं हुई। मरीज स्ट्रेचर पर है, हालत खराब है