आकाश की ओर नजर उठाकर देखिए. कैसे धवल चांदनी से नहाया हुआ है. कितना स्वच्छ चंद्रमा है और चारों ओर बिखर रहा है सफेद प्रकाश और जिस पर पड़ रहा है, वही वस्तु चांदी सी चमकीली हो उठती है. हालांकि दिल्ली-एनसीआर के आकाश में इसे महसूस कर पाना मुश्किल लग सकता है. पर इस दायरे से बाहर निकलिए तो ऐसे नजारे देखे जा सकते हैं.
रुपहली लकदक सफेदी से नहाई शरद ऋतु की निर्मल रात, जब आसमान में चंद्रमा अपनी सारी 16 कलाओं के साथ दमकता है, इसी रात को “कोजागरी पूर्णिमा” भी कहा जाता है. गुजराती परंपरा में इसे “कोजागरी पुनम” कहा जाता है. यह पर्व केवल धन और समृद्धि की कामना का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण और अंतर्मन की शुद्धि का उत्सव है. मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी आकाश में भ्रमण करती हैं और पुकारती हैं — ‘को जागर्ति’ यानी “कौन जाग रहा है?”
जो जागृत रहते हैं, श्रद्धा और संयम के साथ देवी का ध्यान करते हैं, उन्हें वह धन और सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं.
इस पौराणिक ग्रंथ में दर्ज है कथा
‘सनतकुमार संहिता’ में इस उत्सव से जुड़ी एक रोचक कथा आती है. यह कथा बालखिल्य मुनियों ने एक ब्राह्मण को सुनाई थी. वह कहते हैं कि, ‘प्राचीन मगध देश में वालित नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था. वह विद्वान, परिश्रमी और सज्जन था, लेकिन उसकी पत्नी झगड़ालू और असंवेदनशील थी. एक बार पिता के श्राद्ध के दिन उसने श्रद्धापूर्वक ‘पिंड’ तैयार किया लेकिन उसकी पत्नी ने वह पवित्र पिंड नाली में फेंक दिया. अपमान और क्रोध से भरा वालित घर छोड़कर धन की खोज में निकल पड़ा.
ब्राह्मण को मिला देवी लक्ष्मी का वरदान
चलते-चलते कई दिन बीत गए. एक दिन वन में उसे कालिय नाग की पुत्रियां नागकन्याएं मिलीं. वे ‘कोजागरी व्रत’* रखकर पूरी रात जागरण कर रही थीं. उन्होंने वालित को अपने साथ चौसर खेलने के लिए बुलाया. संयोगवश वह रात ‘आश्विन की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा’ की थी. वालित सब कुछ हार गया, तभी भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी वहां से गुजरे. वालित ने अनजाने में ही व्रत का पालन किया था, इसलिए देवी लक्ष्मी ने उस पर कृपा की और उसे कामदेव के समान सुंदर रूप दिया. नागकन्याओं ने उससे आकर्षित होकर विवाह किया और उसे अपार धन-संपत्ति भी दी. जब वालित घर लौटा, तो उसकी पत्नी भी उसका स्वागत करने लगी.
सनतकुमार संहिता में दर्ज इस कथा का निष्कर्ष ऐसा है कि, ‘जो व्यक्ति कोजागरी पूर्णिमा की रात जागरण करता है, देवी लक्ष्मी उस पर कृपा करती हैं.’
ऋतु परिवर्तन की रात
शरद पूर्णिमा की रात जागरण की रात है. यह ऋतु परिवर्तन की रात है और इस दिन से मौसम बदल जाता है. भागवत पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी इस रात का विशेष वर्णन है. ब्रह्नमवैवर्त पुराण में आता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महा-रास किया था. उनकी अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने खुद उतने रूप धारण किए, जितनी गोपियां थीं, और महा-रास हुआ. लेकिन हर गोपी ने जब अपने साथ श्रीकृष्ण को देखा तो उन्हें अभिमान हुआ कि वही सबसे श्रेष्ठ भक्त हैं और उनके मन में ऐसा भाव आते है श्रीकृष्ण अदृश्य हो गए. श्रीकृष्ण के अदृश्य होते ही चंद्गमा की चमक भी फीकी पड़ गई. शुकदेवजी ने कहा ‘उस शरद पूर्णिमा की रात से अधिक उज्ज्वल रात कभी नहीं हुई, जब स्वयं कृष्ण यमुना तट पर गोपियों के साथ लीला कर रहे थे.’
मन को चंद्र को निहारने की रात
शरद पूर्णिमा मन के चंद्र को निहारने की रात है. यह ऐसे जागरण की रात है, जब मन की स्वच्छता से आकाश में चंद्रमा चमकता है. गोपियों के अज्ञान और अहंकार के अंधकार ने पूर्णिमा को ढक लिया और श्रीकृष्ण के साथ-साथ चंद्रमा भी ओझल हो गया.
‘कोजागरी’ का अर्थ केवल रातभर जागना नहीं है, यह अंतरमन का जागरण है. यह मन की सतर्कता को परखने का दिन है. मनुष्य को चाहिए कि वह लोभ, वासना, मान और अपमान जैसे सांसारिक आकर्षणों को अपने मन में प्रवेश न करने दे.
गीता और भागवत में शरद पूर्णिमा
सफलता या असफलता, सुख या दुःख, किसी भी स्थिति में जो अडिग रहता है, वही सच्चा ‘जागृत’ है. शरद पूर्णिमा की रात जैसे चंद्रमा की कोमल उजास से भर जाती है, वैसे ही साधक को अपने अंतःकरण को निर्मल बनाना चाहिए.
गीता कहती है कि, “जब मनुष्य देह-भाव छोड़कर ब्रह्म-भाव में स्थित होता है, तभी वह परब्रह्म का अनुभव करता है.” वहीं भागवत में जिक्र आता है, “जो जीव अपने शरीर और परिवार के प्रति जैसे आसक्त है, वैसे ही यदि वह गुणातीत संत से आसक्त हो जाए, तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है.
खीर का प्रसाद जो आरोग्य देता है
शरद पूर्णिमा का पारंपरिक प्रसाद है खीर. बिहार में कई जगह इसे दूध में भीगे हुए चिवड़े से बनाते हैं. खीर या चिवड़े को देवी लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है और फिर लोग इसे ग्रहण करते हैं. आयुर्वेद के अनुसार यह ‘पित्त दोष’ को संतुलित करता है, इसलिए इस प्रसाद को ‘आरोग्य का प्रतीक’ भी माना जाता है. कोजागरी पूर्णिमा केवल लक्ष्मी-पूजन की रात नहीं है, यह वह रात्रि है जब हमें अपने भीतर की चेतना को जगाना होता है. माया से ऊपर उठकर सत्य, शांति और आत्मज्ञान की ओर. शरद पूर्णिमा का चंद्र शरद ऋतु का स्वागत करता है.