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समाज में गलत होने की भावना तेजी से फैल रही… ऐसा क्यों बोले RSS प्रमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत विकास परिषद के विकलांग केंद्र के समापन समारोह में कहा कि हर एक शख्स को अहंकार से बचना चाहिए. अगर वो इससे दूर नहीं रहता है तो किसी भी बड़ी मुसीबत में पड़ सकता है. इस बात को समझाने के लिए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने रामकृष्ण परमहंस के विचार का जिक्र किया. उन्होंने ‘पका हुआ मैं’ और ‘कच्चा मैं’ यानी परिपक्व (अनुभवी) और अपरिपक्व( अनुभवहीन) मैं के बारे में बताया.

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उन्होंने कहा कि विश्व में हर शख्स के पास अपार शक्ति है. ये शक्ति उसे समाज की सेवा करने की प्रेरणा भी देती है. लेकिन, वहीं दूसरी ओर उसमें अहंकार भी होता है. आरएसएस प्रमुख ने बताया कि रामकृष्ण परमहंस के अनुसार, शख्स को हमेशा पके हुए ‘मैं’ यानी अनुभव से भरे हुए मैं को पकड़कर रखना चाहिए और कच्चे ‘मैं’ यानी अनुभवहीन मैं को दूर रखना चाहिए. क्योंकि बिना पका हुआ मैं हमेशा ही अहंकार को दर्शाता है. यदि कोई उस कच्चे ‘मैं’ के साथ जीवन में आगे बढ़ता है तो वह गड्ढे में गिर जाएगा.

समाज के हर वर्ग का विकास जरूरी

उन्होंने कहा कि भारत के विकास के लिए समाज के हर वर्ग को सशक्त बनाना जरूरी है. राष्ट्र की प्रगति केवल सेवा तक सीमित नहीं है. बल्कि सेवा का उद्देश्य नागरिकों को देश के विकास में अपनी भूमिका निभाने के लिए सक्षम बनाने पर भी काम करना होगा.

मोहन भागवत ने कहा कि ऐसे सक्षम नागरिक ही देश के विकास में योगदान देंगे. उन्होंने कहा कि ये धारणा बढ़ती जा रही है कि समाज में सब कुछ गलत हो रहा है. हालांकि, हर नकारात्मक पहलू के अलावा समुदाय में 40 गुना अधिक अच्छी और सेवा से जुड़ी महान गतिविधियां भी हो रही हैं.

इन सकारात्मक प्रयासों के बारे में जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है क्योंकि सेवा ही समाज में स्थायी विश्वास को बढ़ावा देती है. निस्वार्थ सेवा तब होती है जब कोई उसमें हमेशा खुशी और संतुष्टि खोजते हैं. ऐसी सोच के जरिए दूसरों की मदद करने की प्रवृत्ति भी बढ़ती है.

उन्होंने कहा कि समाज में कई अच्छी पहल का श्रेय RSS को जाता है और इसके लिए स्वयंसेवकों की सराहना की जानी चाहिए. उन्होंने भारत विकास परिषद के विकलांग केंद्र की सराहना की, जिसने विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों को मॉड्यूलर पैर, कैलिपर और कृत्रिम अंग प्रदान करके उनकी मदद की.

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