Madhya Pradesh: बुंदेलखंड की तकदीर और तस्वीर बदलने वाली है केन -बेतवा लिंक परियोजना, अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में जब देश की 37 नदियों को आपस में जोड़ने का फैसला लिया गया ,उनमे से एक यह भी थी. यह देश की वह परियोजना है जिसे सबसे पहले शुरू होना था. इसका मुख्य बाँध पन्ना टाइगर रिजर्व के ढोडन गाँव में बनना है. अब देश की नदियों को आपस में जोड़कर जल संसाधन बढ़ाने का सपना देखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 दिसंबरको मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में महत्वाकांक्षी केन-बेतवा राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना की आधारशिला रखेंगे.इस परियोजना से सिंचाई का स्थाई समाधान तो होगा साथ ही लाखों लोगों की पीने के पानी की समस्या का भी समाधान होगा.
इस परियोजना का निर्माण दो चरणों में 8 वर्ष में पूर्ण होगा. केन बेतवा परियोजना से राज्य के छतरपुर,पन्ना,टीकमगढ़,निवाड़ी, दमोह,शिवपुरी,दतिया, रायसेन,विदिशा और सागर जिलों को और उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा,झांसी, ललितपुर जिले को लाभ होगा । इन जिलों के किसानों को सिंचाई की बेहतर सुविधाएं मिलने से उनकी फसलोंकी उत्पादकता में वृद्धि होगी और खेती के लिए जल संकट का समाधान होगा।मध्यप्रदेश (8.11 लाख हेक्टेयर) और उत्तर प्रदेश (2.51 लाख हेक्टेयर)में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र में 10.62 लाख हेक्टेयर में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराएगा, इसके अलावा मध्य प्रदेशमें 41 लाख और उत्तर प्रदेश में 21 लाखलोगों को पीने के पानी की समस्या का समाधान होगा.
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— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
बिजावर विधानसभा क्षेत्र के ढोंडन गाँव में बांध बनेगा ,यह एरिया पन्ना टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आता है, इसमें लगभग 9 हजार हेक्टेयर वन भूमि डूबेगी. पहले चरण में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा (288 x 536 मीटर ) एक बांध गंगऊ वियर से लगभग 2.5 किमी दूरी पर केन नदी पर बनेगा ढोंडण बाँध है जल संसाधन से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि ढोढन बाँध तक प्रति वर्ष 6590 एमसीएम पानी आएगा. जिसमे से एम् पी 2350 एमसीएम (83 टीएमसी) का और उत्तर प्रदेश 1700 एमसीएम (60 टीएमसी) का उपयोग करेगा. 2035 एमसीएम शेषजल में से 436 एमसीएम का उपयोग पन्ना और दमोह जिलों के जलाशय से सीधे प्रस्तावित सालेहा लिफ्ट सिंचाई योजना के लिए किया जाना प्रस्तावित है। बिजली उत्पादन के लिए दो पावर हाउस, एक बांध के निचले स्तर में और दूसरा निचले स्तर की सुरंग के आउटलेट पर भी प्रस्तावित है. जिससे 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन होने की उम्मीद जताई गई है। बिजली उत्पादन का एक हिस्सा परियोजना में सूक्ष्म सिंचाई विकसित करने के लिए उपयोग किया जाएगा। लिंक नहर की कुल लंबाई 221 किलोमीटर होगी जिसमें 2 किलोमीटरसुरंग भी शामिल है इस नहर के माध्यम से झाँसी जिले के बरुआ सागर के परीक्षा डेम में पानी छोड़ा जाएगा.
छतरपुर- पन्ना जिले के प्रभावित गाँव.
इस परियोजना के कारण छतरपुर जिले के 14 गांव और पन्ना जिले 11 गांव विस्थापित होंगे. इनमें छतरपुर जिले के भरकुआं,ढोढन खरियानी, कुपी, मैनारी, पलकोंहा, शाहपुरा, सुकवाहा,पाठापुर, नैगुवां, डुंगरिया,कदवारा, घुघरी, बसुधा विस्थापित होंगे. इन विस्थापित गाँव के लोगों को भैंसखार,राइपुरा,नंदगांयबट्टन और किशनगढ़ में बसाया जाएगा. इन चारों स्थानों पर जमीनको चिन्हित कर लिया गया है। पत्रा जिले के गहदरा,कटहरी बिलहटा, मझौली,कोनीऔर डोंडी खमरी, कूडऩऔर मरहा ललार,रमपुरा, जरधोबा और कंडवाहा गांवों विस्थापित किया जाना है. पन्ना जिले के ये सभी गाँव पन्ना टाइगर रिजर्व में बसे हैं इनके विस्थापन के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व को भूमि भी दे दी गई है.पन्ना और छतरपुर जिला प्रशासन के माध्यम से 5 हजार हेक्टेयर जमीन पन्ना टाइगर रिजर्व (पी टी आर) को सौंप दी है। इसमें से 4400 हेक्टेयर छतरपुर जिले में और 600 हेक्टेयर पन्ना जिले में सौंपी गई है. विस्थापन से खाली होने वाली 1300 हेक्टेयर जमीन भी पी टीआर को दी जाएगी.
केन की अविरल धारा
केन नदी म.प्र. के कटनी जिले की कैमूर की पहाड़ी से निकलती है और 427 किमी की दूरी तय करने के बाद उ.प्र. के बांदा जिले में यमुना नदी से मिल जाती है. केन एशिया की ऐसी प्रमुख नदी है जो प्रदूषण से मुक्त मानी जाती है. म.प्र.के रायसेन जिले से निकलने वाली बेतवा नदी 590 किमी की दूरी तय कर उ.प्र.के हमीरपुर जिले में यमुना से मिल जाती है. केन का 28,058 वर्ग किमी और बेतवा का 46,580 वर्ग किमी का भराव क्षेत्र है. केन की कई सहायक नदियों पर कई बाँध और और स्टाप डेम बनने से भी केन की जल धारा प्रभावित हुई है.
केन बेतवा लिंक परियोजना बुंदेलखंड में शुरू होना है इसका इंतजार बुंदेलखंड वासी 2005 -06 से कर रहे हैं. इस परियोजना के निर्माण में अनेकों तरह की बाधाएं भी आई. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा. अनेकों सामाजिक संगठन इसके विरोध में मैदान में उतरे थे. अवरोधों का सबसे बड़ा असर ये हुआ की परियोजना की लागत 8 गुना बढ़ गई. निर्माण कार्य शुरू होने के बाद भी दो चरणों में पूर्ण होने वाली इस योजना के पूर्ण होने में 8 वर्ष का समय लगेगा. परियोजना के लिए अनेकों अवरोधों के बाद अब जमीनी धरातल पर कार्य शुरू होगा. इसके पीछे भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की दृढ़ इक्षा शक्ति मानी जा रही है.