Tulsi Pujan On Christmas 2024: जब पूरा विश्व क्रिसमस के जश्न में डूबा है, वहीं दिल्ली के साकेत में हर साल की तरह इस बार भी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन का आयोजन किया गया. इस आयोजन में स्थानीय निवासियों और युवाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. तुलसी पूजन का यह कार्यक्रम न केवल सनातन संस्कृति को सहेजने का एक प्रयास है बल्कि आधुनिक युवाओं को परंपराओं से जोड़ने का एक अहम कदम भी है.
तुलसी पूजन का महत्व
तुलसी को सनातन धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है. इसे देवी तुलसी का स्वरूप मानते हुए इसकी पूजा की जाती है. आयोजन का उद्देश्य समाज में जागरूकता फैलाना और लोगों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना था. पूर्व जिला अध्यक्ष आज़ाद सिंह ने इस अवसर पर कहा, “तुलसी पूजन हमारे इतिहास का हिस्सा रहा है, लेकिन पहले लोग इसे अधिक महत्व नहीं देते थे. अब जागरूकता बढ़ी है और 25 दिसंबर हमारे लिए तुलसी पूजन का दिन है. तुलसी केवल एक पौधा नहीं है, यह औषधि, शांति और ऊर्जा का प्रतीक है”. उन्होंने यह भी बताया कि यह आयोजन हर साल होता है और चुनाव से इसका कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया और समाज में जागरूकता बढ़ने से लोग अब अपनी परंपराओं को समझने लगे हैं.
आयोजन का संदेश
कार्यक्रम में मदद फाउंडेशन के अध्यक्ष रविंदर वर्मा ने कहा, “यह आयोजन हमारी सनातन संस्कृति के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास है. यह केवल हिंदू संस्कृति नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज को देने के लिए बनी एक जीवनशैली है. हमारी संस्कृति हमें समाज और प्रकृति को कुछ लौटाने की सीख देती है.
उन्होंने आगे कहा कि आज का युवा पढ़ा-लिखा है और केवल आधुनिक शिक्षा तक सीमित नहीं है. वह अपने शास्त्रों और परंपराओं को भी समझने का प्रयास कर रहा है. तुलसी पूजन इसी जागरूकता का प्रतीक है. यह आयोजन समाज में सनातन संस्कृति की महत्ता को रेखांकित करता है और बताता है कि हमारी संस्कृति केवल भोग के लिए नहीं, बल्कि समाज और देश के लिए जीने की प्रेरणा देती है.
राजनीति से कोई संबंध नहीं
इस आयोजन को चुनावी राजनीति से जोड़ने के सवाल पर आयोजकों ने कहा कि यह आयोजन हर साल होता है और इसका मकसद केवल संस्कृति और परंपराओं को सहेजना है. आज़ाद सिंह ने इस पर कहा कि मीडिया इसे चुनाव से जोड़ती है, लेकिन सच यह है कि यह आयोजन युवाओं को जागरूक करने और उनके संस्कारों को मजबूत करने के लिए है. आयोजन में शामिल युवा इसे प्रेरणादायक बता रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम उन्हें अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़ने में मदद करते हैं.
उन्होंने कहा कि तुलसी पूजन जैसे आयोजन न केवल सनातन संस्कृति को सहेजने का माध्यम हैं, बल्कि यह समाज को प्रकृति और परंपराओं की महत्ता समझाने का भी प्रयास है. साकेत का यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि आधुनिकता के बीच भी भारतीय परंपराएं और संस्कृति आज भी जीवित हैं और युवाओं में नई चेतना जगा रही हैं.