प्रयागराज कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं-पर्यटकों के लिए मेला प्रशासन को 4 हजार नावों की जरूरत है, जबकि उपलब्ध नावों की संख्या मात्र 1455 है. ऐसे में मेला प्रशासन को लगभग ढाई हजार और नावों की जरूरत है. इस वजह से अब अचानक नावों को डिमांड बढ़ गई है और निषादों की बस्ती में युद्ध स्तर पर नाव बनाने का काम चल रहा है.
कुंभ मेले में अरैल मोहल्ले की निषाद बस्ती में इन दिनों हर दूसरे घर में नावों के निर्माण का काम चल रहा है. कुंभ के शुरू होने में चंद दिन शेष हैं, ऐसे में हर कोई समय से नावों की आपूर्ति में जुटा है, क्योंकि डिमांड इतनी है कि सप्लाई आसान नहीं.
दरअसल, नावों का निर्माण इस निषाद बस्ती की आय का बड़ा साधन होता है और इतनी बड़ी संख्या नावों का ऑर्डर उन्हें पहले कभी नहीं मिला, केवट समाज के लिए नावों का निर्माण और मेले में उनका संचालन बड़ा अवसर है. लिहाजा कुंभ मेला हजारों परिवारों के लिए खुशियां लेकर आया है. कुंभ के चलते लोगों को रोजगार मिला है .
जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी, नाविक और केवट समाज के लिए तो कुंभ मेला किसी वरदान जैसा है. aajtak नाव निर्माण के एक कारखाने में पहुंचा, जहां 25 नावों का निर्माण अंतिम चरण में है.
एक कारीगर ने बताया कि एक नाव को बनाने में दो दिन लगते हैं. नाव को बनाने में कीमती साखू की लकड़ी, टिन की चादर, तारकोल और कुछ दूसरी सामग्री का इस्तेमाल होता है. मीडियम साइज़ की एक नाव लगभग 70 हज़ार रुपए में बेची जाती है. एक नाव को बेचने पर ही कारीगर को अच्छी खासी बचत हो जाती है.
इन नावों के निर्माण के बाद मेला प्रशासन इनका बोट टेस्ट लेगा, जिसके बाद नाविक को लाइसेंस जारी किया जाएगा. केवट समाज को कुंभ के दौरान नाव के निर्माण के अलावा गंगा-यमुना में नाव चलाने से भी अच्छी खासी आमदनी होगी. कुंभ मेला उनके परिवारों के लिए खुशियां लेकर आया है.
कुंभ मेला प्रशासन ने नाविकों के हित में बड़ा फैसला लेते हुए नाव के किराए में 50 फीसदी की वृद्धि कर दी है, उन्हें लाइफ सेविंग जैकेट दी जा रही है. साथ ही उन्हें 2 लाख रुपये का बीमा कवर भी मिलेगा.
कुल मिलाकर जब हम कुंभ मेले की बात करते हैं तो उसके धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष की ही चर्चा होती, लेकिन कुंभ के आर्थिक पक्ष को हम नज़रंदाज़ कर देते हैं. कुंभ मेले से प्रदेश की अर्थव्यवस्था रफ्तार तो बढ़ेती ही है, साथ ही लाखों गरीब परिवारों को इसका बड़ा लाभ मिलता है.