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सारंगढ़ बिलाईगढ़: प्राचीन धार्मिक स्थल और ऐतिहासिक धरोहरों का अद्भुत संगम, पढ़ें यहां का गौरवमयी इतिहास

सारंगढ़ बिलाईगढ़ :  जिले के नगर पंचायत सरिया के सीमा पर स्थित ग्राम पुजेरीपाली और पंचधार आपस में जुड़े हुए हैं. यहां महादेव और मां बोर्रासेनी (बोर्राहासिनी) का प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है और खुदाई में मिली मूर्तियों को लेकर यहां पूजा अर्चना की जाती है. पंचधार में मां लक्ष्मी की मूर्ति और सरिया के जगन्नाथ मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा होती है.

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मां बोर्राहासिनी मंदिर परिसर में अनेक खंडित और पूर्ण मूर्तियां पाई जाती हैं, जिनका पुरातत्व सर्वे 1875 से लगातार किया जा रहा है. लोगों की मान्यता है कि मां बोर्रासेनी, नाथलदाई और चन्द्रहासिनी बहनें हैं, जिनका विशेष पूजन सारंगढ़ के राजा दशहरे के समय करते थे. यहां एक पत्थर का मंदिर भी है, जिसे “रानी का झूला” कहा जाता है. यह मंदिर चार स्तंभों से संरक्षित है और इन स्तंभों पर विशाल मूर्तियां उकेरी गई हैं.

 

 रानी का झूला और जैन मंदिर:

रानी का झूला एक विशेष वास्तुशिल्प उदाहरण है, जो संभवतः एक बड़े मंदिर के मंडप के अवशेष हैं. इसके चारों ओर कई टूटी हुई जैन प्रतिमाएँ पड़ी हुई हैं, जो यह दर्शाती हैं कि यह स्थान कभी जैनियों के पूजा स्थल के रूप में इस्तेमाल होता था. एक अन्य मंदिर में एक टूटी हुई मूर्ति भी है, जिसे मां बोर्रासेनी के नाम से जाना जाता है. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी जुड़ी है जिसमें एक जोगी ने रात के समय मूर्ति से आवाज आने पर शिलालेख मूर्ति के पेट में खजाना निकालने की कोशिश की, लेकिन जोगी पत्थर में परिवर्तित हो गया. इसे “चोर पत्थर” कहा जाता है.

स्वर्ण वर्षा की जनश्रुति:

पुजेरीपाली क्षेत्र में अतीत में स्वर्ण वर्षा होने की जनश्रुति है. स्थानीय लोग मानते हैं कि जब यहां के नागरिकों ने खुदाई की, तो उन्हें स्वर्ण के टुकड़े मिले. यह स्वर्ण की घटना पुजेरीपाली के लोगों के बीच हकीकत मानी जाती है.

 

 

केवटिन देऊल महादेव मंदिर:

केवटिन देऊल महादेव मंदिर की कहानी भी दिलचस्प है. जनश्रुति के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में किया जाना था. लेकिन केवट जाति की महिला द्वारा ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर ढेंकी से कार्य करने पर शिल्पी विश्वकर्मा देव ने इस निर्माण को अधूरा छोड़ दिया. इसके कारण इस मंदिर का नाम “केवटिन देऊल महादेव मंदिर” पड़ा. इसे पाताल से जुड़ा हुआ माना जाता है और शिवलिंग का जल अभिषेक करने की कोशिश की जाती है, लेकिन आज तक शिवलिंग में जल नहीं भर पाया है.

मंदिर की संरचना और वास्तुशिल्प:

केवटिन देऊल महादेव मंदिर का विमान पंच-रथ पैटर्न का अनुसरण करता है. मंदिर का शिखर ओडिशा शैली से प्रभावित है, क्योंकि यह ओडिशा सीमा के पास स्थित है. मंदिर की संरचना में विभिन्न प्रकार की शिल्पकला और डिज़ाइन दिखती हैं, जैसे कि चंद्रशाला, कलश और पत्तों की आकृतियों से सजी हुई मूर्तियां. यह मंदिर वास्तुशिल्प के अद्भुत उदाहरण के रूप में देखा जाता है.

 

गोपाल मंदिर और शिलालेख:

मां बोर्राहासिनी मंदिर परिसर में एक गोपाल मंदिर भी स्थित है. यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला के टुकड़ों से बना है और इसमें विभिन्न मूर्तियां और शिल्प पाए गए हैं. एक शिलालेख में गोपालदेव का उल्लेख है, जो इस मंदिर के नामकरण का कारण है. यह मंदिर विष्णु को समर्पित था, और इसमें कृष्ण के केशी और पूतना वध की कथाओं को चित्रित किया गया है. मंदिर के पत्थर के शिलालेख में राजा गोपाल द्वारा पूजा की जाने वाली मातृकाओं और योगिनियों का भी उल्लेख है.

 

पुरातत्व खोज और इतिहास:

सारंगढ़ और इसके आस-पास के क्षेत्र की पुरातत्विक खोज का इतिहास भी बहुत समृद्ध है. 1875 में जे.डी. बेगलर ने इस क्षेत्र का दौरा किया और यहां पाए गए विभिन्न मंदिरों का विवरण दिया. बाद में अलेक्जेंडर कनिंघम और एएच लॉन्गहर्स्ट ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया और यहां के ऐतिहासिक स्थलों को दर्ज किया. इन विद्वानों ने यहां के मंदिरों की वास्तुशिल्प और पुरातात्त्विक महत्व को उजागर किया.

सारंगढ़ बिलाईगढ़ क्षेत्र एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, जहां अनेक प्राचीन मंदिरों और पुरातत्विक स्थल पाए जाते हैं. इन स्थलों से जुड़ी जनश्रुतियाँ, कथाएं और पुरातात्त्विक खोजें इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल और ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा बनाती हैं.

 

 

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