बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की
सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़
मशहूर शायर नज़्म तबातबाई के इस शेर को मानो सही मानी मिल गए जब दो साल बाद मां ने अनाथ आश्रम में रह रहे बेटे को गले लगाया. कहते हैं कि हाथों की लकीरों में इंसान की किस्मत लिखी होती है. विज्ञान और तकनीक के जमाने में ये बात और भी सच साबित कर दी जब पांच साल के एक बच्चे के फिंगर प्रिंट से उसके खोए हुए माता-पिता मिल गए. नये साल में एक परिवार को दो साल बाद अपना बच्चा मिला, वहीं एक बच्चे को अपना घर और अपनों का साया वापस मिल गया. आइए जानते हैं कैसे मिला परिवार.
कहानी शुरू होती है 16 फरवरी 2023 की शाम करीब पौने चार बजे से, गाजियाबाद पुलिस को करीब चार से पांच साल की उम्र का एक बच्चा मिलता है. एक पेट्रोल पंप के पास स्लेटी रंग का पायजामा और धारीदार शर्ट पहने यह बच्चा बस रोए जा रहा था. किसी ने पुलिस को कॉल करके बुलाया तो सादी वर्दी में पुलिस उसे अपने साथ ले गई. यहां उससे नाम-पता वगैरह पूछने की कोशिश की गई तो बच्चा पिता के नाम के सिवाय कुछ बता नहीं पा रहा था. पुलिस ने नियमानुसार बच्चे को सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी)के माध्यम से गाजियाबाद के घरौंदा बाल आश्रम तक पहुंचा दिया.उधर, माता-पिता बच्चे को भीड़ में खोने के बाद से लगातार उसे खोज रहे थे.
पता लगाना था मुश्किल
परिजनों का साथ छूट जाने से परेशान बच्चे को जब बाल आश्रम पहुंचाया गया तो उसे सामान्य होने में करीब 24 घंटे लग गए. आश्रम में काउंसलर्स ने जब बच्चे से उसके बारे में जानने की कोशिश की तो यहां भी बच्चा तोतली आवाज में अपने पिता का नाम भर बता पाया.उसे न अपने घर का पता मालूम था और न ही आसपास की कोई ऐसी जगह, जिससे उसे ट्रेस किया जा सकता. पूछताछ खत्म हुई और फिर यही मान लिया गया कि अब यह बच्चा यहीं रहेगा. बच्चे की पढ़ाई और परवरिश शुरू हो गई. देखते-देखते समय बीतने लगा.
शुरू हुई एडॉप्शन में देने की तैयारी
बाल आश्रम में सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार बच्चों को गोद दिया जाता है. चूंकि बच्चे के परिजनों का पता नहीं लग पा रहा था तो इसे भी गोद देने के लिए कागजात वगैरह तैयार कराने की प्रोसेस शुरू हुई. घरौंदा बाल आश्रम के उप अधीक्षक विपिन शर्मा बताते हैं कि हमने सबसे पहले बच्चे को डुप्लीकेट आधार कार्ड बनाने के लिए भेजा, वहां से एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गई. अब चूंकि ये एक तरह की प्रोसेस होती है, उसमें हमने फिर रिजेक्ट होने का कारण जानने के लिए कार्यवाही की तो जवाब मिला कि बच्चे का पहले से ही आधार कार्ड बन चुका है, इसलिए दूसरा नहीं बना सकते. इस प्रोसेस में और करीब छह महीने लग गए.
ऐसे शुरू हुई खोज
विपिन शर्मा बताते हैं कि अब जब हमें पता चला कि बच्चे का पहले से ही आधार कार्ड है तो हमने वो आधार कार्ड निकलवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. सिर्फ फिंगर प्रिंट के जरिये हमें उसका पुराना आधार कार्ड लेना था तो ये प्रक्रिया भी शुरू हुई. करीब दो महीने बाद हमें बच्चे का आधार कार्ड मिला. इस आधार कार्ड से पता चला कि बच्चा कासना के एक मुहल्ले का रहने वाला है. उस आधार कार्ड पर एक फोन नंबर दिया था. जब उस फोन नंबर पर कॉल किया तो वो नंबर उसके पिता का नहीं था. नंबर से कुछ पता नहीं चला तो इसके बाद टीम बनाकर आश्रम के लोग आधार कार्ड पर दिए गए पते पर पहुंचे.
माता-पिता भी खोज रहे थे बच्चा
वहां जाकर टीम को पता चला कि माता-पिता एक लोअर मिडिल क्लास फैमिली के हैं. जब से उनका बच्चा खोया है वो लोग कई ट्रेनों से जाकर तमाम रेलवे स्टेशनों, पुलिस स्टेशनों, जीआरपी कार्यालयों और रिश्तेदारों के यहां बच्चा खोज रहे हैं. वो लोग हर जगह बच्चे की फोटो चिपकाते हैं. सोशल मीडिया में भी उसकी फोटो दी है. 20 महीने से जब से बच्चा खोया है, तब से ज्यादातर बाहर जाकर बच्चे को ही खोजते रहते हैं. दोनों का ही बहुत बुरा हाल हो चुका है, उनका यह अकेला बच्चा था. पड़ोसियों को एड्रेस और जानकारी देकर टीम वापस आ गई.
आखिर में हुई खोज पूरी
बीते माह दिसंबर में जैसे ही बच्चे के माता पिता को पड़ोसियों ने जानकारी दी, दोनों ही अनाथ आश्रम की तरफ दौड़ पड़े. इस अनाथ आश्रम में 33 और बच्चों के साथ वो बच्चा भी रह रहा था. वो भले ही अब सात साल का होने वाला था, लेकिन उसे जब से पता चला था कि उसके माता-पिता का पता मिल गया है वो हर दिन उनका इंतजार कर रहा था. दिसंबर में माता-पिता जैसे ही उसके ‘होम’ पहुंचे, उन्हें बच्चे से मिलाया गया. पेरेंट्स अपने बच्चे को गले लगाकर काफी देर रोते रहे. वहीं बच्चे की आंखों में भी खुशी की चमक देखते बन रही थी. कहते हैं कि हाथों की लकीरों में इंसान की किस्मत लिखी होती है, ये वाक्य जैसे वाकई सच साबित हो गया था. उस बच्चे के हाथों की लकीरों ने उसे फिर से परिवार से मिला दिया था.