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गंगासागर मेला: इतिहास, मान्यताएं और कुंभ से बड़ी आस्था का पर्व..

गंगा सागर मेले को लेकर देश भर में एक बात कही जाती है, आप हर तीर्थ स्थल पर कई बार जा पाते हैं लेकिन गंगा सागर आप एक ही बार जा पाते हैं. इसको लेकर एक कहावत भी है सब तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार. मान्यता है कि गंगा सागर स्नान से 100 अध्वेध यज्ञ जैसा पुण्य फल मिल जाता है. ये मेला मकर संक्रांति के समय पर लगता है. सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तब गंगा सागर स्नान का विशेष धार्मिक महत्व है.

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कुछ ही दिनों बाद महाकुंभ की शुरुआत हो रही है तो वहीं गंगा सागर स्नान भी शुरू होने वाला है. इसको लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि गंगा सागर स्नान महाकुंभ से भी बड़ा है. इसके बाद कई तरीके के दावे किए जा रहे हैं. बर्नजी ने इसे केंद्र सरकार से राष्ट्रीय मेला घोषित करने की मांग की है. आइये जानते हैं कि इस मेले के इतिहास और ये क्यों लगाया जाता है. इसके साथ ही इसकी हिंदू मान्यता क्या जानते हैं.

बता दें कि गंगासागर मेला हिंदू धर्म का दूसरा सबसे बड़ा मेला माना जाता है. ये मेला तिथि के अनुसार हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है.

कब और कहां लगता है ये मेला?

गंगासागर मेला या गंगा सागर स्नान का आयोजन हर साल जनवरी महीने में मकर संक्रांति के आसपास होता है. हिंदुओं धर्म बीच इसका बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. हर साल, गंगासागर मेले में दुनिया भर से लाखों लोग स्नान के लिए पहुंचते हैं.

यह मेला पश्चिम बंगाल राज्य के सागर द्वीप या ‘सागर द्वीप’ में आयोजित किया जाता है. गंगासागर मेला मकर संक्रांति से कुछ दिन पहले शुरू होता है, और संक्रांति होने के बाद इसका समापन हो जाता है. यह मेला साल में एक ही बार लगता है.

हिंदू धर्म में बहुत खास है गंगा सागर स्नान

गंगा सागर स्नान हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है. बंगाल में ये मेला बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. मान्यता है कि गंगा सागर स्नान से 100 अध्वेध यज्ञ जैसा पुण्य फल मिल जाता है. इसके साथ ही पापों से मुक्ति मिलती है.

ज्योतिष शास्त्र की माने तो यह वह दिन है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. हिंदू संस्कृति के अनुसार, यह दिन अच्छे समय की शुरुआत का प्रतीक है. इसके बाद सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, और अन्य चीजें की शुरुआत की जा सकती हैं.

कैसे करते हैं गंगा सागर स्नान?

1. भक्त सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, और गंगा स्नान के दिन गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं. वे भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद अनुष्ठान शुरू होता है. 2. अनुष्ठान पूरा करने के बाद, लोग कपिल मुनि की पूजा करते हैं और देसी घी का दिया जलाते हैं. 3. कुछ लोग गंगा स्नान के दिन यज्ञ और हवन भी करते हैं. 4. श्रद्धालु गंगा स्नान के दिन उपवास भी रखते हैं. 5. गंगा स्नान के इस दिन भक्त देवी गंगा के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं और अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगते हैं. जो उन्होंने जाने-अनजाने में किए होंगे.

क्या है गंगा सागर मेले का पौराणिक इतिहास?

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, एक बार राजा सगर विश्व विजय के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे. स्वर्ग के स्वामी,राजा इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया. इसके बाद घोड़े को पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया.

जब राजा सगर के पुत्र घोड़े को लेने आए और उसे कपिल मुनि के आश्रम के पास पाया, तो उन्होंने कपिल मुनि के साथ चोर जैसा व्यवहार किया. कपिल मुनि (भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं) इससे गुस्सा हुए.

उन्होंने लड़कों को श्राप देकर उन्हें राख में बदल दिया. राजा सगर के पोते भगीरथ ने वर्षों तक तपस्या की और पवित्र गंगा से अपने पूर्वजों की राख पर प्रवाहित करने का अनुरोध किया. पवित्र गंगा ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और स्वर्ग से नीचे आकर राजा सगर के पुत्रों की राख को धो डाला.

उनके पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति मिल गयी. यही कारण है कि मोक्ष पाने और पुराने पापों से मुक्ति पाने के लिए लाखों लोग पहुंचते हैं.

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