महज 23 साल के युवा हरेश बंजारे ने 17 साल पुराने एक ऐसे मामले की जड़ खोद कर रख दी है, जिसने प्रदेश के बड़े शिक्षक नेता के साम्राज्य की नींव हिला कर रख दी है. असल में आज से 13 महीने पहले जब मामले की पहली बार शिकायत हुई तो किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि एक-एक कर दस्तावेज सामने आते जायेंगे और स्कूल शिक्षा विभाग कार्यवाही करने को मजबूर हो जाएगा. ऐसा भी नहीं है कि अधिकारियों ने दोषी को बचाने की कोशिश नहीं की हो. लेकिन इस युवक की जिद्द और जुनून के आगे अधिकारियों को भी घुटने टेकने पड़े.
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा की धर्मपत्नी चंद्ररेखा शर्मा के बारे में, जिसमें एक बार नहीं बल्कि तीन बार जांच हुई है और तीनों बार नियुक्ति को फर्जी पाया गया है. मामले की पहली जांच जेडी सरगुजा द्वारा करवाई गई, जहां से यह दस्तावेजी प्रमाण निकाल कर सामने आए की चंद्ररेखा शर्मा ने जिस स्कूल में अपनी नियुक्ति दर्शाया है उस स्कूल में उन्होंने कभी कार्यभार ग्रहण किया ही नहीं है. जिसकी जानकारी शपथ पूर्वक वहां के प्रधान पाठक ने दिया है. यही नहीं, वास्तविक नियुक्ति वाली नीलम टोप्पो भी उसी स्कूल से जुड़ी हुई है, जिसने जांच के दौरान अपने दस्तावेज जांच टीम को सौंपे. जिसमें उनकी नियुक्ति का आदेश क्रमांक वही है, जिसका जिक्र चंद्ररेखा शर्मा के सर्विस बुक में उनके नियुक्ति आदेश के तौर पर किया गया है. इससे इस बात की पुष्टि हुई कि चंद्ररेखा शर्मा का नियुक्ति आदेश फर्जी है.
इसके बाद बिलासपुर संयुक्त संचालक की जांच में भी एक के बाद एक गड़बड़ियां निकल कर सामने आई. चंद्ररेखा शर्मा को विभाग ने अपना पक्ष रखने के लिए मौके भी दिए. उन्होंने पहले जांच को रोकने की कोशिश की और जब डीपीआई से सूक्ष्मता से जांच करने का आदेश सामने आ गया तो उन्होंने विभाग को लिख कर दिया कि उनके पास अपनी नियुक्ति से जुड़े कोई भी असली दस्तावेज नहीं है और जो फोटोकॉपी वाले दस्तावेज उन्होंने सौंपे हैं, उसमें आदेश क्रमांक को गायब कर दिया गया है. सबसे हैरानी वाली बात है कि प्रदेश के सबसे पुराने शिक्षक नेता की पत्नी के पास अपनी नियुक्ति संबंधी एक भी ओरिजिनल दस्तावेज नहीं है. साथ ही इतने गंभीर मामले में भी शिक्षक नेता ने ऐसे चुप्पी साध रखी है मानो कुछ हुआ ही न हो, जबकि यह वह नेता है जो सुप्रीम कोर्ट तक के मामले में बोलने से नहीं चूकते हैं.
इस मामले की पोल खोलने वाले 23 साल के युवा हरेश बंजारे ने बताया कि इस मामले की जब जानकारी मिली तो उन्होंने RTI के जरिए लगातार दस्तावेज प्राप्त करने की कोशिश की. लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था. हर कदम पर आरोपियों का साथ देने वाले लोग मौजूद थे, जिसके चलते एक बार में आरटीआई का जवाब मिलता ही नहीं था. बार-बार प्रथम अपील कर दबाव बनाने के बाद दस्तावेज मिलते गए. यही नहीं, एक बार तो जेडी कार्यालय में हरेश बंजारे को ही फर्जी साबित करने की कोशिश की गई. हरेश ने बताया कि आवेदन पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने को लेकर रोक लगा दी गई. जिसके बाद उन्होंने जेडी कार्यालय पहुंचकर दबाव बनाया तब जाकर दस्तावेज मिलने शुरू हुए.
हरेश बताते हैं, ‘आरटीआई से जब दस्तावेज मिलते थे तो मैं एक-एक बिंदु का अध्ययन कर फिर से पत्र बनाकर शिकायत करता था और उन्हीं बिंदुओं को लेकर लगातार जांच होते गई और मामला सामने आता गया.’ उन्होंने आगे बताया, ‘आरोपियों द्वारा भी मुझे लगातार मैसेज और कॉल के माध्यम से संपर्क किया गया जिसे मैंने अभी भी प्रमाण के तौर पर अपने पास रखा है. एक दिन में मुझे व्हाट्सएप में लगातार 20 बार भी कॉल किया गया है और मैसेज में लगातार मिलने की बात की जाती थी.’ हरेश ने आगे जानकारी दी कि, ‘प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से धमकी और प्रलोभन भी मिला, कुछ लोग मेरे घर का पता करते हुए जरहाभाठा निवास भी पहुंचे थे और कुछ अन्य माध्यमों से भी मुझ तक यह संदेश पहुंचाया गया कि मैं जांच बंद कर दूं अन्यथा बहुत बड़ा नुकसान होगा.’
रैकेट को उजागर करना मेरा उद्देश्य: हरेश बंजारे
हरेश बंजारे बताते हैं, ‘मैं चाहता तो धमकी देने के नाम पर उसी समय कॉल रिकॉर्डिंग और व्हाट्सएप मैसेज को सार्वजनिक कर कुछ लोगों को हवालात पहुंचा सकता था. लेकिन मेरा उद्देश्य इस पूरे रैकेट को उजागर करना है इसलिए मैं ध्यान भटकाना नहीं चाहता था. यह एक व्यक्ति का मामला नहीं है बल्कि यह संगठित और सुनियोजित अपराध है जिसमें कई लोग शामिल है जिनके खिलाफ पूरी जानकारी मेरे पास उपलब्ध है.’ हरेश का कहना है कि यहां योग्य व्यक्तियों को नौकरी नहीं मिल पा रही है और अयोग्य कभी फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर तो कभी फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाकर नौकरी हथिया ले रहे हैं और अब तो लोग फर्जी नियुक्ति पत्र तक बनवाकर नौकरी हथिया चुके हैं.
हरेश चाहते हैं कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी तो इनका हौसला बुलंद हो जाएगा. हरेश बताते हैं कि, ‘मैं तो यह देखकर हैरान हूं कि बहुत से शिक्षक ऐसे दोषियों के समर्थक हैं और उनका पक्ष रखते हैं कि उनके नौकरी से हट जाने से आपको नौकरी मिल जाएगी क्या. मुझे नौकरी नहीं मिलेगी और मुझे नौकरी चाहिए भी नहीं, लेकिन जो दोषी हैं, जिनकी नियुक्ति फर्जी है उन्हें नौकरी से हटाने का मेरा मिशन है और यह मिशन तब तक जारी रहेगा जब तक मेरा लक्ष्य पूर्ण नहीं हो जाता.
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