राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) ने रविवार को शराब घोटाले और अवैध कोल लेवी मामले में एक साथ बड़ी कार्रवाई की है। अलग-अलग मामलों में ब्यूरो ने छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों में कई ठिकानों पर तलाशी लेकर महत्वपूर्ण दस्तावेज और डिजिटल सामग्री जब्त की है।
शराब घोटाले के मामले में EOW ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल के पीए जयचंद कोसले और पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा के करीबी व्यापारी अवधेश यादव सहित उनसे जुड़े लोगों के तीन राज्यों छत्तीसगढ़ में 03, झारखंड 2 और बिहार में 2 के कुल 7 ठिकानों पर दबिश दी गई।
कार्रवाई में ब्यूरो ने प्रकरण से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज, मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, संपत्ति से संबंधित कागजात और नगद रकम जब्त की। जयचंद कोसले पूर्व आईएएस सौम्या चौरसिया का भी करीबी रहा है। कोल लेवी मामले में कोसले के ठिकानों पर भी छापा मारकर दस्तावेज जब्त किए गए है।
कौन है शराब कारोबारी अवधेश यादव
ईओडब्ल्यू के मुताबिक, शिव विहार कॉलोनी निवासी शराब कारोबारी अवधेश यादव पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा के बेहद करीबी रहे। वह बस्तर के सात जिलों में शराब का काम देखते थे। सरकार ने शराब दुकानों में मैनपावर और प्लेसमेंट के लिए निजी कंपनी को ठेका दिया था, लेकिन उसका संचालन अवधेश खुद करता था।
आरोप है कि वह बस्तर में खुलेआम ओवररेट शराब बेचता था। पड़ोसी राज्यों से सस्ती शराब लाकर तस्करी करता और कोचिया सिस्टम के जरिए हर जिले में नेटवर्क चलाता था। यहां तक कि शराब में मिलावट कर सप्लाई करने का भी आरोप है।
ईओडब्ल्यू की जांच में सामने आया है कि अवधेश ने इस कारोबार से 200 करोड़ से ज्यादा का कमीशन कमाया। इस रकम को उसने अपने पैतृक घर पलामू और ससुराल औरंगाबाद में निवेश किया है।
जयचंद पर सौम्या के 50 करोड़ निवेश करने का शक
ईओडब्ल्यू की टीम ने रविवार सुबह सहायक खनिज संचालक के पुत्र जयचंद कोसले के रायपुर और अकलतरा स्थित घरों पर भी दबिश दी। देर रात तक कार्रवाई जारी रही। जयचंद लंबे समय से जांच एजेंसी की निगरानी में था। वह पूर्व सीएम की उप सचिव सौम्या चौरसिया का करीबी माना जाता है।
जांच में यह भी सामने आया कि अवैध कोयला परिवहन से मिलने वाला पैसा जयचंद के जरिए सौम्या तक पहुंचता था। जयचंद ने ही सौम्या का लगभग 50 करोड़ निवेश किया था। उसे खुद भी इस कारोबार से 10 करोड़ से ज्यादा की कमाई हुई।
उसने रायपुर के सेजबहार कॉलोनी में आलीशान मकान और अकलतरा के अंबेडकर चौक के पास पैतृक घर सहित करोड़ों की संपत्ति खड़ी की है। जयचंद से ईडी भी कई बार पूछताछ कर चुकी है।
बस्तर के 7 जिलों में अवधेश चलाता था खुद का नेटवर्क
अवधेश यादव बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिलों की शराब दुकानों का संचालन करता था। दुकानों में उसके कर्मचारी और सुपरविजन का काम उसके रिश्तेदार करते थे। झारखंड और बिहार से लाए गए रिश्तेदार भी शराब दुकानों में काम करते थे।
आरोप है कि बस्तर संभाग में आबकारी विभाग की ट्रांसफर-पोस्टिंग में अवधेश की बड़ी भूमिका थी। अधिकारियों की नियुक्ति उसकी मर्जी से होती थी। इसके लिए वह पैसा वसूलता था। अवधेश ओडिशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र से ट्रकों में सस्ती शराब मंगवाकर बस्तर में बेचता था।
दुकानों में उसका कमीशन तय था। बिना होलोग्राम के भी शराब बिकती थी। विभाग में उस पर कोई निगरानी नहीं थी क्योंकि वह सीधे मंत्री को रिपोर्ट करता था। आशंका है कि उसने 300 करोड़ से ज्यादा का घोटाला किया है।
सौम्या जब निगम आयुक्त बनीं तभी उनका निज सहायक बना जयचंद
ईओडब्ल्यू के मुताबिक, जयचंद कोसले नगर निगम का कर्मचारी था। जब सौम्या चौरसिया रायपुर निगम में अपर आयुक्त थी, तब जयचंद उनके निज सहायक(पीए) के तौर पर काम करने लगा। सौम्या जब मुख्यमंत्री की उप सचिव बनीं थी, तब जयचंद की पोस्टिंग भी वहीं करा दी गई।
वह सौम्या के ऑफिस से जुड़ा पूरा काम देखता था, जिसमें पैसों का लेन-देन और निवेश शामिल था। सरकार बदलने के बाद भी जयचंद ने अपनी पोस्टिंग पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बंगले में करा ली और अब वही उनका काम देखने लगा था।
3 दिन पहले शराब घोटाला केस में रिटायर्ड IAS अरेस्ट
2 दिन पहले ही शराब घोटाला केस में ACB-EOW ने रिटायर्ड IAS निरंजन दास को गिरफ्तार किया था। पूर्व आबकारी आयुक्त निरंजन दास कांग्रेस सरकार के दौरान आबकारी आयुक्त थे। निरंजन पर सिंडिकेट ऑपरेट करने में अहम रोल निभाने का आरोप है। घोटाले से उन्हें हर महीने 50 लाख मिलते थे।
19 सितंबर को निरंजन दास को रायपुर की ACB-EOW कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट के आदेश के अनुसार निरंजन दास 25 सितंबर तक EOW की रिमांड पर रहेंगे।
EOW की जांच में सामने आया है कि, रिटायर्ड IAS निरंजन दास ने पूर्व IAS अनिल टुटेजा, तत्कालीन विशेष सचिव अरुणपति त्रिपाठी, कारोबारी अनवर ढेबर और अन्य के साथ मिलकर शराब घोटाले का सिंडिकेट खड़ा किया था।
EOW के मुताबिक सिंडिकेट ने सरकारी शराब दुकानों में कमीशन तय करने, डिस्टलरियों से अतिरिक्त शराब बनवाने, विदेशी ब्रांड की अवैध सप्लाई कराने और डुप्लीकेट होलोग्राम के जरिए शराब बेचने जैसी गतिविधियों से राज्य सरकार को हजारों करोड़ का नुकसान पहुंचाया।