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जरा हटके- गाय की डकार और Fart से हीरे बना रहा यह आदमी, तरीका जानकार चौंक जाएंगे आप

नई दिल्ली: इंसान की जरूरत ने उससे बड़े-बड़े आविष्कार करवाए हैं. इसे आवश्यकता ही कहिए कि आज के समय में इंसान धरती से चांद तक पहुंच गया. हालांकि, कई बार हम लोग अपनी जरूरत के हिसाब से ऐसे-ऐसे आविष्कार कर लेते हैं, जिसके बारे में जानकर ही लोग दंग रह जाते हैं. अब एक ऐसा ही आविष्कार लोगों के बीच चर्चा में आया है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया, क्योंकि iPod के आविष्कारक टोनी फैडेल अब गाय की डकार से हीरे तैयार कर रहे हैं.

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अंग्रेजी वेबसाइट मेट्रो के मुताबिक टोनी फैडेल गाय की डकार और पाद से निकले मीथेन को हीरे में बदल रहे हैं. जिसका इस्तेमाल आज इलेक्ट्रॉनिक्स में हो रहा है. ब्रातिस्लावा में स्टार्मस फेस्टिवल के दौरान जब अपने इस नए प्रयोग की जानकारी दुनिया के सामने रखी तो लोग काफी ज्यादा हैरान रह गए. अपने बयान में उन्होंने कहा कि इतने सालों में मैंने अरबों-खरबों प्रोडक्ट बनाए जिनको आज दुनिया इस्तेमाल कर रही है, लेकिन अब मेरा ये प्रोडक्ट धरती को बचाने के लिए है.

ऐसे कंपनी तैयार करेगी हीरा
अपने बयान में उन्होंने आगे कहा कि अब मैं अपना ज्यादातर समय में उन चीजों को तैयार कर रहा हूं, जो धरती की मदद करने वाले प्रोडक्ट होंगे. अब इसमें मीथेन का रिसाव पता लगाने के लिए मेरी टीम ने इस साल की शुरुआत में मीथेनसैट नाम को जो उपग्रह लॉन्च किया है. जिसकी मदद से हमें मीथेन की सोर्स का पता चलेगा क्योंकि हमें हीरा बनाने के लिए भारी मात्रा में मीथेन की आवश्कता होगी. अपने इस प्रोजक्ट के लिए मैंने डायमंड फाउंड्री नाम की एक कंपनी शुरू की है. जो या तो जमीन से या गाय जैसे जानवरों से बायोमीथेन लेगी और आर्टिफिशयल हीरे को तैयार करेगी.

मेरे इस आविष्कार का सिर्फ इतना मकसद है कि हम धरती से किसी तरह मीथेन को रोकने की कोशिश है, ताकि ये वातावरण में न फैले क्योंकि इससे धरती के तापमान में इजाफा हो रहा है और हमारे अस्तिव पर खतरा मंडरा रहा है. इसी चीज को ध्यान में रखकर मैंने सीएच4 ग्लोबल नाम की एक और कंपनी बनाई थी तो हम लाल समुद्री शैवाल बनाते हैं. जिसे आप अगर गाय को चारे में मिलाकर खिलाएं तो तो उनकी डकार आनी 80 से 90 फीसदी तक कम हो जाएगी. जानकारी के लिए बता दें कि टोनी की बात बिल्कुल सही है क्योंकि एक बार मीथेन निकलने के बाद वो इंसानों के लिए 80 फीसदी हानिकारक हो जाता है. यह 20 वर्षों तक वायुमंडल में रहती है.

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