महाराष्ट्र में मुंबई की डिंडोशी सेशन कोर्ट ने एक व्यक्ति को अपनी ही बेटी के साथ तीन साल तक बलात्कार करने का दोषी ठहराया और सजा सुनाई. मालूम हुआ कि बच्ची के साथ ये सब तब तक चलता रहा जब तक कि उसने 14 फरवरी, 2020 को चाइल्डलाइन पर कॉल नहीं किया, जब वह 15 साल की थी. हालांकि, कोर्ट ने पुलिस को हमले की सूचना न देने के मामले में उसकी मौसी को बरी कर दिया है. हेल्पलाइन पर पीड़िता ने बताया था कि उसका अपना पिता 2017 से उसके साथ बलात्कार कर रहा था, जब वह 13 साल की थी.
आरोपी कर्मचारी बिल्डिंग में स्वीपर के तौर पर काम करता था और शराब पीता था. बच्ची की मां की मृत्यु तब हो गई थी जब वह पांच साल की थी. बच्ची ने बताया कि साल 2017 में एक बार उसका पिता शराब पीकर घर आया और उसके बगल में सो गया और उसका यौन शोषण किया. विरोध करने पर उसने उसे गालियां दीं, उसे पीटा और उसे धमकाते हुए कहा ‘अगर तू ज्यादा बोलेगी तो काट डालूंगा’.
डरी हुई लड़की ने फोन पर अपनी मौसी को घटना के बारे में बताया. लेकिन मौसी ने कुछ नहीं किया तो उसने हिम्मत जुटाई और हेल्पलाइन पर फोन किया. मामला दर्ज होने के बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया और लड़की को उसके भाई-बहनों के साथ निगरानी गृह भेज दिया गया. अदालत में आरोपी के बचाव में पूरी तरह से इनकार और झूठे आरोप लगाने का आरोप लगाया गया. पिता की ओर से पेश वकील सुनंदा नांदेवार ने कहा कि उसने पीड़िता को डांटा था क्योंकि वह स्कूल नहीं जा रही थी और वह चौपाटी में लड़कों के साथ घूमना चाहती थी. पिता ने आरोप लगाया कि डांट से व्यथित होकर पीड़िता ने झूठी शिकायत दर्ज कराई है. नांदेवार ने यह भी कहा कि घटना के बाद पीड़िता को मासिक धर्म में कोई समस्या नहीं हुई.
मौसी की ओर से पेश अधिवक्ता कलाम शेख ने दलील दी कि वह पीड़िता के साथ नहीं रह रही थी और पीड़िता ने अपनी दो बुआओं के कहने पर उसे झूठा फंसाया है. राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक गीता मलंकर ने दलील दी कि पीड़िता के साक्ष्य चिकित्सा साक्ष्य से समर्थित हैं. पीड़िता ने इस तथ्य को अपनी मौसी को बताया था, लेकिन वह चुप रही, इसलिए वह भी आरोपी के कृत्य की रिपोर्ट न करने के लिए समान रूप से उत्तरदायी है.
न्यायाधीश अश्विनी डी लोखंडे ने पाया कि बचाव पक्ष ने यह तर्क देने की कोशिश की थी कि पीड़िता ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत अपना बयान दर्ज करते समय मजिस्ट्रेट के सामने ‘शारीरिक संभोग’ शब्द नहीं कहा था. हालांकि, न्यायाधीश ने कहा,’यौन उत्पीड़न के मामलों में यह उचित नहीं है कि पीड़िता को आरोपी द्वारा कृत्य करते समय उसकी हर हरकत के बारे में बताना चाहिए. प्रत्येक पीड़िता के लिए यह बताना पर्याप्त है कि उसके साथ यौन उत्पीड़न व्यक्ति द्वारा किया गया है. विस्तृत विवरण देना उचित नहीं है. तदनुसार, आरोपी द्वारा विशेष शब्दों के साथ खेलना उनकी मदद नहीं करता है.’
न्यायाधीश ने कहा कि पीड़िता की अन्य दो बहनें भी घटना की गवाह हैं, लेकिन वे इतनी छोटी थीं कि जांच अधिकारी ने उनके बयान दर्ज नहीं किए. यह मानते हुए कि’इसमें कोई संदेह नहीं कि पीड़िता आरोपी की असली बेटी है, लेकिन आजीवन कारावास की सजा देना कठोर सजा होगी. क्योंकि आरोपी व्यक्ति का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था और जेल अधिकारियों ने उसके आचरण के बारे में कोई शिकायत नहीं की थी, न्यायाधीश ने 40 वर्षीय व्यक्ति को 20 साल की सजा सुनाई.