शनिवार का दिन. तारीख 5 अक्टूबर. दोपहर के 12 बजकर 15 मिनट हुए थे. अचानक फोन पर एक कॉल आती है. नंबर अंजान था लेकिन मैं उठा लेती हूं (+00918380889795). दूसरी तरफ से IVR कॉल रिकॉर्डेड आवाज आती है- ये कॉल फेडेक्स कूरियर कंपनी से है. अपने कूरियर की डिटेल जानने के लिए 1 दबाएं. कूरियर का ट्रैकिंग अपडेट जानने के लिए 2 दबाएं. कूरियर सुनकर मुझे थोड़ी हैरानी तो हुई फिर लगा कि किसी ने ऑफिस से जुड़ा कोई पार्सल भेजा होगा या फिर बीते दिनों किए गए अमेजॉन के ऑर्डर का डिटेल होगा. यही सोचते हुए मैंने 1 नंबर दबाया. ये मेरी उस दिन की गई पहली गलती थी और फिर गलती पर गलतियां होती गईं और जब मुझे समझ आया तब तक मैं घंटों का डर, ट्रॉमा, मेंटल टॉर्चर झेल चुकी थी. अपने संभावित हश्र को लेकर रो चुकी थी क्योंकि सबकुछ जानते-समझते और साइबर फ्रॉड की खबरों से अच्छी तरह वाकिफ होने के बावजूद मैं डिजिटल अरेस्ट हो चुकी थी!!!
मेरी मुसीबतों की कहानी एक नंबर दबाने से ही शुरू होती है. ये नंबर दबाते ही फोन के दूसरी तरफ से आवाज आई- ‘मैं फेडेक्स कूरियर कंपनी से करण वर्मा बात कर रहा हूं. बताइए मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं.’ मैंने बताया- ‘सर मेरे पास कॉल आया था. मैंने आपकी कंपनी से कोई कूरियर नहीं भेजा, अगर किसी ने मुझे भेजा हो तो प्लीज डिटेल बता दें.’
करण वर्मा नाम से बात कर रहा शख्स कॉल होल्ड करता हैं. थोड़ी देर बाद फिर उसकी आवाज आती है- ‘मैम कूरियर आपने भेजा है. आप सेंडर हैं’. मैंने झल्लाते हुए कहा- ‘मैंने कोई कूरियर नहीं भेजा है, फर्जी कॉल करना बंद करें’. फोन के उस पार से आवाज आती है- ‘मैम आपका कूरियर सीज किया गया है मुंबई एयरपोर्ट पर’.
सुनकर मुझे हंसी आ गई. मैंने कहा-‘सर किसी और को ये बातें बताइए, मैंने जब कूरियर भेजा ही नहीं तो सीज क्या होगा’. जवाब में कॉलर ने आवाज में सख्ती के साथ कहा- ‘आपका कूरियर मुंबई से ताइवान भेजा जा रहा था. उसमें ऐसी चीजें निकली हैं जिसके बाद उसे सीज किया गया. आपका आधार कार्ड है यहां, वेरिफिकेशन के बाद ही ये कॉल आया. मैं समझ सकता हूं कि आपने नहीं भेजा होगा लेकिन मुझे डर है कि आपके आधार कार्ड का गलत इस्तेमाल किया गया है. आपको इसपर शिकायत करनी चाहिए. फेडेक्स कंपनी को भी ये कंप्लेंट लेटर मुंबई पुलिस को देना होगा. हमें भी बताना होगा कि आपका आधार गलत इस्तेमाल किया गया है.’
कॉलर की आवाज में इतनी संजीदगी थी कि मुझे यकीन हो गया कि मेरे साथ जरूर कुछ तो गड़बड़झाला हुआ है जिसे सुधारना जरूरी है. यही मानते हुए मैंने पूछा- बताइए, क्या करूं मैं? उसने कहा कि आपकी पूरी कॉल रिकॉर्ड की जा रही है. बीप के बाद आपको बोलना है कि कूरियर से आपका कोई लेना-देना नहीं है. ये रिकॉर्डिंग हम मुंबई पुलिस को भेजेंगे.
जैसा कहा गया था, मैंने दोहरा दिया. ‘मेरा फेडेक्स के किसी कूरियर से कोई लेना देना नहीं. मुंबई पुलिस मेरी मदद करें. मेरे आधार कार्ड का गलत इस्तेमाल हुआ है.’
मुझे लगा कि अब काम हो चुका. लेकिन तभी करण वर्मा ने नया बम फोड़ा- ‘आपको भी मुंबई पुलिस से बात करनी होगी. हमें क्लेरिफिकेशन नोट देना होगा’. अब मैं झल्ला चुकी थी. ‘सर, मुझे कोई नंबर नहीं पता, न मेरा कूरियर है. आपने जो कहा, मैंने कर दिया. अब मेरी तरफ से माफी’. लेकिन करण वर्मा अड़ गया- ‘मैम ये आगे के लिए जरूरी है. कूरियर में जो सामान है उसके लिए ये क्लेरिफिकेशन बहुत जरूरी है.’ मैं पहली बार सकते में थी. मैंने पूछा-ऐसा क्या है सामान में?
यही वो पल था जब मेरे डर का आभास सामने वाले को हो चुका था. इन कुछ सेकंड्स में ही तय हो गया कि मुझे डिजिटल अरेस्ट किया जाएगा. इसके बाद शुरू हुए मेंटल टॉर्चर का सिलसिला लंबा चलने वाला था. अब जबकि मैं दफ्तर में अपनी शिफ्ट पूरी करती हुई ये खबर लिख रही हूं तब भी मुझे आशंका है कि शायद कुछ हुआ हो, जिसमें मेरी आईडी का गलत इस्तेमाल हुआ हो.
करण वर्मा ने कहा- मैम, मैं आपकी कॉल मुंबई पुलिस डिपार्टमेंट में ट्रांसफर कर रहा हूं. वहां आप अपनी शिकायत दर्ज कर दें. वे लोग आपसे कूरियर डिटेल पूछेंगे. उसकी जानकारी एक पेन-पेपर पर लिख लें.
मैंने लिखना शुरू किया…
सामान की डिटेल-
Department name – FedEx Courier Company
Customer care – Karana Verma
Receiver name- Zhang Lin
Mobile number – 8862737889
Receiver Address- house number 112/3
Sanbei road, Paipei city, District Datong
Taiwan – 104001
Parcel tracking id 728932129197
Parcel item- 5 passport, 3 bank credit card
4 kg cloth, 1 laptop Hp Company, 200 gram ndma
ICICI bank credit card last digit- 1551
Payment 16754
डिटेल लिखते हुए मैंने कहा- ‘ये मेरा क्रेडिट कार्ड नहीं, न मैं ताइवान में किसी को जानती हूं. और ये NDMA क्या होता है?’ जवाब जो आया उसने पैरो तले से जमीन खींच ली- ‘ये ड्रग्स है मैडम. इसी वजह से आपको ये कॉल की गई है. आपका आधार कार्ड गलत हाथों में पड़ गया होगा.’
ड्रग्स सुनते ही मेरे होश उड़ चुके थे. सारी बातचीत इतनी सफाई से की गई कि लगा शिकायत करना जरूरी है. जैसे गाड़ी चोरी होने पर शिकायत की जाती है, क्योंकि गलत इस्तेमाल से पहले हम बताना चाहते हैं कि वो चोरी हो चुकी है. यही सोचते हुए मैंने कहा- ‘करिए कॉल ट्रांसफर. मैं मुंबई पुलिस से बात करती हूं.’
करण वर्मा ने कॉल ट्रांसफर करते हुए साथ में जोड़ा- ‘शिकायत दर्ज होने के बाद मुंबई पुलिस से क्लेरिफिकेशन नोट ले लीजिएगा. हमें बस वहीं चाहिए वर्ना ये मामला आगे चलकर आपको ही परेशान करेगा. प्रोफेशनल आवाज में हल्की चिंता की झलक. खुद को सही हाथों में मानते हुए मैं कॉल ट्रांसफर का इंतजार करने लगी’.
दूसरी तरफ अब बैकग्राउंड नॉइस बदल चुकी थी. कुछ-कुछ पुलिस कंट्रोल रूम जैसी अफरातफरी भरी आवाजें. उधर से एक भारी आवाज कहती है- मैं मुंबई पुलिस से विनय कुमार चौधरी. बताइए, क्यों कॉल किया आपने? मैंने उन्हें फेडेक्स कॉल की पूरी डिटेल बताई. सुनने के बाद वो भी करण वर्मा की तरह मदद का आश्वासन देते हैं. मुझसे नाम और आधार नंबर जैसी डिटेल्स मांगी जाती हैं. फोन थोड़ी देर होल्ड रहता है, और जब उठता है तो बोलने का लहजा बदल चुका था. मुझसे पुलिसिया ढंग से ऐसे पूछताछ हो रही थी जैसे मैंने कोई क्राइम किया हो.
-‘आपने ये कूरियर किया है. आप ड्रग्स भेज रही हैं?’.
कौन सा ड्रग्स? मुझे किसी कूरियर का नहीं पता, न मेरा कोई मुंबई में घर है. न कोई रिश्तेदार. मैं क्यों भेजूंगी?
-‘आपका यकीन कौन करेगा. नाम आपका है, आधार आपका है. अगर आप ये दावे के साथ कहती है तो आपको शिकायत दर्ज करनी होगी’.
तभी तो बात कर रही हूं आपसे. फेडेक्स कंपनी ने मुझसे कहा, उन्हें क्लेरिफिकेशन नोट चाहिए.
-‘ठीक है, आप मुंबई ऑफिस आ जाइए’.
सर मैं दिल्ली में हूं. मुंबई नहीं आ सकती.
-‘ठीक है तो ऑनलाइन वीडियो कॉल पर शिकायत दर्ज कीजिए. उसे रिकॉर्ड किया जाएगा. फिर पूरी जांच होगी. आप स्काइप पर आइए’.
मेरे फोन में वो नहीं है. आप जूम पर बात कर लीजिए.
-‘नहीं. आप स्काइप डाउनलोड करें इसी वक्त’.
इस वक्त आवाज का रुआब वैसा था जैसे कोई आर्मी अफसर या बड़ा पुलिस अधिकारी ऑर्डर दे रहा हो. डरते हुए मैंने मान लिया कि मामला सीरियस है और मुझे पुलिस का सपोर्ट चाहिए. ऑडियो कॉल के चलते हुए ही फौरन स्काइप डाउनलोड कराया गया. फिर अजीब बात पूछी गई
-‘आप वाईफाई पर बात कर रही हैं या डेटा से?’.
वाई फाई से.
-‘ठीक है, अपना डेटा बंद करिए. फोन फ्लाइट मोड पर करिए. कॉल रिकॉर्ड के बीच कोई आया, तो आप पर एक्शन होगा’.
(ये सुनकर मैं डर गई थी). ठीक है सर, मैं ध्यान रखूंगी.
-‘कहां पर हो घर या ऑफिस?’.
घर में.
-‘कितने लोग हैं. कौन-कौन साथ रहता है? कितने लोग मिले हैं इसमें?
घर में कोई नहीं.
इसके बाद पूरा घर वीडियो कॉल पर चेक किया गया. दरवाजे बंद कराए गए. पर्दे भी बंद कराए गए. फोन की चार्जिंग का पता करने के साथ उसे भी चार्ज पर लगवाया गया. कहीं एक सेकंड का भी गैप नहीं कि मैं कुछ भी सोच या समझ सकूं. मैं रोबोट की तरह सब करती गई.
घर पूरी तरह बंद कराने के बाद मुझसे कहा गया कि सर्च में मुंबई 911 पर क्लिक करें. क्लिक के बाद कैमरा ऑन कराया गया. सामने नीली वर्दी में ऑफिसर था- विनय कुमार चौधरी. उसने कहा कि आपकी बात मुझसे ही फोन पर हो रही थी. अब आपका बयान दर्ज किया जाएगा. मैं भी तैयार थी. मुझसे कहा गया कि पूरा वाकया, सामान की डिटेल बताइए. जैसे ही मैंने कहा- 200 ग्राम एनडीएमए. पुलिस वाला मुझ पर नाराज होने लगा कि पता है ये क्या है जो आप भेज रही थीं. मैंने बोला सर, ये मैं भेज नहीं रही. ये ड्रग्स है इसका पता भी मुझे अभी ही चला.
जवाब में वो चीखते हुए बोला, ‘झूठ बोलती हो. तुम्हारे आधार की जांच बाकी डिपार्टमेंट में भी हो रही है. अभी रिपोर्ट आएगी और पता चल जाएगा कि क्या किया है’. इस बीच अचानक कैमरा बंद हो जाता है. मैं पूछती हूं तो उधर से आवाज आती है- आपको लेकर सीरियस डिटेल आई हैं, मुझे फोन अपने सीनियर के पास ले जाना होगा. आप कॉल पर रहिए. किसी तरह का कोई मूवमेंट नहीं होना चाहिए. बीच में कोई आना नहीं चाहिए. हर 10 सेकेंड पर आपको कहना होगा – I AM HERE SIR!.
दो मिनट बाद वहां से एक अलग आवाज आती है- आपके नाम पर मनी लॉड्रिंग का केस है. पंजापति सैयद के साथ मिलकर आपने 2 करोड़ रुपयों का हेरफेर किया है. मुझसे मेरे बैंक अकाउंट की डिटेल, घर में कितना कैश है, कितना सोना है, सब पूछा जाता है. जब जवाब में कोई खास संपत्ति नहीं मिली तो आवाज और ज्यादा चीखने लगती है. मुझे स्काइप पर डॉक्युमेंट भेजे जाते हैं. जिनमें चार लोगों के चेहरे हैं. दो लोग अरेस्ट है. मेरे नाम पर भी अरेस्ट वारेंट निकाला गया है.
मेरे साथ फोन पर मुंबई पुलिस थी, जिसके पास जानकारी थी कि मैं न केवल ड्रग्स तस्करी कर रही हूं, बल्कि पैसों का भी हेरफेर कर रही हूं. शक की कोई गुंजाइश नहीं. शनिवार की दोपहर जर्नलिस्ट से मैं एकदम से क्रिमिनल बन चुकी थी.
मुझसे पूछताछ भी उसी अंदाज में होती है. बैंक ऑफ बड़ौदा में मेरे बैंक अकाउंट का खाता है. सारे हेरफेर की डिटेल दी जाती है. मैं रो रही हूं लेकिन रहम की कोई गुंजाइश नहीं. अपराध काफी गंभीर है. उधर बैठे लोग एक के बाद अपराधों की लिस्ट देते हुए उनके सबूत भी दे रहे होते हैं.
फिर लहजा हल्का नर्म पड़ता है मानो आरोपी को अपने लिए सबूत देने का वक्त दिया जा रहा हो. वे कहते हैं- पुलिस का सपोर्ट करिए. सात दिनों तक जांच होगी. आपने जरूर किसी कैफे में या आसपास के शख्स को अपना आधार कार्ड दिया होगा जिसके बाद ये शुरू हुआ है.क्या किसी पर शक है? क्या किसी से कोई कहासुनी है? मैंने साफ इनकार किया.
उस तरफ से कहा गया कि ये बहुत बड़ा स्कैम है. करोड़ों का घोटाला. इस केस में दो लोग अरेस्ट हो चुके. एक नाम आपका भी है. आप जांच में साथ देती हैं तो थोड़ी छूट मिल जाएगी. साथ ही कहा जाता है कि आपके परिवार को खतरा है. जो लोग फ्रॉड कर रहे हैं, उन्होंने आपके परिवार पर नजर रखी हुई है. आपके घर और ऑफिस की हमें खबर है. अगर इस जांच की जानकारी किसी को दी तो दो साल की जेल होगी. ड्रग्स केस कंफर्म हुआ तो 15 साल की जेल होगी.
कंट्रोल रूम की गहमागहमी वाले बैकग्राउंड पर सख्त पुलिसिया लहजा, ये सब इतना असल लगता है कि आप खुद को फंसा हु्आ ही सही, लेकिन ड्रग तस्कर मान बैठेंगे. मुझे यकीन हो गया कि इसके बाद कोई वीकेंड मेरे लिए सुकून, शॉपिंग, मन का खाना या खुली हवा लेकर नहीं आएगा.
फोन पर एक फॉर्मेट दिया जाता है कि इसके हिसाब से अपना नाम, कहां पर हो, क्या कर रहे हो. कितने पैसे खर्च किए हैं. ये सब बताना होगा. आपके सारे अकाउंट सीज हैं. आप किसी तरह के पैसे खर्च नहीं कर सकते, न ही कोई अमाउंट निकाला जा सकता है. आपके आने-जाने, हर मूवमेंट की खबर हमारे पास है. (सबसे हैरानी की बात ये थी कि उन्हें मेरे ऑफिस टाइम की पूरी जानकारी थी, मेरा शेड्यूल पता था. यही वो बातें थी जो यकीन दिला रही थीं कि सब सच है)
पूरे 1 घंटे 30 मिनट चले इस वीडियो कॉल के बाद कहा जाता है कि फोन रख दो.
मैं रोबोट की तरह ही फोन छोड़ देती हूं. कॉल डिसकनेक्ट हो चुकी, लेकिन मैं अब भी कुछ कनेक्ट नहीं कर पा रही थी. जैसे दिमाग पर कोई जैमर-सा लगा था जो कुछ भी बाहर का आने से रोक रहा हो. जैसे-तैसे मैं सोचती हूं कि सब गंवाने पर आ ही गए हैं तो किसी को बता तो दूं. मैं अपने रिलेटिव को फोन करने का सोचती हूं. फिर याद आता है कि शायद मेरी फोन कॉल को ट्रेस किया जा रहा है.
बंद खिड़की-दरवाजों के बीच ही धीरे-धीरे मैं कागज पर पूरा वाकया लिखकर अपने एक रिलेटिव को वीडियो कॉल पर बताती हूं. वो हैरान होकर मुझे व्हाटसऐप पर कॉल करते हैं. मुझे समझाते हैं कि ये सब फेक है, एक ट्रैप है. लेकिन आपका दिमाग इस तर्क को झुठला देता है. उनके कहने पर मैं साइबर क्राइम वालों को फोन करती हूं, जहां ये बताया जाता है कि आप लिखित जानकारी दें. वेबसाइट पर कोशिश करने के बाद भी शिकायत दर्ज नहीं होती.
इसके बाद मैं अपने ऑफिस के एक सीनियर को फोन करती हूं. उन्होंने भी मुझे बताया कि ये सब लगातार हो रहा है. कई लोगों के साथ हो रहा है. ये सब एक स्कैम है. डरो मत. लेकिन मैं डर से भरे सम्मोहन के निकलने को जैसे तैयार ही नहीं थी. मैंने कहा कि ये सब सच है. बस आपको इसलिए फोन किया कि कहीं मेरी वजह से ऑफिस में कोई परेशानी न हो. लेकिन जब उन्होंने लगातार समझाया, ऐसे कई केस बताए जिनमें बिल्कुल मेरी ही तरह कूरियर के नाम पर फ्रॉड हुआ, जिसमें पुलिस, जज सब नकली थी. तब जाकर मुझे यकीन हुआ कि हां मैं किसी ट्रैप में हूं. वो भी साइबर क्राइम में शिकायत करने की बात कहते हैं. मैंने 112 पर कॉल किया तो तुरंत पुलिस आ गई. पुलिसकर्मी भी यही कहते रहे कि ये सब स्कैम है. साइबर क्राइम में इसकी जानकारी दीजिए. पुलिस स्टेशन जाकर भी रिपोर्ट कर सकती हैं.
दहशत में पूरा दिन बीत जाता है. रविवार. 6 अक्टूबर. फिर से करीब 12 बजे वही कॉल (08380726430) आती है. मुंबई पुलिस से क्लेरिफिकेशन नोट भेज दीजिए. मैं करण वर्मा बात कर रहा हूं फेडेक्स कूरियर से. अब मैं पहले से तैयार थी तो मामला आगे नहीं बढ़ा.
अब जबकि ये सब लिख रही हूं तो सोच रही हूं कि ये कितना खतरनाक मेंटल टॉर्चर है, खबरों में पढ़कर जरूर लगता है कि कोई कैसे ऐसे स्कैम में फंस जाता है. लेकिन मुझे भी नहीं पता उस दोपहर मेरे साथ क्या से क्या होता चला गया. सबको ऐसी हेराफेरी से अलर्ट करने वाली मैं खुद घंटों टॉर्चर होती रही. डिजिटल अरेस्ट होने का एहसास, डर अबतक मेरे अंदर है. बहुत ज्यादा अलर्ट रहें. ये स्कैमर आपके डर का ही फायदा उठाते हैं ताकि आप तर्कशक्ति खो दें, सोचने-समझने की स्थिति में न रहें. यहां ये सब लिखने की वजह भी यही कि लोग सावधान रहें, सतर्क रहें.