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एक कैदी की रिहाई इसलिए न हो कि मंजूरी देने वाला CM भी उसी जेल में कैद है, ये तो सूरत–ए–हाल है!

फर्ज कीजिये, किसी कैदी की रिहाई महज इसलिए रुक जाये क्योंकि मंजूरी देने वाला मुख्यमंत्री भी बतौर कैदी जेल में ही हो – ये कुछ और नहीं, असल में, देश की राजनीति और प्रचलित व्यवस्था की ताजातरीन तस्वीर है.

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ये मामला दिल्ली का है. देश भर की तरह दिल्ली में भी जेल से कुछ कैदियों की सजा की मियाद पूरी होने से पहले रिहा किये जाने की व्यवस्था लागू है. ऐसे मामलों में कई बार काफी विवाद भी होता रहा है.

जैसे गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो केस के 11 कैदियों को रिहा कर दिया था, और उस पर काफी बवाल हुआ था. ठीक वैसे ही बिहार में मर्डर केस में सजा काट रहे आनंद मोहन की रिहाई को लेकर भी खासा बवाल हुआ था – लेकिन दिल्ली का मामला गुजरात और बिहार जैसा नहीं है. दिल्ली के मामले में राजनीति बस इतनी ही है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली शराब नीति केस में जेल में बंद हैं – और इसी वजह से कैदियों की रिहाई की फाइल आगे नहीं बढ़ पा रही है. कैदियों के लिहाज से देखें तो अच्छी बात यही है कि उनकी रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है – और कोर्ट ने नोटिस देकर सरकार से वस्तुस्थिति से अवगत कराने को कहा है.

समय से पहले कैसे होती है रिहाई

सीआरपीसी की धारा 432 के तहत राज्य सरकारें किसी भी सजायाफ्ता कैदी की पूरी कारावास अवधि या उसका कुछ हिस्सा रद्द कर रिहा कर सकती है, लेकिन उसके लिए कैदी की तरफ से कुछ शर्तें पूरी की जानी होती हैं. मसलन, कैदी जेल में रहने के दौरान कैदी की चाल-चलन, कोई पुनर्वास कार्यक्रम, कैदी का स्वास्थ्य और सजा काट लेने का समय.

फिलहाल जो प्रक्रिया है उसके मुताबिक, जो कैदी सजा पूरी होने से पहले छोड़े जाने के योग्य होते हैं, दिल्ली सरकार समय से पहले जेल से उनको रिहा करने की सिफारिश करती है. दिल्ली सरकार के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर होते हैं. ये प्रस्ताव मंजूरी के लिए दिल्ली के उप राज्यपाल के पास जाता है, और उनकी मंजूरी के बाद ही जेल से किसी कैदी को रिहा किया जाता है – पेच ये फंस रहा है कि हस्ताक्षर करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि फिलहाल वो जेल में बंद हैं.

लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत पर रिहा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ऐसे ही फाइलों पर दस्तखत की छूट दी थी, जो बेहद जरूरी हों. वरना, उनके तो दिल्ली सचिवालय और दफ्तर जाने पर भी पाबंदी थी.

सुप्रीम कोर्ट ही कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करेगा

अब ये मामला भी सुप्रीम कोर्ट में है, और अदालत ही तय करेगी कि क्या जेल में बंद मुख्यमंत्री सजा-माफी जैसे संवेदनशील मामलों पर फैसला ले सकते हैं या नहीं? एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा हुआ है, और दूसरी तरफ सजा माफी याचिका पर सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी है. अरविंद केजरीवाल को ईडी केस में अंतरिम जमानत सुप्रीम कोर्ट से पहले ही मिल चुकी, जबकि सीबीआई वाले मामले में अदालत के रुख का इंतजार है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली शराब घोटाले में 21 मार्च को गिरफ्तार होने के बाद से जेल में बंद हैं.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच केस में केंद्र सरकार का पक्ष रख रहीं, ASG ऐश्वर्या भाटी से सरकार से निर्देश लेने को कहा है, ताकि जेल में बंद मुख्यमंत्री के ऐसे मामलों में फैसले लेने को लेकर स्थिति स्पष्ट हो सके.

सरकार की तरफ से ASG ऐश्वर्या भाटी और सीनियर वकील अर्चना पाठक दवे की अभी तक दलील यही रही है कि अब तक ऐसी कोई मिसाल सामने नहीं आई है, जिसमें जेल में बंद कोई मुख्यमंत्री किसी कैदी की सजा माफी याचिका पर फैसला लिया हो.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऐसे मामलों में देर होना सही नहीं है. साथ ही, अदालत ने ये भी कहा है कि अगर कोई समस्या है, तो कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है. अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसे मामलों में फैसला लेने के लिए संविधान में स्पेशल पावर दिये गये हैं.

उप राज्यपाल के पास नहीं भेजी गई फाइल

दिल्ली के स्कूली बच्चों को किताबें नहीं मिल पाने का एक मामला दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा था, जिसमें अदालत की तरफ से ऐसी ही चिंता जताई गई थी. उसमें भी दिल्ली की एलजी की तरफ से मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री की औपचारिक सिफारिश जरूरी थी.

कैदियों की रिहाई के मामले में भी एलजी की मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री की सिफारिश नियमानुसार अनिवार्य है,इसीलिए सुप्रीम कोर्ट पूछ रहा है कि कैदियों की रिहाई वाली फाइलों को केजरीवाल क्‍यों नहीं देख पा रहे हैं, उनके काम में क्‍या रुकावट है. जिससे कि ये फाइलें आगे की कार्यवाही के लिए दिल्ली के उप राज्यपाल के पास भेजा जा सके.

वैसे, केंद्र सरकार ने तो एक ऑर्डिनेंस लाकर दिल्ली के उप राज्यपाल को कई तरह की नियुक्तियों का अधिकार दे ही दिया है, जिसके लिए उनको राष्ट्रपति के पास भेजने की भी जरूरत नहीं होगी – देखना है कैदियों की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या आदेश देता है?

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