गर्भावस्था में मिला दुर्लभ ट्यूमर, लेकिन डॉक्टरों ने नहीं मानी हार… जानिए कैसे बचाई दो ज़िंदगियाँ

सैफई : उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई के चिकित्सकों ने एक असाधारण और चुनौतीपूर्ण चिकित्सकीय उपलब्धि हासिल की है. उन्होंने 23 वर्षीय एक गर्भवती महिला को जुवेनाइल नासोफेरिन्जियल एंजियोफाइब्रो नामक एक अत्यंत दुर्लभ बीमारी से सफलतापूर्वक उबारा है.यह रोग आमतौर पर किशोर लड़कों में पाया जाता है, लेकिन एक गर्भवती महिला में इसका मिलना चिकित्सकीय समुदाय के लिए एक विस्मयकारी घटना थी.

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इस जटिल मामले में, डॉक्टरों की टीम ने न केवल सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित कराया, बल्कि एक जटिल शल्यक्रिया के माध्यम से महिला को नया जीवन भी प्रदान किया, वह भी पूरी तरह निःशुल्क.निजी चिकित्सालयों में इस प्रकार के उपचार पर लाखों रुपये का खर्च आता है, जिससे इस विश्वविद्यालय के मानवीय और चिकित्सकीय प्रयासों की चौतरफा सराहना हो रही है.

 

गर्भावस्था के दौरान अचानक शुरू हुआ गंभीर रक्तस्राव
यह मामला इटावा जिले के ग्राम कुसरैना की निवासी एक महिला का है। गर्भावस्था के 32वें सप्ताह में उसे अचानक नाक से अत्यधिक रक्तस्राव शुरू हो गया.स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि उसे कई बार रक्त चढ़ाना पड़ा.सामान्य उपचार से कोई लाभ न मिलने पर, चिंतित स्वजन उसे उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई लेकर पहुंचे.

 

यहां चिकित्सकों के सामने दोहरी चुनौती थी: एक ओर मां के जीवन को बचाना था और दूसरी ओर गर्भ में पल रहे शिशु की सुरक्षा सुनिश्चित करनी थी। डॉक्टरों की टीम ने भ्रूण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रारंभिक उपचार किया और 36वें सप्ताह में सफलतापूर्वक ऑपरेशन कर सुरक्षित प्रसव कराया.यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान ऐसी गंभीर स्थिति में प्रसव कराना अत्यंत जोखिम भरा हो सकता है.

अद्वितीय रोग का पता चलना और उपचार की जटिलता
प्रसव के कुछ ही दिनों बाद, महिला को फिर से रक्तस्राव की समस्या शुरू हो गई. इस बार उसे विश्वविद्यालय के नाक, कान, गला रोग (ENT) विभाग में भर्ती किया गया.विभाग में चिकित्सक डॉ. तेजस्वी गुप्ता और डॉ. नेहा, तथा एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. भावना और डॉ. गर्विता की विशेषज्ञ टीम ने इस मामले को गंभीरता से लिया.

 

उन्होंने दूरबीन के माध्यम से विस्तृत जांच की। जांच के दौरान यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि महिला की नाक में अत्यधिक रक्तसंचारी एक बड़ी गांठ बन गई थी, जो खोपड़ी के आधार (Base of Skull) तक फैली हुई थी। यह स्थिति अत्यंत जोखिम भरी थी क्योंकि खोपड़ी के आधार के पास सर्जरी से मस्तिष्क या अन्य महत्वपूर्ण संरचनाओं को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है.

चिकित्सकों ने पूरी तैयारी और सावधानी के साथ एंडोस्कोपिक विधि (Endoscopic Method) से शल्यक्रिया करने का निर्णय लिया.यह एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है जिसमें छोटे उपकरणों और एक कैमरे का उपयोग करके ट्यूमर को हटाया जाता है, जिससे बड़े चीरे से बचा जा सकता है और रिकवरी तेजी से होती है.विशेषज्ञों ने अत्यधिक कुशलता के साथ इस जटिल सर्जरी को अंजाम दिया और पूरी गांठ को सफलतापूर्वक निकाल दिया.

एक दुर्लभ चिकित्सकीय सफलता और हार्मोनल संबंध
शल्यक्रिया के बाद, निकाली गई गांठ की बायोप्सी जांच की गई, जिसने जुवेनाइल नासोफेरिन्जियल एंजियोफाइब्रोमा (JNA) रोग की पुष्टि की। यह रोग वास्तव में अत्यंत दुर्लभ है, और महिलाओं में तो यह लगभग अपवादस्वरूप ही पाया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार, यह रोग हार्मोनल असंतुलन के कारण सक्रिय हो सकता है, जो गर्भवती महिला में इसकी उपस्थिति को और भी विशिष्ट बनाता है। सर्जरी के बाद महिला अब पूरी तरह स्वस्थ है और उसका नवजात शिशु भी सुरक्षित है.

नाक, कान, गला रोग विभागाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र सिंह चौहान ने इस सफल शल्यक्रिया के लिए पूरी टीम को बधाई दी और उनके समर्पण की सराहना की। साथ ही, विश्वविद्यालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस.पी. सिंह ने भी इस उल्लेखनीय उपलब्धि पर टीम की सराहना की और कहा कि यह सफलता विश्वविद्यालय की बढ़ती चिकित्सा क्षमताओं और मरीजों को उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएं प्रदान करने की प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत प्रमाण है.

यह मामला न केवल एक चिकित्सकीय सफलता है, बल्कि यह उन मरीजों के लिए एक आशा की किरण भी है जो दुर्लभ और जटिल बीमारियों से जूझ रहे हैं, खासकर जब उन्हें निःशुल्क और उच्चस्तरीय उपचार की आवश्यकता हो.

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