कहते हैं कि न्याय की राह लंबी और कठिन जरूर होती है, लेकिन अगर उस राह पर कोई संकल्प लेकर चलता है तो अंततः मंजिल मिलती ही है. ऐसी ही एक मिसाल कायम की है अनूपपुर जिले के जमुना कॉलरी के रहने वाले अभिषेक पांडे ने, जिन्होंने अपने पिता के सम्मान और न्याय के लिए 11 वर्षों तक संघर्ष किया और अंततः मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से जीत हासिल कर अपने पिता को पुनः वर्दी दिलाई.
साल 2013 में मिथिलेश पांडे उमरिया थाना में आरक्षक पद पर पदस्थ थे, लेकिन विभागीय जांच के बाद उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. मिथिलेश पांडे ने बार-बार पुलिस विभाग के आला अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई, लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया. जब सारी उम्मीदें टूटने लगीं, तब उन्होंने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, जबलपुर का दरवाजा खटखटाया और न्याय की मांग की.
मामला अदालत में पहुंचा, लेकिन विभागीय अड़चनों के कारण निर्णय में वर्षों लग गए. इस बीच मिथिलेश पांडे का परिवार मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से संघर्ष करता रहा. घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी, समाज के ताने सुनने पड़े, लेकिन पांडे परिवार ने हार नहीं मानी. इसी बीच उनके पुत्र अभिषेक पांडे ने कानून की पढ़ाई पूरी की और वकालत की डिग्री प्राप्त कर जबलपुर हाई कोर्ट में अभ्यास शुरू किया.
अभिषेक ने खुद लड़ा अपने पिता का केस
अधिवक्ता बनने के बाद अपने कैरियर की शुरुआत करते हुए अभिषेक ने सबसे पहले अपने पिता का केस उठाया और न्याय के लिए पूरा जोर लगाया. 2024 में हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी के समक्ष उन्होंने अपने पिता के पक्ष में मजबूत तर्क रखते हुए सभी आरोपों को खारिज करवाया.
न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की अदालत में उन्होंने पूरे आत्मविश्वास, तर्क और संवेदनशीलता के साथ अपने पिता का पक्ष रखा. जिरह के दौरान उन्होंने अदालत के समक्ष यह साबित किया कि उनके पिता के खिलाफ लगे आरोप निराधार हैं और उन्हें न केवल नौकरी से गलत तरीके से हटाया गया, बल्कि उनके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचाई गई. उनकी मेहनत रंग लाई और 17 मई 2024 को हाई कोर्ट ने आदेश जारी किया कि मिथिलेश पांडे को पुनः सेवा में बहाल किया जाए.
5 अप्रैल को पिता ने अनूपपुर थाने में दोबारा जॉइन की नौकरी
कोर्ट के आदेश के बाद अनूपपुर के पुलिस अधीक्षक ने उन्हें फिर से ड्यूटी पर तैनात किया. 5 अप्रैल 2025 को मिथिलेश पांडे ने अनूपपुर थाने में अपनी उपस्थित दर्ज कराई. वह दिन पांडे परिवार के लिए सिर्फ नौकरी की बहाली नहीं, बल्कि न्याय, आत्म सम्मान और विश्वास की वापसी का दिन था. पिता की आंखों में आंसू थे गर्व और कृतज्ञता के. बेटे ने न सिर्फ वकालत की, बल्कि अपने पिता के सम्मान को वापस लाया.
स्थानीय लोगों ने भी इस उपलब्धि पर पांडे परिवार को बधाई दी और अभिषेक पांडे की सराहना की, जिन्होंने साबित कर दिया कि बेटा अगर ठान ले तो वह पिता की लड़ाई भी जीत सकता है. यह कहानी एक बेटे की अटूट निष्ठा, संघर्ष और प्यार की मिसाल बन गई है, जो वर्षों तक लोगों के दिलों में प्रेरणा बनकर जीवित रहेगी