फ्रांस दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को दुनिया के सबसे महंगे वैज्ञानिक प्रयोग ‘इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER)’ का दौरा किया. इस दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी पीएम के साथ थे. ITER दुनिया के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स में से है जिसके तहत Mini Sun यानी धरती पर ‘छोटा सूरज’ बनाया जा रहा है जो असीमित मात्रा में बिजली पैदा करेगा.
ITER प्रोजेक्ट के तहत दुनिया का सबसे बड़ा टोकामक भी बनाया जा रहा है. टोकामक डोनट के आकार का डिवाइस होता है जो चुंबकीय क्षेत्रों का इस्तेमाल कर न्यूक्लियर फ्यूजन रिसर्च के लिए प्लाज्मा की संख्या को सीमित करता है. इस प्रोजेक्ट के तहत बनाए जा रहे पावर प्लांट से 500 मेगावाट न्यूक्लियर एनर्जी का उत्पादन किया जाएगा.
क्या है ITER प्रोजेक्ट?
साल 2006 में फ्रांस के राष्ट्रपति भवन एलिसी पैलेस में सात देश iter प्रोजेक्ट पर साथ काम करने को राजी हुए थे. ये देश थे- अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, रूस, चीन, भारत और दक्षिण कोरिया. आज इस प्रोजेक्ट में 30 देश अपना योगदान दे रहे हैं.
इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है न्यूक्लियर फ्यूजन यानी परमाणु संलयन में महारत हासिल करना. न्यूक्लियर फ्यूजन सूर्य और बाकी तारों में होने वाली एक प्रक्रिया है जिससे उनके गर्मी पैदा होती है. लेकिन पृथ्वी पर न्यूक्लियर फ्यूजन की नकल कर एक छोटा सूरज बना लेना बेहद मुश्किल है. लेकिन अगर ऐसा कर लिया जाए तो असीमित मात्रा में ऊर्जा मिल सकती है और इसमें जीवाश्म ईंधन की तरह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी नहीं होगा.
‘हम कभी न डूबने वाला सूरज बना रहे हैं’
आधुनिक समय में दुनिया में जो न्यूक्लियर एनर्जी इस्तेमाल की जाती है, वो परणाणु विखंडन यानी न्यूक्लियर फिजन पर आधारित है. इस प्रक्रिया में रेडियोएक्टिव कचरा निकलता है जो लंबे समय तक पर्यावरण में रहता है. लेकिन न्यूक्लियर फ्यूजन में किसी तरह का कचरा नहीं निकलता.
iter प्रोजेक्ट का सात सालों तक नेतृत्व करने वाले फ्रांस के बर्नार्ड बिगोट ने इस प्रोजेक्ट को लेकर कहा था, ‘हम यहां जो करने की कोशिश कर रहे हैं, वह वास्तव में पृथ्वी पर एक छोटा सा कृत्रिम सूरज बनाने जैसा है. यह फ्यूजन पावर प्लांट हर समय चालू रहेगा. यह सूरज कभी नहीं डूबेगा.’
कैसे काम करेगा धरती का ‘सूरज’?
धरती का सूरज यानी iter प्रोजेक्ट सूरज के न्यूक्लियर फ्यूजन पर आधारित है. इस प्रक्रिया में रिएक्टर में एक छोटा सूरज बनाया जा रहा है जिसमें ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए दो हाइड्रोजन परमाणुओं को बहुत अधिक वेग से एक साथ धकेला जाता है, इससे दोनों जुड़कर हीलियम परमाणु बनाते हैं. इस दौरान न्यूट्रॉन भी बनता है जिससे अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा निकलती है.
प्रोजेक्ट के विशेषज्ञों का मानना है कि फ्यूजन एनर्जी पैदा करना अपने आप में कोई मुश्किल काम नहीं है बल्कि इसे बनाए रखना मुश्किल काम है. इसी चीज को हासिल करने के लिए वैज्ञानिक और टेक्निकल एक्सपर्ट दशकों से मेहनत कर रहे हैं
कितना बड़ा है iter प्रोजेक्ट?
iter प्रोजेक्ट काफी विशाल है जिसके बारे में जानकर हैरानी होती है. प्रोजेक्ट का आकार इतना बड़ा है जिसमें 39 बड़ी इमारतें बन जाएं. साइट पर मौजूद वैज्ञानिकों का कहना है कि न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली डिवाइस टोकामक का वजन 23,000 टन है. यह वजन तीन एफिल टावर के संयुक्त वजन के बराबर है.
इस रिएक्टर में दस लाख घटक शामिल हैं, जो कम से कम एक करोड़ छोटे भागों में बंटे हुए हैं. रिएक्टर में लगभग 4,500 कंपनियों से जुड़े सैकड़ों वैज्ञानिक और कर्मचारी दिन-रात काम कर रहे हैं.
कितना हो रहा खर्च?
इस मेगा प्रोजेक्ट में पानी की तरह पैसा खर्च हो रहा है. शुरु में प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 5 अरब डॉलर थी लेकिन समय के साथ यह बढ़कर 22 अरब डॉलर हो गई है. लेकिन अमेरिका के ऊर्जा विभाग का अनुमान है कि प्रोजेक्ट की कीमत 65 अरब डॉलर तक हो सकती है. इस खर्च को देखते हुए इस प्रोजेक्ट को दुनिया का सबसे महंगा वैज्ञानिक प्रयोग कहा जा रहा है.
माना जा रहा था कि प्रोजेक्ट 2020 में पूरा हो जाएगा लेकिन अभी तक यह पूरा नहीं हो पाया है. जुलाई 2024 में रिएक्टर पूरी तरह से असेंबल हो पाया था. वैज्ञानिकों का कहना है कि 2039 तक यह प्रोजेक्ट काम करना शुरू कर देग
भारत का योगदान कितना?
भारत 2005 से ही iter प्रोजेक्ट का हिस्सा रहा है और इसमें वो 10 प्रतिशत की हिस्सेदार है. भारत ने इस प्रोजेक्ट के लिए 17,500 करोड़ रुपए देने का वादा किया है, जो कि लागत का लगभग 10 प्रतिशत है. यूरोपीय संघ प्रोजेक्ट की लागत का 45 प्रतिशत खर्च उठा रहा है. भारत की तरफ से 25 से 30 वैज्ञानिक भी रिएक्टर के लिए हो रहे प्रयोग में योगदान दे रहे हैं.
इसके अलावा, भारत ने रिएक्टर में एक और अहम योगदान किया है और वो है रिएक्टर को ठंडा करने के लिए क्रायोस्टेट फ्रीजर. रिएक्टर को ठंडा रखने में इस्तेमाल हो रहा क्रायोस्टेट गुजरात की larsen & toubro कंपनी ने बनाया है.
माना जाता है कि यह क्रायोस्टेट दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा फ्रीजर है. यह टोकामक के अंदर सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट और वैक्यूम वेसल के बाहर लगाया जाएगा. यह रिएक्टर को -193 डिग्री सेल्सियस तक की ठंडक देगा. क्रायोस्टेट 54 यूनिट्स से मिलकर बना है जिसे 2020 में फ्रांस भेजा गया था. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस क्रायोस्टेट का वजन 3,800 टन है और इसकी ऊंचाई कुतुब मीनार की आधी है.
भारत इस प्रोजेक्ट में भले ही 10 फीसद का सहयोग कर रहा है लेकिन उसे न्यूक्लियर फ्यूजन टेक्नोलॉजी में 100 फीसद तक एक्सेस मिलेगी.