नई दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक मेधा पाटकर को दोषी ठहराया गया है। एक्टिविस्ट मेधा पाटकर को जुर्माना या दो साल की जेल या दोनों का सामना करना पड़ सकता है। वर्तमान में दिल्ली के राज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा 2006 में शिकायत दर्ज करवाया गया था और इसकी सुनवाई दिल्ली के एक अदालत में चल रही थी। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने इस मामले मेधा पाटकर को दोषी ठहराया है। मजिस्ट्रेट शर्मा ने कहा कि प्रतिष्ठा किसी व्यक्ति के लिए सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक है, क्योंकि यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों दोनों को प्रभावित करती है और समाज में किसी व्यक्ति की स्थिति पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ता पाटकर और एलजी सक्सेना की कानूनी लड़ाई वर्ष 2000 से चली आ रही है, जब उपराज्यपाल अहमदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे। एक्टिविस्ट मेधा पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था। वीके सक्सेना ने 2006 में एक टीवी चैनल पर उनके बारे में “अपमानजनक” टिप्पणी करने और “अपमानजनक” प्रेस बयान जारी करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता पाटकर के खिलाफ दो केस भी दर्ज कराए थे।
नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा दावा किया गया था कि गुजरात में सरदार सरोवर बांध का निर्माण, जिसका उद्घाटन 2017 में किया गया था, 40,000 परिवारों को प्रभावित कर सकता है। इसने विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था, जिसमें कहा गया था कि परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़ सकते हैं, जो डूब सकते हैं। 1961 में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसकी आधारशिला रखे जाने के बाद से ही यह परियोजना विवादों में घिर गई थी। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर लगातार मोदी सरकार की नीतियों का भी विरोध करती आ रही है ।