बेंगलुरु में पानी की किल्लत अभी ठीक नहीं हो पाई कि देश के दूसरे IT हब चेन्नई का पानी सूखने लगा है। यहां की सबसे बड़ी और 43% आबादी की प्यास बुझाने वाली वीरानम लेक सूख चुकी है. कुछ पोखरों में ही पानी बचा है. बीते साल जुलाई में ऐसे हालात बने थे. इस बार तीन महीने पहले ही स्थिति बिगड़ गई है.
28 फरवरी से वीरानम लेक से सप्लाई बंद है. चेन्नई मेट्रोपोलिटन वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड इसे ‘डेड’ घोषित कर चुका है. बोर्ड के मुताबिक पिछले साल इसी समय लेक में 773.95 मिलियन क्यूबिक फीट (MCFT) पानी था. इसकी क्षमता 1465 MCFT की है.
दूसरे जल भंडारण स्रोतों की हालत भी दयनीय है. इसलिए सप्लाई आधी कर दी है. पानी एक दिन छोड़कर मिल रहा है. बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चेन्नई में अक्टूबर के आखिर में मानसूनी बारिश होती है, तब तक हमें भूजल से काम चलाना होगा. हालांकि, वो भी तेजी से घट रहा है.
सतही, भूजल और पीने योग्य समुद्री जल से चेन्नई की भरपाई होती है, लेकिन अभी सतही जल पूरी तरह सूखने के कगार पर है. भूजल भी तेजी से गिर रहा है. अभी 13.222 TMC भूजल भंडारण की जरूरत है, लेकिन 7.746 TMC ही बचा है. बीते साल यह 9.262 TMC था.
चेन्नई के पड़ोसी शहर मेदावक्कम में बोरवेल अप्रैल में ही सूख गए हैं. जबकि इस इलाके में नानमंगलम रिजर्व फॉरेस्ट भी है, फिर भी यहां का भूजल स्तर तेजी से गिरा है. लोग टैंकरों से काम चला रहे हैं. इसके रेट ₹1500 तक हैं.
चेन्नई के 90 लाख लोगों की प्यास बुझाने के लिए हर महीने 2232 मिलियन लीटर्स पानी (MLD) चाहिए, जबकि बोर्ड 1070 MLD ही दे पा रहा है. IIT मद्रास और अन्ना यूनिवर्सिटी ने पिछले साल चेन्नई के जलसंकट पर स्टडी की थी. इसके मुताबिक डिमांड और सप्लाई में अंतर 2019 में 525 MLD का था, जो अब 852 MLD है.
2030 में डिमांड 2365 MLD प्रति दिन हो जाएगी. अन्ना यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज रिसर्च के पूर्व डायरेक्टर के. पलानीवेली के मुताबिक पानी का मिस मैनेजमेंट और जलवायु परिवर्तन से हालात और बिगड़ेंगे. जल्द ही चेन्नई में जीरो वाटर डे भी हो सकता है.