अगर आपने नब्बे के दशक के बिहार को देखा-जाना-सुना है तो बहुत मुमकिन है कि आप इन दो नामों से जरूर परिचित होंगे. ये दो नाम हैं साधु यादव और सुभाष यादव. नब्बे के दशक में कहा जाता था कि लालू यादव S-1 और S-2 से घिरे होते थे. तब आरजेडी में S-1 का अर्थ होता था साधु यादव और S-2 माने सुभाष यादव.
कभी लालू यादव के दुलरुआ साले रूप में फेमस साधु और सुभाष बिहार की राजनीति का वो उपकेंद्र हुआ करते थे जहां ठेकेदारियां तय की जाती थी, ट्रांसफर पोस्टिंग फिक्स हुआ करता था और ये दोनों चेहरे आरजेडी की गाड़ी खींचने वाले विश्वस्त पायलट हुआ करते थे.
कहने का मतलब है कि बिहार की पूर्व मु्ख्यमंत्री राबड़ी देवी के सगे भाई साधु और सुभाष यादव दीदी और जीजा के भरोसेमंद सिपाही थे. लेकिन ‘राजनीति’ की राह ही इतनी रपटीली है कि यहां भाई-भाई, भाई-बहन, जीजा-साला के बीच अदावतें और उलझनें पैदा हो जाती है.
1990 के दशक में पटना स्थित 1 अणे मार्ग यानी कि सीएम हाउस की चहलकदमियों का राजदार रहे सुभाष यादव की अब अपने जीजा और दीदी लालू यादव और राबड़ी देवी से एकदम नहीं पटती है.
इस बीच सुभाष यादव ने 90 के दौर के बिहार की ‘किडनैपिंग इंडस्ट्री’ को लेकर ऐसा खुलासा किया है जिससे बिहार में राजनीतिक तूफान आ सकता है.
सुभाष यादव ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उस दौर में बिहार में जो अपहरण हुआ करते थे उसमें बंधक को छुड़ाने के लिए दी जाने वाली फिरौती की डील लालू यादव करवाते थे.
सुभाष यादव ने पटना के वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत प्रत्यूष के यूट्यूब चैनल सिटी पोस्ट लाइव को दिए एक इंटरव्यू में कही है. सुभाष याव से पत्रकार श्रीकांत प्रत्यूष ने स्वयं बात की है.
पूर्व राज्यसभा सांसद और बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य सुभाष यादव ने आरोप लगाया है कि एक किडनैपिंग केस के लिए बीच-बचाव सीएम हाउस में हुआ था. और इस मामले को आरजेडी नेता प्रेमचंद गुप्ता और लालू जी ने फरियाया था.
सुभाष यादव ने बातचीत के दौरान कहा, “हम लोग कभी कुछ किए ही नहीं तो किसी मामले में फंसते कैसे.आपको पता होगा… एक किडनैपिंग हुई थी. पूर्णिया साइड में. अररिया में. त के पइसा लिया. किसके ऊपर आरोप लग रहा था. जाकिर हुसैन पर आरोप लगा था, अभी भी जिंदा हैं, शहाबुद्दीन के फोन, प्रेमचंद गुप्ता के फोन, लालू यादव के फोन जाता था जाकिर हुसैन के पास… कि छोड़ दो. लेकिन वो नहीं लिया था. दूसर कोई किया था. बिहार का था. सहरसा जिला का रहने वाला था. काला दियर में रखे था उसको, नाव पर. हमलोग को सब पता था.”
सुभाष यादव से पूछा गया कि क्या इस केस का बीच बचाव सीएम हाउस में हुआ था? तो उन्होंने कहा, “हां एकदम हुआ था. प्रेमचंद गुप्ता, लालू जी ने फरियाया था. जो आदमी किया वो मर गया. ई लोग तो खुद फरियाता था, शहाबुद्दीन, लालू यादव, प्रेमचंद गुप्ता. उस मामले में.”
राबड़ी देवी के सगे भाई सुभाष यादव ने इस मामले पर कहा कि, “वो में टेकरीवाल साहब फायर हो गए थे, उन्हीं के रिश्तेादारी था कोई, उन्हीं के पास आ रहा था मीटिंग करने… किडनैप हो गया. इ में कौन दू राय है. 6 करोड़ रुपया लोग लिया, दिल्ली में लिया रुपया… अग्रवाल बनिया लिया. लेकिन कौन लिया ये तो बनिया बताएगा न. कि हम बताएंगे”
“जाकिर को इ लोग बार बार टॉर्चर करता था, जाकिर मेरे पास रहता था, मेरे साथ था, मेरे कहने पर पार्टी में आया था. उ सारी चीज बताता था, भइया इ लोग धमका रहा है हमको, फलना फलना ने किया है.”
इसके बाद सुभाष यादव ने लालू यादव के राज में शोरूम से गाडियों को उठवाने के मामले पर बयान दिया. उन्होंने कहा, “गाड़ी आजाद गांधी थोड़े ही उठाए थे, लालू जी के कहने पर हुआ था. बच्चा राय जी थे, आजाद गांधी थे, ई लोग तो साथे रहते थे… उठाया नहीं गया था, मांगा गया था. टाटा मोटर्स से गाड़ी आया था, 15-16 गो, शादी-विवाह के बाद गाड़ी सुबह वापस कर दिया गया. ”
बता दें कि आरजेडी अध्यक्ष अध्यक्ष लालू यादव 10 मार्च 1990 को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. 10 मार्च 1990 से लेकर 6 मार्च 2005 तक बिहार में कुछ मामूली हिचकोलों और ब्रेक को छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (rjd) की सरकार रही. मसलन पहली बार 28 मार्च से लेकर 4 अप्रैल 1995 तक बिहार राष्ट्रपति शासन के हवाले रहा. दूसरी बार 11 फरवरी से लेकर 9 मार्च 1999 तक एक बार फिर में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ.
तीसरा ब्रेक वर्ष 2000 में आया जब 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार 7 दिनों के लिए सीएम बने. लेकिन वे बहुमत नहीं साबित कर पाए और 10 मार्च को समता पार्टी की सरकार गिर गई. 11 मार्च 2000 को राबड़ी देवी फिर से बिहार की मुख्यमंत्री बनीं. ये लालू-राबड़ी परिवार के हाथों में प्रत्यक्ष सत्ता का आखिरी दौर था.
सुभाष यादव ने कहा कि ‘बिहार में हउवा बना दिया गया कि सुभाष यादव चोर है. नाम बिगाड़ दिया गया.’ जब उनसे पूछा गया कि किसने उनका नाम बिगाड़ा तो सुभाष यादव ने कहा, “घर के लोग, लालू-राबड़ी और कौन बिगाड़ेगा.”
सुभाष यादव ने इसकी वजह भी बताई. उन्होंने कहा, “बेटा जवान हो रहा था, बेटी सयानी हो गई थी, शादी-विवाह हो गया. इसलिए, अब हमलोग की कोई जरूरत नहीं रह गई थी. उनको डर था, चार-पांच आदमी भड़काते रहते थे. भड़क गए ई लोग, अपना काम किया, तो आज ई लोग रोड़ पर हैं.”
सुभाष यादव बताते हैं कि लालू-राबड़ी परिवार से अलग हुए 21 साल हो गए. इस बीच मनमुटाव दूर करने की कोई पहल नहीं हुई. न उन्होंने पहल की, न ही इन्होंने पहल की.