खरगोन जिले के पिपलगोन में आज रविवार से तीन दिवसीय विधान मंडल की शुरुआत हो गई। जैन समाज के इस धार्मिक आयोजन की खास बात है कि विधान जिन मुनि पूज्य सागर महाराज के सानिध्य में हो रहा है, उनका गृहस्थ जीवन पिपलगोन में ही बीता है। यहीं उनका जन्म और शिक्षा हुई।
उनके चक्रेश जैन से मुनि पूज्य सागर बनने की कहानी भी रोचक है। वे दो क्षुल्लकों को बस तक छोड़ने गए, लेकिन फिर वापस नहीं लौटे। करीब 12 साल बाद मुनिश्री बनकर अब जन्मभूमि वापस आए हैं।
मुनि पूज्य सागर महाराज के सांसारिक जीवन के छोटे भाई भूपेंद्र जैन ने बताया- 3 जुलाई 1980 को पिपलगोन में जन्मे चक्रेश ने गांव के सरकारी स्कूल में ही 10वीं तक की शिक्षा हासिल की। चक्रेश सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय थे।
ब्रह्मचर्य व्रती भैया के साथ चर्चा में जागा वैराग्य भूपेंद्र जैन ने बताया कि करीब 27 साल पहले घर में दो ब्रह्मचर्य व्रती रिश्तेदार राजू भैया और चक्रेश भैया आए थे। पिता ने बड़े भाई चक्रेश को उन्हें सनावद बस स्टेंड तक छोड़ने के लिए कहा। उस छोटी सी यात्रा में चक्रेश का ब्रह्मचर्य व्रती भैयाओं से जीवन के अर्थ पर गहन मंथन चला।
इसी दौरान उनके मन में वैराग्य जागा। उनका यह निर्णय जीवन के स्थायित्व और आत्मिक शांति की खोज से प्रेरित था। उन्होंने गांव लौटने की बजाय आत्म-साधना का मार्ग अपनाने का निर्णय लिया और वे घर न लौटते हुए ब्रह्मचर्य व्रती भैया के साथ राजस्थान चले गए।
2008 में क्षुल्लक, 2015 में मुनि दीक्षा ली उन्होंने 9 फरवरी 1998 को राजस्थान के बिजोलिया में आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया। इसके बाद 23 अप्रैल 2008 को ढेचा में क्षुल्लक दीक्षा और 1 मई 2015 को भीलूड़ा में मुनि दीक्षा ग्रहण की।
राजनीति के साथ सामाजिक कामों में भी सक्रिय रहे भूपेंद्र ने बताया कि गृहस्थ जीवन में बड़े भाई चक्रेश ने राजनीतिक और सामाजिक पदों पर काम किया। वे तहसील पत्रकार सलाहकार मंडल कसरावद के महामंत्री, युवा जन चेतना मंच के सदस्य, एनएसयूआई पीपलगोन के नगर अध्यक्ष, वर्धमान बाल मंडल पीपलगोन के उपाध्यक्ष, पोरवाड़ नवयुवक मंडल के प्रचार-प्रसार मंत्री और जिला पत्रकार संघ के सदस्य रहे।
परिवार में 15 सदस्य, भाई-बहनों में तीसरे मुनि पूज्य सागर महाराज की मां विमला और पिता सोमनाथ जैन गांव में ही किराना व्यापार करते हैं। परिवार में 15 से ज्यादा लोग हैं। चार भाई और एक बहन में पूज्य सागर महाराज तीसरे नंबर पर हैं। दूसरे नंबर के भाई दीपक जैन शासकीय सेवा में हैं। वहीं, चौथे नंबर के भूपेंद्र जैन पिता के साथ किराना दुकान चलाते हैं
युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बने विधान मंडल में शामिल होने पिपलगोन पहुंचीं इंदौर निवासी लेखक रेखा जैन ने कहा, ‘संन्यास धारण करने के बाद अब मुनिश्री के हाथों में सांसारिक वस्तुएं नहीं बल्कि मयूर पिच्छी और कमंडल हैं। ये अहिंसा, तप और संयम के प्रतीक माने जाते हैं।
मुनि पूज्य सागर महाराद का पीपलगोन आगमन स्थानीय लोगों के यादगार पल है। युवाओं के लिए वे प्रेरणा का स्रोत हैं।’
गृहस्थ जीवन के माता-पिता ने किया पाद प्रक्षालन मुनि पूज्य सागर महाराज ने रविवार सुबह 8:30 बजे पिपलगोन में मंगल प्रवेश किया। वे बाजार चौक से होकर श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर पहुंचे।
यहां दर्शन के बाद वे गृहस्थ जीवन के घर पहुंचे। यहां पिता सोमचंद जैन, माता विमला जैन और भाई दीपक जैन, भूपेंद्र जैन सहित परिजन ने पाद प्रक्षालन और पूजन किया। दोपहर 2 बजे बाजार चौक में धर्मसभा और सम्मान समारोह होगा। तीन दिन के विधान मंडल के बाद यहां से उनका विहार इंदौर के लिए होगा, जहां उनका चातुर्मास होगा।
जैन दर्शन में मंडल विधान का विशेष महत्व समाज के राजेंद्र जैन ने बताया कि जैन दर्शन में मंडल विधान का विशेष महत्व है। पर्व विशेष या किसी बड़े आयोजन में मंडल विधान होते हैं। श्रावकों के सामर्थ्य के मुताबिक इसमें जैन 24 तीर्थंकर भगवान को विराजित कर अन्न, रंगोली से लेकर मोती, रत्न तक की सजावट होती है।
विधान आचार्यों के सानिध्य में नारियल, गोला व बादाम के अर्घ्य चढ़ाए जाते हैं। जैन दर्शन में मोक्ष की प्राप्ति के लिए अलग-अलग मंडल विधान किए जाते हैं। 64 परमेष्ठि, नवकार मंडल, नवनिधि मंडल सहित अन्य शामिल है। जैन दर्शन में यह सब मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसका बड़ा महत्व है।