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राधारानी के बाद अब ताप्ती नदी पर प्रदीप मिश्रा के बिगड़े बोल, संत समाज में नाराजगी

प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा बरसाना में नाक रगड़ कर माफी मांगने के बाद अब फिर एक विवाद में फंसते नजर आ रहे हैं. यह विवाद मध्य प्रदेश के बैतूल के मुलताई से निकलने वाली ताप्ती नदी से जुड़ा हुआ है. भक्तों का आरोप है कि पंडित प्रदीप मिश्रा ने अपनी कथा में ताप्ती नदी को श्रापित नदी कहा है. उनकी इस विवादित कथा का कथित वीडियो वायरल हो रहा है.

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ताप्ती भक्तों ने प्रदीप मिश्रा की उस कथा पर आपत्ति जताई है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि यमुना जी ने ताप्ती जी को श्राप दिया, इसलिए ताप्ती नदी में अस्थियां गल जाती हैं. भक्तों का कहना है कि ताप्ती को श्रापित नदी बताना घोर निंदनीय है. उन्होंने प्रदीप मिश्रा से सूर्यपुत्री ताप्ती के दरबार में आकर नाक रगड़ कर माफी मांगने की मांग की है.

भक्तों की मांग, नाक रगड़कर मांगे माफी

ताप्ती नदी को लेकर दिए विवादित बयान से भक्तों में नाराजगी है. 13 जुलाई को मुलतापी में ताप्ती जन्मोत्सव मनाया जाएगा. भक्तों ने मांग की है कि पंडित प्रदीप मिश्रा सूर्यपुत्री ताप्ती जन्मोत्सव के पहले ताप्ती जन्मस्थली मुलतापी में आकर नाक रगड़कर माफी मांगे. अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ ताप्तींचल में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.

सिद्ध करके दिखाएं प्रदीप मिश्रा

भक्तों का कहना है कि समस्त ताप्ती भक्त चाहते हैं कि पंडित प्रदीप मिश्रा यह सिद्ध करे क्या ताप्ती श्रापित नदी है? और इस बात का क्या आधार और प्रमाण उनके पास हैं. भक्तों का दावा है कि ताप्ती नदी में यमुना के श्राप के चलते अस्थियां नहीं गलती, बल्कि ताप्ती के वेग और तेज के कारण उसे प्राप्त शक्तियों के कारण मृत व्यक्तियों की अस्थियों को मोक्ष प्राप्त होता है.

मंदिर के मुख्य पुजारी ने दी जन आंदोलन की चेतावनी

इस मामले में मुलताई स्थित महताब्दी मंदिर के मुख्य पुजारी सौरभ जोशी ने पंडित प्रदीप मिश्रा पर ताप्ती जी के अपमान का आरोप लगाते हुए कहा है कि वह मुलताई आकर मां ताप्ती से माफी मांगे. अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ जन आंदोलन किया जाएगा. रविवार को पुजारी सौरभ जोशी द्वारा सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें उन्होंने कहा कि पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो में वह मां ताप्ती को यमुना जी द्वारा दिए गए श्राप की बात कहते नजर आ रहे हैं. ऐसा कुछ नहीं है और साहित्य में ऐसा कहीं नहीं लिखा हुआ है.

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