देश की न्यायपालिका को लेकर एक और गंभीर आरोप सामने आया है। एनसीएलएटी के सदस्य जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने दावा किया है कि उनसे हाई कोर्ट के एक जज ने संपर्क किया और एक विशेष वादी के पक्ष में फैसला सुनाने का दबाव बनाया। इस आरोप ने न्यायिक हलकों में हलचल मचा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच का आदेश दिया है और सेक्रेटरी जनरल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है।
सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की जांच में यह पता लगाया जाएगा कि जस्टिस शर्मा को फोन किस जज ने किया था। जस्टिस शर्मा का कहना है कि दबाव डालने की कोशिश के बाद उन्होंने खुद को उस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया। यह मामला 2023 में दायर अपील से जुड़ा है, जिसमें कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया को मंजूरी देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस शर्मा ने पारदर्शिता बनाए रखने के लिए खुद को किसी केस से अलग किया हो। नवंबर 2024 में भी उन्होंने जेप्पियार सीमेंट्स केस से दूरी बना ली थी, जब उनके भाई ने निजी तौर पर मामले पर सलाह मांगी थी। इतना ही नहीं, जुलाई 2024 में उन्होंने बायजू रवीन्द्रन की याचिका की सुनवाई से भी खुद को अलग कर लिया था, क्योंकि उस मामले में बीसीसीआई लाभार्थी पक्ष था और वे पहले बीसीसीआई के लिए वकील रह चुके थे।
जस्टिस शर्मा का कहना है कि इस तरह के दबाव न्यायिक प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए खतरनाक हैं। उन्होंने कोर्ट में यह नाराजगी भी जताई कि न्यायाधीशों पर इस तरह की कोशिशें न्यायपालिका की साख को कमजोर करती हैं।
यह नया आरोप ऐसे समय सामने आया है जब कुछ महीने पहले ही जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड ने न्यायपालिका की छवि पर सवाल खड़े किए थे। मार्च 2025 में उनके सरकारी आवास पर लगी आग के दौरान जली हुई नकदी बरामद हुई थी, जिसके बाद उनके खिलाफ जांच समिति गठित की गई और महाभियोग की सिफारिश की गई।
नए आरोप और सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई से साफ है कि न्यायपालिका खुद अपनी पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सक्रिय है। अब जांच के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि जस्टिस शर्मा से संपर्क करने वाला जज कौन था और उसके पीछे क्या मंशा थी।