अभी कल तक जिसे महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे फिसड्डी खिलाड़ी माना जा रहा था आज वो हीरो बनकर उभर रहा है. एनसीपी नेता अजित पवार को लोकसभा चुनावों में जिस तरह जनता ने नकार दिया था उससे तो यही लग रहा था कि अब उनकी राजनीति खत्म है. पर अजित पवार की बाजीगरी कुछ ऐसी रही कि जनता ने विधानसभा चुनावों तक आते आते चाचा शरद पवार की बाजी पलटकर उन्हें नकार दिया.खबर लिखे जाने तक चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार अजित पवार अपने चाचा की पार्टी एनसीपी (एसपी) को साफ करते हुए नजर आ रहे हैं. अजित पवार को महायुति गठबंधन में 59 सीटें मिली थीं जिसमें अभी वो 35 सीटों पर आगे चल रहे हैं. जबकि एमवीए गठबंधन में शरद पवार की एनसीपी को 86 सीटें मिलीं थीं पर मात्र 13 सीटों पर आगे निकलते दिख रहे हैं. महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य शरद पवार ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अपनी राजनीति के अंतिम दिनों में उन्हें अपने भतीजे अजित पवार के हाथों इतनी तगड़ी शिकस्त खानी पड़ेगी.
1-मुस्लिम और हिंदू वोटों दोनों को साधने की रणनीति
अजित पवार अपने कोर वोटर्स जिसमें मुस्लिम वोट सबसे महत्वपूर्ण रहे हैं उसके साथ कोई समझौता नहीं किया. बीजेपी उनका विरोध करती रही पर उन्होंने अपने गठबंधन की एक नहीं सुनी. बीजेपी और पीएम मोदी तक को भला बुरा कहने वाले नवाब मलिक की बेटी को टिकट दिया. बहुत विरोध हुआ इसके बाद नवाब मलिक को भी टिकट दिया. यही नहीं बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी के बेटे को भी टिकट दिया. अजित पवार ने यहां तक कह दिया कि उनके कैंडिडेट का प्रचार बीजेपी के बड़े नेता न करें. मौका आने पर उन्होंने बंटेंगे तो कटेंगे का भी विरोध किया.
इसके साथ ही हिंदू वोट के लिए ही उन्होंने महायुति को जॉइन ही किया था. बीजेपी का कोर वोटर्स उनके कैंडिडेट को वोट देने ही वाला था क्योंकि जहां से एसीपी के कैंडिडेट थे वहां पर बीजेपी का कैंडिडेट या शिवसेना शिंदे का कैंडिडेट नहीं था. 30 मुस्लिम बहुल सीटों में से 16 पर एनडीए और 11 पर इंडिया गठबंधन के आगे होना यह दिखाता है कि अजित पवार की पार्टी ने मुस्लिम वोटों में भी सेंध लगाई है.
2-चाचा शरद पवार के प्रति सम्मान बनाए रखने की रणनीति
अजित पवार ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में यह बात क्लीयर कर दी थी कि उनके चाचा शरद पवार के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं करनी है. एनसीपी शरद पवार के नेता अजित पवार के खिलाफ बहुत अपमानजनक बातें करते रहे पर उन्होंने संयम बरता. इसके साथ ही अजित पवार ने यह भी माहौल बनाये रखा कि उनके चाचा से संबंध अभी बहुत अच्छा है. बहुत राजनीतिक विश्वलेषक इस भ्रम में रहे कि हो सकता है चाचा-भतीजा एक रणनीति के तहत सारी राजनीति कर रहे हों. बीच बीच में कई बार चाचा भतीजा की मुलाकात भी हुई. इससे यह संदेश गया कि चाचा ने ही अजित पवार को एनडीए में प्लांट किया है. अजित पवार ने यह कहकर एक और गुगली फेंक दिया कि जब 2019 में वे एनसीपी छोड़कर बीजेपी के साथ आए थे तो उसमें शरद पवार की भी भूमिका थी. यहां तक कह दिया कि इस मीटिंग में उद्योगपति गौतम अडानी भी शामिल हुए थे. इन सब बातों को देखते हुए जनता को ये लगा कि पवार परिवार की विरासत अजित को ही संभालनी है .
3-अजित दादा राज्य में सुप्रिया ताई केंद्र में का नारा काम कर गया
अजित पवार ने अपने समर्थकों से नारा दिलवा दिया कि अजित दादा राज्य में सुप्रिया ताई केंद्र में. लगता है कि यह नारा भी काम कर गया. आम लोगों में संदेश गया कि पवार फैमिली के उत्तराधिकार की लड़ाई में राज्य की राजनीति अजित पवार करें और केंद्र की राजनीति शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले करें.
4-अजित ने ऐसा भ्रम फैलाया कि जरूरत होने पर वह फिर एमवीए में भी जा सकते हैं
अजित लगातार यह भ्रम बनाए रखे कि वो महायुति गठबंधन में अपने शर्तों पर हैं. जरूरत पड़ी तो कभी भी वो एमवीए में जा सकते हैं. उन्होंने अपने समर्थकों को यह संदेश दिया कि वो महायुति में रहे तो भी अपने समर्थकों के हितों पर कुल्हाड़ी नहीं चलते देंगे. जिस तरह उन्होंने पीएम मोदी की सभा से दूर होने की बात फैलाई , जिस तरह उन्होंने बीजेपी के विरोध के बावजूद अपने पसंदीदा लोगों को टिकट बांटा, जिस तरह उन्होंने बंटेंगे तो कटेंगे का विरोध किया उससे उनके समर्थकों में यह संदेश गया कि जरूरत होने पर अजित पवार सरकार से भी अलग हो सकते हैं.