सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंंटन नरीमन ने गुरुवार को कहा कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 5 पेज उम्मीद जगाने वाले थे, इन पांच पेजों में 1991 के पूजा स्थल अधिनियम यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की पुष्टि की गई थी. संविधान पीठ के इस फैसले के वे पांच पेज देश भर में चल रहे उन मुकदमों का जवाब हैं जिनमें मंदिरों के ऊपर कथित रूप से बनाई गई मस्जिदों के सर्वे की मांग की गई है.
जस्टिस नरीमन अहमदी फाउंडेशन के कार्यक्रम में बोल रहे थे, जिसकी स्थापना भारत के 26वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति अजीज मुशब्बर अहमदी की स्मृति में की गई है. जस्टिम नरीमन ने कहा कि संविधान पीठ ने फैसले में पूजा स्थल अधिनियम के बारे में लिखा है कि यह धर्मनिरपेक्षता के लिए सही है, जो कि संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है. आप पीछे नहीं देख सकते, आपको आगे देखना होगा. इन पेजों को देश के प्रत्येक जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय में पढ़ा जाना चाहिए, ताकि विभिन्न धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ होने वाले इस तरह के दावों को रोका जा सके.
2019 के बाद ऐसे मामलों में आई तेजी
जस्टिस नरीमन ने कहा कि 2019 के बाद विशेष रूप से उत्तर भारत में, दीवानी अदालतों में कई मामले दायर किए गए हैं, जिनमें मस्जिद बनाने के लिए इतिहास में कथित तौर पर नष्ट किए गए मंदिरों की पुर्नस्थापना की मांग की गई है. ताजा मामला संभल का है, जिसमें सिविल कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया है. इसमें भी दावा किया गया था कि मस्जिद को मंदिर के ऊपर बनाया गया है.
क्या है 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट
1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के मुताबिक कोई भी प्रार्थना स्थल उसी स्थिति में रहेगा, जैसा 15 अगस्त 1947 में था. इस एक्ट पर वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. 2019 में अयोध्या विवाद पर आए महत्वपूर्ण फैसले में शीर्ष अदालत ने 1991 के इस कानून की सराहना की थी.
संविधान पीठ ने क्या कहा था?
फैसले में संविधान पीठ ने कहा था कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट प्रत्येक धार्मिक समुदाय को यह विश्वास दिलाकर संवैधानिक आधार प्रदान करता है कि 15 अगस्त 1947 को जो पूजा स्थल जिस रूप में था, उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. यह कानून सभी धर्मों की समानता और धर्मनिरपेक्ष्ज्ञता को बनाए रखने के दायित्व को पूरा करता है जो संविधान की मूल विशेषताओं का हिस्सा है.
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट भारतीय संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को लागू करने की दिशा में एक दायित्व है. इसलिए यह कानून भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा के लिए बनाया गया एक विधायी साधन है. न्यायमूर्ति नरीमन ने फैसले के इस पहलू की सराहना की है.
अयोध्या फैसले के इन पांच पेजों को लागू किया जाए
जस्टिस नरीमन ने अपने संबोधन में कहा है कि आज पूरे देश में हाइड्रा हेड्स उभर रहे हैं, हर जगह मुकदमे दायर हो रहे हैं, सिर्फ मस्जिद ही नहीं दरगाहों पर भी दावे किए जा रहे हैं. इन सबको रोकने के लिए सभी हाइड्रा हेड्स को नष्ट करने का एकमात्र तरीका अयोध्या फैसले के पांच पेजों को लागू करना है. इस फैसले को प्रत्येक जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय के समक्ष पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि ये फैसला शीर्ष अदालत का है.