उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में भ्रष्टाचार की ऐसी गहरी जड़ें सामने आई हैं, जो न केवल प्रशासनिक तंत्र की साख को दागदार करती हैं, बल्कि सजातीय नातेदारी की आड़ में सत्ताधारी व्यवस्था की सेटिंग संस्कृति को भी बेनकाब करती हैं. बांदा, जो कभी बुंदेलों की वीरता और तलवारों की गूंज के लिए जाना जाता था, आज साठगांठ और भ्रष्टाचार की चमक से बदनाम हो चुका है. सीएम योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस नीति को ठेंगा दिखाते हुए बांदा में अफसर और कारोबारी मिलकर भ्रष्टाचार का खेल खेल रहे हैं.
यह कहानी शिवकृष्ण मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल के अवैध निर्माण और 42 लाख रुपये की साजिश से शुरू हुई है. जिसमें अपर जिलाधिकारी (एडीएम) राजेश वर्मा और अस्पताल मालिक अरुणेश पटेल की सजातीय साठगांठ ने भ्रष्टाचार की सारी हदें पार कर दी हैं.
बांदा के मेडिकल कॉलेज रोड पर ग्रीन बेल्ट की जमीन पर बिना नक्शे के बने शिवकृष्ण मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल को तत्कालीन डीएम अमित सिंह बंसल ने सीज करवाया था. लेकिन सेटिंग की ताकत ऐसी थी कि डीएम का तबादला हो गया और अस्पताल का निर्माण धड़ाधड़ पूरा हुआ. जांच में खुलासा हुआ कि इस अवैध अस्पताल की डायग्नोस्टिक यूनिट में एडीएम राजेश वर्मा की पत्नी सोनी वर्मा की 30% हिस्सेदारी है.
जबकि अस्पताल मालिक अरुणेश पटेल की पत्नी डॉ. संगीता की 50% और बाकी 20% हिस्सेदारी दो अन्य व्यक्तियों के नाम पर दर्ज है. यह हिस्सेदारी कोई साधारण व्यापारिक सौदा नहीं, बल्कि सजातीय रिश्तों की आड़ में रची गई 42 लाख रुपये की साजिश का हिस्सा है.
ADM बने हिस्सेदार
एडीएम राजेश वर्मा को अवैध अस्पताल ढहाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वह अब उसी अस्पताल में हिस्सेदार बन बैठे हैं. सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में राजेश वर्मा, अरुणेश पटेल और उपजिलाधिकारी रजत वर्मा एक साथ जन्मदिन का केक काटते नजर आए. जदयू नेता शालिनी पटेल ने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन शुरू किया था. जांच की मांग की थी क्योंकि जांच अधिकारियों के खिलाफ है अधिकारियों की पत्नियों के खिलाफ है और डॉक्टर नर्सिंग होम के खिलाफ है इसलिए इसे ठंडे बस्ती में डाल रखा गया.
बांदा में किसका राज?
एडीएम राजेश वर्मा तीन साल से बांदा में जमे हैं. प्रमोशन के बाद नई पोस्टिंग मिली, लेकिन अरुणेश पटेल की संगत में बांदा की मिट्टी इतनी रास आई कि वह वापस लौट आए. किसान नेता प्रमोद आजाद ने इसे सजातीय साठगांठ का खतरनाक खेल बताया. उन्होंने कहा, “बांदा में गांधी जी के तीन बंदरों का राज है – न देखो, न सुनो, न बोलो. अफसर और कारोबारी मिलकर जनता को लूट रहे हैं, लेकिन सरकार की आंखों पर पट्टी और कानों में रुई है.”
ग्रीन बेल्ट की जमीन की कमर्शियल
जांच में एक और सनसनीखेज खुलासा हुआ कि ग्रीन बेल्ट की जमीन, जिसमें अवैध अस्पताल बना है, उसे बांदा विकास प्राधिकरण (बीडीए) ने 42 लाख रुपये की लागत से कमर्शियल कर दिया. इस सौदे में एडीएम नमामि गंगे मदन मोहन वर्मा, जो हाल ही में बीडीए सचिव बने, ने चेक पर हस्ताक्षर किए. बीडीए का चार्ज सिटी मजिस्ट्रेट संदीप केला से छीनकर मदन मोहन वर्मा को सौंपा गया. जिसने कई सवाल खड़े किए हैं. चित्रकूट धाम मंडल के कमिश्नर अजीत कुमार ने कहा “जांच चल रही है. पार्टनरशिप डीड सामने आई है. पूरी रिपोर्ट का इंतजार करें.”