मऊगंज: बुनियादी सुविधाओं के अभाव ने एक आदिवासी महिला की जिंदगी छीन ली. मऊगंज जिले के पतेरी नारायण गांव में टूटी पुलिया और जर्जर रास्ते के कारण एम्बुलेंस गांव तक नहीं पहुंच पाई. नतीजा यह हुआ कि 38 वर्षीय नीतू कोल, जो पांच दिनों से बीमार थीं, इलाज के दौरान दम तोड़ बैठीं. ग्रामीणों के अनुसार, गांव से मुख्य सड़क तक जाने वाला रास्ता बारिश और कीचड़ में डूबा हुआ था. टूटी पुलिया ने हालात और बिगाड़ दिए. ऐसे में जब परिवार ने बार-बार नीतू को अस्पताल ले जाने की कोशिश की, तो वाहन गांव तक पहुंच ही नहीं सके.
खाट बनी एम्बुलेंस
आखिरकार 30 अगस्त को तबीयत गंभीर होने पर परिजनों ने नीतू को खाट पर लिटाकर 2 से 3 किलोमीटर पैदल चलकर पक्की सड़क तक पहुंचाया. वहां से एम्बुलेंस बुलाकर उन्हें मऊगंज अस्पताल और फिर संजय गांधी अस्पताल रीवा रेफर किया गया. डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया, लेकिन बुधवार को उनकी मौत हो गई.
शव भी पैदल पहुंचा गांव
मौत के बाद भी परिवार की मुश्किलें खत्म नहीं हुईं. अस्पताल से शव लेकर लौटते वक्त एम्बुलेंस मुख्य सड़क से आगे नहीं जा सकी. मजबूरन परिजनों को शव को भी खाट पर रखकर पैदल ही गांव तक लाना पड़ा.
विकास के दावों पर सवाल
ग्रामीणों का कहना है कि वे चांद पर पहुंचने की बातें तो सुनते हैं, लेकिन आज भी गांव तक सड़क और पुलिया की सुविधा नहीं है. यह घटना केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि विकास के सरकारी दावों पर करारा सवाल है.
सीएम दौरे से पहले हुआ पर्यटन स्थलों का कायाकल्प
विडंबना यह भी है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के 7 सितंबर को होने वाले दौरे से पहले बहुती जलप्रपात और देवतालाब पर्यटन स्थलों का कायाकल्प कर दिया गया है. जर्जर भवनों को रेस्ट हाउस में बदला गया और चुटकियों में हेलीपैड भी तैयार कर दिया गया. लेकिन पतेरी नारायण गांव की टूटी पुलिया और खराब सड़क को अब तक किसी ने नहीं देखा.
ग्रामीणों का आरोप
ग्रामीणों का कहना है कि यदि समय पर मरम्मत कर दी जाती, तो नीतू की जान बच सकती थी. यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि आज भी आदिवासी और दूरदराज के गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं.