अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने गुरुवार को कहा कि भारत की ओर से रूसी तेल की खरीद उसे यूक्रेन में युद्ध जारी रखने में मदद कर रही है. उन्होंने इसे भारत और अमेरिका के रिश्तों में ‘निश्चित रूप से एक झुंझलाहट का कारण’ बताया. हालांकि यह अकेला मुद्दा नहीं है जो तनाव की वजह बन रहा है.
फॉक्स रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में रूबियो ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति इस बात से नाराज हैं कि भारत लगातार रूस से तेल खरीद रहा है, जबकि उसके पास तेल खरीदने के लिए कई अन्य विकल्प मौजूद हैं. इससे रूस को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ने में आर्थिक मदद मिल रही है.
क्या बोले अमेरिकी विदेश मंत्री?
रूबियो ने कहा, ‘भारत की ऊर्जा जरूरतें बहुत बड़ी हैं- इसमें तेल, कोयला, गैस जैसी चीजें शामिल हैं जो उसकी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए जरूरी हैं, जैसे हर देश के लिए होती हैं. और वह इन्हें रूस से खरीदता है, क्योंकि रूसी तेल पर प्रतिबंध लगे हुए हैं और वह सस्ता है. कई बार वे वैश्विक कीमत से भी नीचे बेचते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘दुर्भाग्य से, इससे रूस को युद्ध में मदद मिल रही है. इसलिए यह भारत और अमेरिका के रिश्ते में निश्चित रूप से एक झुंझलाहट का कारण है लेकिन यह अकेला कारण नहीं है. हमारे बीच सहयोग के कई अन्य क्षेत्र भी हैं.’
भारत से क्या चाहता है अमेरिका?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर साइन न हो पाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि भारत अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को विदेशी दखल से बचाए रखना चाहता है. दूसरी ओर, अमेरिका चाहता है कि उसे भारत के कृषि बाजार में ज्यादा पहुंच मिले, विशेषकर जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों, डेयरी उत्पादों, मक्का, सोयाबीन, सेब, बादाम और एथनॉल जैसे प्रोडक्ट्स के लिए.
अमेरिका इन क्षेत्रों में टैरिफ कम करने की मांग कर रहा है. भारत का कहना है कि अमेरिका से सस्ते और सब्सिडी वाले कृषि उत्पादों को भारत में आने देना देश के करोड़ों छोटे किसानों की आय के लिए बड़ा खतरा होगा.
भारत ने क्या जवाब दिया?
भारत ने अमेरिका को साफ कहा है कि डेयरी, चावल, गेहूं और जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों (जैसे मक्का और सोयाबीन) पर टैरिफ कम करना इस समय संभव नहीं है. अधिकारियों के मुताबिक, ऐसा कोई कदम देश के 70 करोड़ ग्रामीण लोगों को प्रभावित कर सकता है, जिनमें लगभग 8 करोड़ छोटे डेयरी किसान शामिल हैं.
कृषि और डेयरी के अलावा अमेरिका भारत के बाजार में अन्य क्षेत्रों में भी बेहतर पहुंच चाहता है, जैसे- एथनॉल, सेब, बादाम, ऑटोमोबाइल, मेडिकल डिवाइस, दवाएं और शराब जैसे उत्पाद. अमेरिका चाहता है कि भारत अपने नॉन-टैरिफ बैरियर्स को भी कम करे, कस्टम्स नियमों को आसान बनाए, और डेटा स्टोरेज, पेटेंट और डिजिटल ट्रेड से जुड़े कानूनों में ढील दे.