आंध्र प्रदेश शराब घोटाला: भिलाई राइस मिलर के घर ED रेड, देशभर में 20 ठिकानों पर छापा

आंध्र प्रदेश के कथित 3,500 करोड़ रुपए के शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में ED ने करीब 6 राज्यों के 20 ठिकानों पर छापेमारी की है। इनमें छत्तीसगढ़, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और दिल्ली-एनसीआर शामिल हैं।

ED ने भिलाई के हुडको और तालपुरी में राइस मिलर सुधाकर राव के घर पर भी छापेमारी की है। यहां ED की टीम दस्तावेज खंगाल रही है। बताया जा रहा है कि सुधाकर राव की भी घोटाले में संलिप्तता है। फर्जी बिल, बढ़े हुए बिलों के जरिए कमीशन और अवैध भुगतान कराने का आरोप है।

हालांकि रिटायर्ड IAS आलोक शुक्ला के घर पर भी छापेमारी की अफवाह उड़ी थी, लेकिन उनके घर पर छापा नहीं पड़ा है। राइस मिलर सुधाकर राव के घर पर ED के अफसर दस्तावेज खंगाल रहे हैं।

मिली जानकारी के मुताबिक ED ने एरेट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, श्री ज्वेलर्स एक्जिम्प, एनआर उद्योग एलएलपी, द इंडिया फ्रूट्स प्राइवेट लिमिटेड (चेन्नई), वेंकटेश्वर पैकेजिंग, सुवर्णा दुर्गा बॉटल्स, राव साहेब बुरुगु महादेव ज्वेलर्स, उषोदय एंटरप्राइजेज और मोहन लाल ज्वैलर्स (चेन्नई) में छापेमारी की है।

अधिकारियों ने बताया कि यह कार्रवाई विशेष जांच दल (SIT) की शुरुआती जांच के बाद हुई है, जिसमें शेल कंपनियों, बेनामी फर्मों और हवाला नेटवर्क के जरिए धन के लेन-देन का खुलासा हुआ था।

आंध्र प्रदेश शराब घोटाला क्या है?

दरअसल, 2019 से 2024 तक आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की सरकार रही। इसी दौरान राज्य की शराब आपूर्ति व्यवस्था में बड़ा घोटाला का आरोप है।एसआईटी जांच में इसका खुलासा हुआ था।

SIT की जांच में पता चला कि 16 डिस्टिलरी कंपनियों ने करोड़ों की रिश्वत दी। आंध्र प्रदेश स्टेट बेवरेजेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड से बड़े सप्लाई ऑर्डर हासिल किए गए। कंपनियों ने लगभग ₹1,677.68 करोड़ की रिश्वत दी। कुल घोटाला ₹3,500 करोड़ से ज्यादा का अनुमान है।

नकली कंपनियों और बेनामी निवेश का खेल

इस घोटाले में सरकारी अफसर ही नहीं, फर्जी कंपनियां भी शामिल थीं। कई कंपनियां अलग-अलग नाम से चल रही थीं, लेकिन जांच में उनके मालिक एक ही निकले।लीला डिस्टिलरीज़, अदान डिस्टिलरीज़, यूवी डिस्टिलरीज़ और पीवी स्पिरिट्स इसमें शामिल थीं।

राजनीतिक संरक्षण और मिलीभगत

SIT जांच में पता चला कि इनके पीछे राजनीतिक और कारोबारी सिंडिकेट काम कर रहा था। कंपनियों में निवेश नेताओं के परिवार और रिश्तेदारों के नाम पर हुआ, ताकि किसी पर सीधे शक न हो सके।

एसआईटी रिपोर्ट कहती है कि यह सिर्फ लापरवाही नहीं थी। यह एक सुनियोजित साजिश थी। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की इसमें भूमिका थी। कई कंपनियां नियमों के हिसाब से पात्र नहीं थीं। फिर भी उन्हें ठेके दे दिए गए। राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक मिलीभगत से यह खेल चला।

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