गर्मी रिकॉर्ड बना रही है और अपना असर भी दिखा रही है. बढ़ती गर्मी के बीच वकीलों की ब्लैक ड्रेस से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. अधिवक्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने अपनी याचिका में कोर्ट से आग्रह किया है कि गर्मी के महीनों में वकीलों को काला कोर्ट और गाउन पहनने से छूट दी जाए. उनका कहना है, बढ़ती गर्मी के मौसम में इससे वकीलों को परेशानी और स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं. याचिका में जोर दिया गया है कि काले कोट और गाउन को ब्रिटिश ड्रेस कोड के रूप में लागू किया गया था, हालांकि इसे लागू करते समय देश की जलवायु पर ध्यान नहीं दिया गया.
ऐसे में सवाल है कि वकीलों के ड्रेस कोड का रंग ब्लैक एंड वाइट क्यों रखा गया, दुनिया में किस देश में सबसे पहले इसकी शुरुआत हुई और कैसे यह भारत का हिस्सा बना? आइए जानते हैं इनके जवाब.
वकीलों की ड्रेस ब्लैक एंड वाइट क्यों?
किसी भी आयोजन या संस्था का ड्रेस कोड वहां के अनुशासन को बताता है. वकीलों के ड्रेस कोड में भी यही अनुशासन दिखता है. कई ऐसे प्रोफेशन हैं जो रंगों से पहचाने जाते हैं. जैसे-वकीलों की ड्रेस का ब्लैक एंड वाइट कोड. ब्लैक रंग अथाॉरिटी और पावर को दर्शाने वाला रंग होता है. यह रंग जज के प्रति समर्पित होता है. वहीं, सफेद रंग प्रकाश, अच्छाई और शुद्धता का प्रतीक है.
कानूनी व्यवस्था ही आम आदमी के लिए न्याय की एकमात्र उम्मीद है, इसलिए उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए सफेद रंग को चुना गया है. याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों पक्षों के वकील एक समान ड्रेस कोड पहनते हैं.
कहां से आया काला कोट?
‘ब्लैक कोट’ का इतिहास 1327 से शुरू होता है जब ब्रिटिश किंग एडवर्ड तृतीय ने “रॉयल कोर्ट” में “ड्रेस कोड” लागू किया और न्यायाधीशों के लिए वेशभूषा बनाने की बात कही थी. 13वीं शताब्दी के अंत तक, ब्रिटेन में कानूनी पेशे से न्यायाधीशों के बीच ड्रेस कोड से जुड़ा नियम सख्ती से लागू था. इसमें कई कैटेगरी थीं. जैसे सार्जेंट, जो अपने सिर पर एक सफेद बाल वाला विग पहनते थे. ब्रिटिश किंग एडवर्ड तृतीय (1327-1377) के समय तक शाही दरबार में उपस्थित होने के लिए न्यायाधीशों की वेशभूषा स्थापित हो चुकी थी.
इंग्लैंड में कानूनी पेशे का विभाजन 1340 से शुरू हुआ, जिसने पेशेवर वकालत का रास्ता साफ किया. 1340 में, आम जनता ने न्यायिक पोशाक की लंबाई का विरोध किया, लेकिन वकीलों ने लंबे लबादे पहनने का फैसला किया. धीरे-धीरे न्यायाधीश में सर्दियों में बैंगनी और गर्मियों में हरे लबादे पहनने की प्रक्रिया शुरू हुई. साल 1534 तक इसे पहनना बंद कर दिया गया.
पादरी और सेना के अलावा, कानूनी पेशेवर भी गाउन पहनते थे. इंग्लैंड में, अंग्रेजी ने ने अपने कानून में यह दर्ज किया कि इनकी यह पोशाक कब पहनी जानी चाहिए. 1635 के बाद सर्दियों में हल्के रंग के फर या कोट के साथ ‘ब्लैक रोब’ और गर्मियों में बैंगनी या लाल रंग के रोब पेश किए. इंग्लैंड में 17वीं शताब्दी में न्यायाधीश, बैरिस्टर और सॉलिसिटर काले कोट, गाउन, सफ़ेद बैंड और पारंपरिक विग का इस्तेमाल करने लगे.