तालिबान ने अफगानिस्तान में एक और सख्त फैसला लेते हुए स्कूलों के पाठ्यक्रम से 51 विषय हटाने का आदेश दिया है। तालिबान सरकार का कहना है कि ये विषय इस्लाम के खिलाफ हैं और इसलिए बच्चों को नहीं पढ़ाए जाएंगे। इस आदेश के बाद शिक्षा जगत और मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस कदम से छात्रों की आलोचनात्मक सोच और नागरिक अधिकारों की समझ पर गहरा असर पड़ेगा।
हटाए गए विषयों में राष्ट्रीय ध्वज, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, मानव अधिकार, महिला अधिकार, राष्ट्रीय एकता और शांति जैसे मुद्दे शामिल हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान का राष्ट्रीय गान, बामियान की बुद्ध प्रतिमाएं, शिक्षक दिवस और मातृ दिवस जैसे विषय भी अब बच्चों को नहीं पढ़ाए जाएंगे। ये सभी टॉपिक कक्षा पहली से बारहवीं तक के पाठ्यक्रम का हिस्सा थे।
तालिबान इससे पहले भी शिक्षा प्रणाली में बदलाव करता रहा है। हाल ही में विश्वविद्यालयों से भी 18 विषय हटाए गए थे और करीब 200 विषयों को तब तक रोक दिया गया है जब तक वे तालिबान की विचारधारा के हिसाब से बदले नहीं जाते। इसी साल अप्रैल में नए स्कूल सत्र की शुरुआत में कला, नागरिक शिक्षा, संस्कृति और देशभक्ति जैसे विषय भी खत्म कर दिए गए थे।
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि तालिबान अपने कठोर नियमों को शिक्षा प्रणाली पर थोपना चाहता है। इससे छात्रों के बीच सामाजिक विविधता, अफगानिस्तान की सांस्कृतिक धरोहर और लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में पढ़ाई सीमित हो जाएगी। आलोचकों का मानना है कि तालिबान के ये आदेश बच्चों के भविष्य पर नकारात्मक असर डालेंगे और उन्हें दुनिया से कटे हुए माहौल में पढ़ाई करने के लिए मजबूर करेंगे।
तालिबान प्रशासन की इन नीतियों का असर खासकर महिला शिक्षा पर गहरा पड़ रहा है। पहले ही लड़कियों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा से वंचित कर दिया गया है और अब स्कूलों के पाठ्यक्रम में इस तरह के बदलावों से अफगानिस्तान में शिक्षा व्यवस्था का दायरा और सीमित होता जा रहा है। यह फैसला देश में शिक्षा और समाज दोनों पर लंबे समय तक असर डाल सकता है।