नई दिल्ली: भारत की सीमा से सैकड़ों मील दूर बसे दक्षिण पूर्व एशिया के एक देश लाओस में ASI की टीम हिंदू संस्कृति को सहजने के काम में जुटी है. 2005 में ASI ने वाट फोऊ मंदिर के सर्वे का काम शुरू किया था. 2007 में भारत और लाओस की सरकार के बीच MoU हुआ था और साल 2009 से ASI ने यहां काम शुरू किया था. 2007 से 2017 के बीच रिस्टोरेशन के काम का पहला फेज हुआ जिसमें 17 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इस प्रोजेक्ट का दूसरा फेज साल 2018 में शुरू हुआ जो 2028 में खत्म होगा. फेज 2 में ASI की तरफ से लगभग 24 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
पांचवीं शताब्दी में हुआ था वाट फोऊ मंदिर का निर्माण
दरअसल वाट फोऊ मंदिर का निर्माण पांचवीं शताब्दी में खमेर राजपरिवार ने एक शिव मंदिर के रूप में किया था,लेकिन चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ यह एक बौद्ध मंदिर में परिवर्तित हो गया. हालांकि इसके शिव मंदिर होने के प्रमाण इस मंदिर परिसर के हर कोने में आज भी मौजूद हैं. जहां मंदिर परिसर में भगवान बुद्ध की पीले सुनहरे रंग की एक बड़ी सी प्रतिमा है तो वहीं मंदिर के पीछे एक बड़ी चट्टान पर ब्रह्म, विष्णु और महेश की आकृति उकेरी हुई है.
मंदिर के गर्भगृह के प्रांगण में विराजमान है शिवलिंग
मंदिर के गर्भगृह के प्रांगण में शिवलिंग आज भी विराजमान है. इस मंदिर प्रांगण में शिव परिवार की नंदी पर विराजमान खंडित मूर्ति से लेकर कई शिवलिंग भी प्राप्त हुए हैं. इस यूनेस्को प्रोटेक्टेड साइट के रिस्टोरेशन के के काम में ASI की टीम साल 2007 से ही लगी हुई है. ASI के इस काम से न सिर्फ भारत और लाओस के संबंध प्रगाढ़ होंगे बल्कि हजारों साल पहले सुदूर दक्षिण पूर्व एशिया में फैली हिंदू संस्कृति के चिह्न एक बार फिर सहजे जा सकेंगे.