रमजान में कुचामन सिटी के असलम टाक बने मिसाल: जानें हौसले और इबादत की अनोखी कहानी

डीडवाना – कुचामन : रमजान का पवित्र महीना इबादत, संयम और अल्लाह की रहमतों से भरपूर होता है. दुनियाभर के मुस्लिम समुदाय के लिए यह महीना विशेष महत्व रखता है. रोजा रखना और इबादत करना इस महीने की खास परंपरा होती है, लेकिन जब कोई व्यक्ति असाधारण परिस्थितियों के बावजूद पूरे समर्पण के साथ अपनी आस्था निभाता है, तो वह दूसरों के लिए मिसाल बन जाता है.

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कुचामन सिटी के गुलजारपुरा निवासी असलम टाक ‘भाया’ एक ऐसी ही मिसाल हैं, जिन्होंने अपनी शारीरिक चुनौतियों के बावजूद रमजान के पाक महीने में रोजे और नमाज अदा करने का संकल्प लिया है. उनका यह समर्पण न सिर्फ मुस्लिम समुदाय बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

 

दिव्यांगता के बावजूद इबादत में कोई कमी नहीं

असलम टाक जन्म से ही दिव्यांग हैं. उनके दोनों हाथ और दोनों पैर पूरी तरह विकसित नहीं हैं, जिससे वे रोजमर्रा के कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं. लेकिन उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को अपनी इबादत की राह में बाधा नहीं बनने दिया.

 

रमजान के इस पवित्र महीने में वे पूरे रोजे रख रहे हैं, पांचों वक्त की नमाज अदा कर रहे हैं, और रात में पढ़ी जाने वाली तरावीह की विशेष नमाज भी पूरी शिद्दत के साथ पढ़ रहे हैं.

यह सिर्फ इस साल की बात नहीं है, बल्कि असलम टाक कई वर्षों से लगातार रमजान के दौरान रोजे रख रहे हैं और नमाज पढ़ रहे हैं.उनके लिए यह कोई मजबूरी नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति उनके अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक है.

नमाज अदा करने जाते हैं मस्जिद में

असलम टाक के लिए आम लोगों की तरह बैठकर या खड़े होकर नमाज अदा करना संभव नहीं है, लेकिन इस्लाम धर्म में दिव्यांगों और बीमारों के लिए विशेष प्रावधान हैं, जिनके तहत वे अपनी सुविधानुसार इबादत कर सकते हैं.

 

जब नमाज का वक्त होता है, तो उनके परिवार के सदस्य उन्हें मस्जिद लेकर जाते हैं. वहां वे मस्जिद परिसर में एक खंभे के सहारे बैठकर जमात के साथ नमाज अदा करते हैं.उनका यह संकल्प इस बात का प्रमाण है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी शारीरिक बाधा इबादत की राह में रुकावट नहीं बन सकती.

संघर्षों से भरा जीवन, लेकिन हौसले बुलंद

असलम टाक का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है. वे कुचामन सिटी के गुलजारपुरा क्षेत्र के निवासी अली मोहम्मद और खातून बेगम के पुत्र हैं. जब वे मात्र चार महीने के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया. इसके बाद उनकी परवरिश की जिम्मेदारी उनकी दादी ने संभाली.

कुछ वर्षों तक वे अपनी मौसी के घर भी रहे, जहां उन्हें देखभाल और स्नेह मिला.परिवार ने उनके इलाज के लिए कई डॉक्टरों से सलाह ली, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला.वर्तमान में असलम अपने ताऊजी के पुत्र मोहम्मद इकबाल और उनकी पत्नी जरीना के साथ रहते हैं. यह दंपति निस्वार्थ भाव से असलम की देखभाल कर रहा है और उनकी हर जरूरत का ध्यान रख रहा है.

सरकारी योजनाओं से वंचित असलम : कब मिलेगा न्याय?

इतनी कठिनाइयों के बावजूद असलम टाक को आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है. वे दिव्यांगों की श्रेणी में आते हैं और विभिन्न सरकारी योजनाओं के पात्र भी हैं, लेकिन उन्हें न तो कोई पेंशन मिल रही है और न ही कोई अन्य सुविधा. परिजनों ने कई बार प्रशासन से संपर्क किया और सरकारी सहायता के लिए आवेदन भी किया, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला.

असलम टाक ने प्रशासन से अपील की है कि उनकी स्थिति पर ध्यान दिया जाए और उन्हें उन योजनाओं का लाभ दिया जाए, जिनके वे हकदार हैं. यह मांग न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत जरूरत को दर्शाती है, बल्कि प्रशासनिक तंत्र की उस अनदेखी को भी उजागर करती है, जहां जरूरतमंदों को उनका हक नहीं मिल पाता.

 

 

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