अयोध्या: हनुमानगढ़ी में इतिहास रचने को तैयार गद्दीनशीन महंत, पहली बार तोड़ेंगे 52 बीघे की परिधि की मर्यादा, रामलला के दर्शन को निकलेगी भव्य शोभायात्रा!

अयोध्या: हनुमानगढ़ी के इतिहास में पहली बार वह लम्हा आने वाला है, जब सदियों से चली आ रही परंपरा की मर्यादा में बंधे गद्दीनशीन महंत प्रेम दास जी अपनी गद्दी की 52 बीघे की परिधि को पार कर रामलला के दर्शन के लिए निकलेंगे. यह कदम न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ऐतिहासिक है, बल्कि हनुमानगढ़ी की सख्त नियमावली में भी एक अद्भुत लचीलापन दर्शाता है, जो श्रद्धा और भावना के आगे झुकता नजर आ रहा है.

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हनुमानगढ़ी, जो अपनी विशिष्ट परंपराओं और अनुशासन के लिए जानी जाती है, वहां यह नियम 1904 से लागू है कि गद्दी नशीन महंत आजीवन उस परिसर की सीमा से बाहर नहीं जा सकते जिसकी परिधि 52 बीघा में निर्धारित की गई है, इस नियम का पालन केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि कानूनी रूप से भी होता रहा है, सिविल कोर्ट भी इस नियम की मर्यादा का सम्मान करता है और महंत की गवाही यदि जरूरी हो, तो स्वयं परिसर में जाकर बयान दर्ज करता है, ऐसे में प्रेम दास जी का रामलला के दर्शन की इच्छा जाहिर करना और निर्वाणी अखाड़ा का इस पर सहमति देना, एक युगांतरकारी निर्णय बन गया है.

 

श्रद्धा के आगे झुकी परंपरा

गद्दीनशीन महंत प्रेम दास काफी समय से रामलला के दर्शन के लिए लालायित थे. जनवरी में राम मंदिर में हुई प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान उन्हें औपचारिक आमंत्रण भी मिला था, लेकिन नियमावली की बाध्यता ने उनके कदमों को बांध रखा था। हालांकि अखाड़े के अन्य महंतों, जैसे श्रीमहंत मुरली दास और उज्जैनिया पट्टी के महंत संतराम दास ने इस आयोजन में भाग लिया, लेकिन प्रेम दास जी को स्वयं जाने की अनुमति नहीं मिल सकी। इस बात की कसक उनके मन में बनी रही.

अब जाकर अखाड़े की विशेष बैठक में यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया कि अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर महंत प्रेम दास जी को गद्दी छोड़कर बाहर जाने की अनुमति दी जाएगी, यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया, जो बताता है कि धर्म और परंपरा की कठोर दीवारें भी प्रेम, श्रद्धा और आत्मिक इच्छा के सामने नरम हो सकती हैं.

भव्य शोभायात्रा की तैयारी

30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन यह शोभायात्रा हनुमानगढ़ी से प्रातः 7 बजे निकलेगी। महंत प्रेम दास जी अखाड़े के निशान के साथ गाजा-बाजा, नागा संतों, शिष्यों, श्रद्धालुओं और व्यापारियों के हुजूम के साथ पहले सरयू तट पहुंचेंगे. वहां मां सरयू का पूजन कर यात्रा राम मंदिर की ओर प्रस्थान करेगी, यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं होगी, बल्कि इतिहास में दर्ज होने वाली एक प्रतीकात्मक घटना होगी जो यह बताएगी कि कैसे मर्यादाएं भी समय के साथ परिपक्व होती हैं.

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को दी गई सूचना

अखाड़े की ओर से यह संपूर्ण जानकारी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को भी भेज दी गई है। पहले भी तीर्थ क्षेत्र द्वारा रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में हनुमानगढ़ी के सभी प्रमुख महंतों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन तब प्रेम दास जी की भागीदारी संभव नहीं हो सकी। अब जब स्वयं अखाड़े ने उन्हें अनुमति दे दी है, तो रामलला के दरबार में उनका आगमन निश्चित रूप से एक भावनात्मक और अध्यात्मिक क्षण होगा.

सदियों पुरानी परंपरा में एक नया अध्याय

हनुमानगढ़ी की 52 बीघे की सीमा को तोड़कर रामलला के दर्शन के लिए निकले गद्दी नशीन महंत प्रेम दास जी एक नई मिसाल कायम करने जा रहे हैं, यह कदम न केवल उनकी निजी साधना की पूर्ति है, बल्कि यह दर्शाता है कि परंपराएं जड़ नहीं होतीं, वे समय और भावना के अनुसार नया आकार ले सकती हैं.

इस ऐतिहासिक निर्णय से श्रद्धालुओं में भारी उत्साह है, धार्मिक जगत में इसे एक नई लकीर खींचने वाली घटना माना जा रहा है, जो आने वाले समय में अन्य मठ-मंदिरों के लिए भी एक मार्गदर्शक बन सकती है.

हनुमानगढ़ी के इतिहास में यह दिन स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगा, जब परंपरा, आस्था और प्रेम का संगम हुआ, गद्दी नशीन महंत प्रेम दास जी का रामलला के दर्शन हेतु बाहर निकलना यह सिद्ध करता है कि जब इरादे पवित्र हों और श्रद्धा अडिग हो, तो सदियों पुरानी दीवारें भी राह देने लगती हैं.

आप क्या सोचते हैं, क्या यह कदम अन्य परंपराओं में भी बदलाव का संकेत है?

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