अयोध्या : रामनगरी अयोध्या की पौराणिकता की साक्षी रही पवित्र सरयू नदी आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है.सरयू की वह जलधारा, जिसने न जाने कितने युगों से श्रद्धालुओं को शुद्धता का अहसास कराया, आज घाटों से कोसों दूर जा चुकी है.श्रद्धालु और साधु-संत अब सरयू में आचमन और स्नान के लिए रेत का टापू पार करने को विवश हैं.जलधारा के सिमटने से आस्था पर संकट गहराता जा रहा है.
गोस्वामी तुलसीदास ने ‘बंदउ अवध पुरी अति पावनि, सरयू सरिकलि कलुष नसावहि’ लिखकर अयोध्या और सरयू की महिमा का बखान किया था.भगवान श्रीराम ने भी सरयू की महत्ता को “उत्तर दिशि सरयू बह पावनि…” के माध्यम से वर्णित किया. लेकिन आज वही सरयू श्रद्धालुओं की पहुंच से बाहर होती जा रही है.
घाटों पर जलधारा नहीं, बल्कि विस्तृत रेत के मैदान पसरे हुए हैं.हालात यह हैं कि राम की पैड़ी से लेकर लक्ष्मण घाट तक श्रद्धालुओं को सरयू के जल तक पहुंचने के लिए एक से डेढ़ किलोमीटर तक रेत पर पैदल चलना पड़ रहा है.
सरयू नदी का जलस्तर प्रतिदिन चार सेंटीमीटर घट रहा है, जिससे प्रमुख घाटों जैसे राम की पैड़ी, आरती घाट, कच्चा घाट, पक्का घाट, और लक्ष्मण घाट पर घुटनों तक भी पानी नहीं बचा है. श्रद्धालु दूर से दर्शन करने के बाद केवल आचमन कर लौट जा रहे हैं.40 डिग्री तापमान में तपती रेत पर चलना कष्टदायक बन गया है.कई श्रद्धालुओं को रेत पर चलते हुए पैर जल जाने की शिकायत भी सामने आई है.कुछ ने तो तर्क दिया कि सरयू के जल से पहले वे रेत में स्नान कर चुके हैं.
गुप्तार घाट से लगभग सात किलोमीटर की दूरी तक सरयू की धारा तटबंध और अन्य घाटों से कटी हुई है.वहां केवल रेत के टापू और सूखा मैदान दिखाई देता है.नदी की यह बेबसी श्रद्धालुओं को ही नहीं, संत समाज को भी व्यथित कर रही है.
संतों की चिंता, श्रद्धालुओं की व्यथा
महंत करुणानिधान शरण ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा, “सरयू की धारा का घाटों से दूर होना शुभ संकेत नहीं है.यह अयोध्या की पौराणिकता और धार्मिक संस्कृति पर सीधा प्रहार है। मठ-मंदिरों में राग-भोग व पूजा-अर्चना में सरयू के जल का प्रयोग किया जाता है, लेकिन अब जलधारा ही नहीं बची है.”
महंत रामदास ने सरयू में हो रही ड्रेजिंग को इसकी स्थिति का कारण बताया.उन्होंने कहा, “नदी में आए दिन ड्रेजिंग कार्य होते हैं, जिससे जलधारा अपनी दिशा बदल रही है.घाटों पर जब जल नहीं बचेगा तो श्रद्धालु आचमन और स्नान कैसे करेंगे? यह केवल आस्था का प्रश्न नहीं, संस्कृति और परंपरा का भी मामला है.”
सरयू के घाटों पर बिखरा रेत का साम्राज्य
राम की पैड़ी, जहां रोजाना हजारों श्रद्धालु स्नान करते थे, वहां अब जल के स्थान पर रेत की परतें हैं.कुछ घाटों पर तो श्रद्धालु केवल जल का आभास कर पा रहे हैं.आरती घाट पर शाम को होने वाली गंगा आरती की छटा तो अब भी बरकरार है, लेकिन जल की अनुपस्थिति ने उस माहौल की पवित्रता को कम कर दिया है.
स्थानिय दुकानदारों और नाविकों का व्यवसाय भी प्रभावित हुआ है.घाटों पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में कमी आई है.नाविक राकेश यादव कहते हैं, “पहले दिनभर नाव चलती थी.अब लोग नाव तक पहुंच ही नहीं पाते क्योंकि पानी ही नहीं है। हमारी रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है.”
प्रशासन और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
केंद्रीय जल आयोग के जूनियर इंजीनियर अमन चौधरी ने सरयू की वर्तमान स्थिति को अस्थायी बताया.उन्होंने कहा, “यह स्थिति कई वर्षों बाद बनी है.नदी की धारा हर साल दिशा बदलती है, जो प्राकृतिक प्रक्रिया है.अगले वर्ष धारा फिर घाटों की ओर लौट सकती है। फिलहाल, सरयू में जल छोड़े जाने की योजना पर कार्य चल रहा है.”
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि केवल प्राकृतिक कारणों को दोष देना पर्याप्त नहीं होगा.जल प्रबंधन की स्पष्ट रणनीति न होना भी इस स्थिति का एक बड़ा कारण है.बरसात में पानी छोड़ने के बाद किसी दीर्घकालीन समाधान पर ध्यान नहीं दिया जाता.
स्थायी समाधान की दरकार
जल संकट के इस दौर में यह आवश्यक हो गया है कि सरयू की पवित्रता और प्रवाह को बनाए रखने के लिए एक स्थायी समाधान खोजा जाए.विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि नदी के मूल प्रवाह को घाटों की ओर मोड़ने के लिए वैज्ञानिक ढंग से ड्रेजिंग और मार्गदर्शन किया जाए.इसके साथ ही जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना भी आवश्यक है.
सरयू केवल एक नदी नहीं, अयोध्या की सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना का केंद्र है.यदि उसकी धारा ही विलुप्त हो गई, तो यह सिर्फ जल संकट नहीं, बल्कि परंपरा और आस्था की हार होगी.
सरयू की वर्तमान दशा ने अयोध्या के संत समाज और श्रद्धालुओं को चिंतित कर दिया है.जब आचमन और स्नान जैसे धार्मिक कर्म भी कठिन हो जाएं, तो यह समय चेतने का है.प्रशासनिक तंत्र और जल प्रबंधन एजेंसियों को चाहिए कि वे समय रहते ठोस कदम उठाएं, ताकि रामनगरी की पहचान सरयू फिर से अपने पूर्ण स्वरूप में घाटों पर लौटे और श्रद्धालु बिना रेत स्नान किए पुण्य की अनुभूति कर सकें.