आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने वाले नियम को हटाने को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. केंद्र ने शनिवार को सर्वोच्च अदालत से सरकार के फैसले पर लगाई गई रोक हटाने की गुहार लगाई गई है. सर्वोच्च अदालत ने ही पिछले साल ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम 170 हटाने के सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी. साथ ही इससे जुड़ा आयुष मंत्रालय का नोटिफिकेशन भी रद्द कर दिया था.
दरअसल नियम 170 आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाता है. इसके तहत लाइसेंसिंग प्राधिकारी की मंजूरी के बिना तीनों पद्धतियों की दवाओं का कोई भी विज्ञापन नहीं जारी किए जाने का प्रावधान है. सरकार ने सर्वोच्च अदालत में आवेदन दायर कर जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता बेंच द्वारा पिछले साल 27 अगस्त को जारी आदेश वापस लेने की मांग की है.
सलाहकार बोर्ड ने इसे हटाने की सिफारिश की थी
घटनाक्रम के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा 2023 में जारी एक पत्र ने पहले नियम 170 को लागू करने पर प्रभावी रूप से रोक दिया था. इस पत्र में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया था कि वे भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इस नियम को लागू न करें, क्योंकि सलाहकार बोर्ड ने इसे हटाने की सिफारिश की थी. पिछले साल यह पत्र वापस ले लिया गया, हालांकि इसके बाद सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के जरिए इस नियम को पूरी तरह से हटा दिया गया.
सर्वोच्च अदालत ने गतवर्ष यह सूचना सामने आने पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान गहरी नाराजगी जताई थ. साथ ही स्पष्ट कर दिया था कि यह नियम फिलहाल कानून की किताबों में रहेगा. अब सरकार ने अदालत से उसके आदेश को ही वापस लेने की गुजारिश की है. याद रहे कि नियम 170 को 2018 में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स,1945 में जोड़ा गया था. इसमें कहा गया कि आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाएं, जिस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में बन रही है, वहां की लाइसेंसिंग अथॉरिटी के अप्रूवल के बिना विज्ञापन नहीं दिया जा सकेगा.
मशहूर हस्तियों द्वारा विज्ञापन भी शामिल
सरकार ने आवेदन में कहा है कि नियम 170 की संवैधानिक वैधता को लेकर हितधारकों द्वारा गंभीर चिंताएं जताई हैं. यह तर्क दिया गया कि नियम 170 के तहत लगाए गए प्रतिबंध केवल आयुष उद्योग पर ही लागू होते हैं, जबकि अन्य उद्योग जैसे एलोपैथिक फार्मास्यूटिकल्स, न्यूट्रास्यूटिकल्स, सौंदर्य प्रसाधन और खाद्य पूरक अपने उत्पादों का विज्ञापन के लिए छूट है, जिसमें मशहूर हस्तियों द्वारा विज्ञापन भी शामिल हैं. यह तर्क भी दिया गया कि यह चयनात्मक प्रतिबंध असमान व्यवहार के समान है और अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है. साथ ही संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.
सरकार बोली- वैकल्पिक और प्रभावी वैधानिक तंत्र मौजूद
सरकार ने सर्वोच्च अदालत से कहा है कि आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी औषधियों से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मुद्दे औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 द्वारा प्रभावी रूप से नियंत्रित होते हैं. इस तरह से भ्रामक विज्ञापनों की जांच और उन पर अंकुश लगाने के लिए एक वैकल्पिक और प्रभावी वैधानिक तंत्र मौजूद है. निगरानी को और मजबूत करने के लिए मंत्रालय ने ‘आयुष सुरक्षा पोर्टल’ नामक एक डिजिटल समाधान विकसित किया है, ताकि भ्रामक विज्ञापनों की रिपोर्ट की गई घटनाओं पर नजर रखी जा सके. उपभोक्ता मामलों के विभाग ने भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिए खिलाफ शिकायत (GAMA) पोर्टल शुरू किया है। यह एक नीतिगत विषय है और सरकार की गुजारिश है कि अदालत नियम 170 को हटाने के आदेश पर लगी रोक हटाए.