अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने भारत से मांग की है कि वो आर्मेनिया को हथियार देना बंद करे. राजधानी बाकू में COP29 से जुड़े कार्यक्रम में एक सवाल का जवाब देते हुए अलीयेव ने कहा, “यह हमारी देश की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है. फ्रांस, भारत, ग्रीस जैसे देश आर्मेनिया को हमारे खिलाफ जाकर हथियार सप्लाई कर रहे हैं. ऐसे में हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे नहीं रह सकते.”
राष्ट्रपति अलीयेव ने कहा, “हमने आर्मेनिया और उसे हथियार देने वाले देशों के सामने अपना रुख साफ कर दिया है. अगर हमारे देश की सुरक्षा को खतरा होगा तो हम इसके खिलाफ एक्शन लेंगे. आर्मेनिया हमारे खिलाफ अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है. वो हमारी सीमा पर अपने सैनिक तैनात कर रहा है. ऐसे में हम चुप नहीं रह सकते.”
दरअसल, कारबाख को लेकर अजरबैजान और आर्मेनिया में लंबे समय से विवाद रहा है. पाकिस्तान और तुर्किये अजरबैजान को खुला समर्थन और सैन्य सहयोग देते हैं. इसके बदले अजरबैजान कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता है. पिछले साल भारत में मौजूद अजरबैजान के राजदूत अशरफ शिकालियेव ने कहा था कि पिछले 30 साल से अजरबैजान कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ देता आया है.
ऐसे में भारत ने पिछले कुछ समय में आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाया है. भारत ने पिछले साल जुलाई में आर्मेनिया को पिनाक रॉकेट लॉन्चर का पहला शिपमेंट डिलिवर किया था. पिनाक की डिलीवरी होने की खबर सामने आते ही अजरबैजान में राष्ट्रपति के सलाहकार हिकामत हाजियेव ने भारतीय राजूदत से मुलाकात की थी. इस दौरान उन्होंने भारत-आर्मेनिया में बढ़ते रक्षा सहयोग पर चिंता जताई थी.
आर्मेनिया और भारत के बीच एक और डिफेंस डील है, जिसमें फ्रांस भी पार्टनर के तौर पर शामिल है. इसके तहत भारत आर्मेनिया को देश में बना एंटी-एयर सिस्टम आकाश एक्सपोर्ट करेगा. हवाई हमले रोकने वाले इस सिस्टम में तोप, गोला-बारूद और ड्रोन शामिल हैं.
इसके लिए दोनों देशों में करीब 6 हजार करोड़ रुपए का समझौता हुआ था. इस डील के बाद अजरबैजान के राष्ट्रपति ने कहा था कि भारत और फ्रांस इस डील के जरिए आग में घी डालने का काम कर रहे हैं. इन हथियारों के बाद भी आर्मेनिया कारबाख वापस नहीं ले सकता. अजरबैजान ने पिछले साल सितंबर में नागोर्नो-कारबाख इलाके पर कब्जा कर लिया था.