‘ये रेशमी ज़ुल्फें, शरबती आंखें…’
‘उड़ें जब-जब जुल्फें तेरी, कंवारियों का दिल मचले..’
‘ओ हसीना जुल्फों वाली जान-ए-जहां, ढूंढती हैं काफिर आंखें…’
बालों और ज़ुल्फों की खूबसूरती को तमाम शायरों और फिल्मकारों ने अपने-अपने लहजे में बयां किया है. इसके बाद प्रेमी-प्रेमिका भी एक-दूसरों की ज़ुल्फों यानी बालों की तारीफ करने से भी दूर नहीं रह पाए.
समय के साथ भले ही बालों के सौंदर्य को स्त्रियों के रूप के साथ ज्यादा जोड़ा गया हो लेकिन पुरुषों के सौंदर्य में भी उनके बालों की काफी अहमियत है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, अगर आपके ये बाल झड़ गए तो?
बढ़ती उम्र, बीमारी, शरीर में विटामिन, प्रोटीन और हार्मोंस की कमी या फिर जेनेटिक्स. छत्तीसों ऐसे कारण हैं जिनसे पुरुष और महिलाओं के बाल झड़ने लगते हैं.
हालांकि, दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हुए जिन्होंने गंजेपन की कमी को पूरा करने के लिए सदियों पहले एक तरीका अपनाया. वो तरीका था, हेयर विग. हालांकि समय के साथ इनके कई नए रूप भी सामने आए जिन्हें लोग हेयर पैच, हेयर टॉपर, हेयर एक्सटेंशन जैसे भांति-भांति के नामों से जानते हैं.
लेकिन इन्हें लेकर भी लोगों के मन में कई सवाल हैं. जैसे हेयर विग या पैच क्या होते हैं, इन्हें कैसे बनाते हैं, इनके लिए बाल कहां से आते हैं, ये कितने सुरक्षित हैं और भी ऐसे ही कई तमाम तरह के सवाल.
मेरी इस ‘बाल कथा’ में बालों से जुड़े आपके सारे सवालों और मसलों का हल है. तो आइए देर न करते हुए नकली बालों की पूरी A,B,C, D भी जान लीजिए. लेकिन इस ‘बाल कथा’ को शुरू करने से पहले हेयर विग का इतिहास जानना भी काफी जरूरी है जिसे जानकर आपको भी काफी हैरानी होगी कि कितनी सदियों से हेयर विग इंसानों के जीवन का अहम हिस्सा रहा है.
हेयर विग का इतिहास
हेयर विग और एक्सटेंशन का इतिहास काफी पुराना और दिलचस्प है. ऐसा लगता है कि हमारे पूर्वजों के लिए भी अच्छे बाल रखना उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि हमारे लिए है.
हेयर एक्सटेंशन और विग का पहला उपयोग लगभग 3400 ईसा पूर्व, प्राचीन मिस्र में हुआ था. उस समय किसी के भी सिर पर लंबे और घने बाल होना एक स्टेटस सिंबल माना जाता था. उस समय हेयर विग और हेयर एक्सटेंशन ऊंचे पद पर बैठे स्त्री और पुरुष जैसे नेता, फिरौन (मिस्र के शासक) और रानियां पहनते थे.
जब हम मिस्र की बात करते हैं तो वहां की रानी क्लियोपेट्रा की फोटो सामने आती है. क्लियोपेट्रा के बारे में बताया जाता है कि वह भी हेयर एक्सटेंशन और विग लगाती थीं ताकि उनके बाल मोटे, घने और लट वाले दिखें.
पुरातत्वविदों ने ऐसे सबूत भी खोजे हैं जो बताते हैं कि बालों को घना बनाने के लिए भेड़ के ऊन को क्लियोपेट्रा के बालों में लपेटा जाता था. इसे ही पहला हेयर एक्सटेंशन कहा गया.
पुरातत्वविदों ने विग का आविष्कार करने का श्रेय मिस्रवासियों को ही दिया. उस समय विग इंसानी बाल, सेल्यूलोस और भेड़ के ऊन से बनाए जाते थे. कहा जाता है कि उन्हें मधुमक्खियों के मोम से सिर पर चिपकाया जाता था.
16वीं शताब्दी में महारानी एलिजाबेथ प्रथम को चेचक हुआ था जिसके कारण उनके बाल झड़ गए थे. इसके बाद से उन्होंने हेयर विग पहनना शुरू किया था. वह घुंघराले, लाल हेयर विग पहनती थीं जो रोमन शैली नाम से फेमस हुआ था. बताया जाता है कि उनके पास 80 से अधिक हेयर विग्स थीं.
अब बारी आती है, 17वीं और 18वीं शताब्दी की. इस समय तक विग का चलन बढ़ने लगा था और 17वीं शताब्दी में फ्रांस के राजा लुई तेरहवें (King Louis XIII) ट्रेंडसेटर बने क्योंकि वह अपने गंजेपन को छिपाने के लिए विग पहनते थे. इसके बाद 18वीं शताब्दी में लुई चौदहवें और लुई पंद्रहवें ने भी हेयर विग के चलन को आगे बढ़ाया.
20वीं शताब्दी में अलग-अलग हेयर स्टाइल के लिए पुरुष और महिला दोनों हेयर विग का प्रयोग करने लगे. धीरे-धीरे उनकी गुणवत्ता में सुधार होने लगा और आजकल मार्केट में इनका रूप बदल गया एवं 100 प्रतिशत ह्यूमन हेयर विग और एक्सटेंशन आसानी से उपलब्ध हो रही हैं. इन्हें अलग-अलग नामों से जानने लगे जैसे, हेयर पैच, हेयर टॉपर, हेयरपीस आदि.गंजेपन को छिपाने बालों की लंबाई बढ़ाने, वॉल्यूम बढ़ाने या अपने बालों को अलग-अलग स्टाइल करने के लिए पुरुष और महिला इनका इस्तेमाल कर रहे हैं.
भारत में बालों का बिजनेस
पिछले कुछ दशकों में दुनिया के साथ-साथ हेयर केयर प्रोडक्ट्स का बिजनेस को बढ़ा ही है, साथ ही साथ हेयर विग के मार्केट में भी तेजी आई है. 2021 में दुनिया भर में हेयर विग्स का कारोबार 48 हजार करोड़ का रहा था वहीं अनुमान लगाया जा रहा है कि 2024 तक हेयर विग्स का बाजार 82 हजार करोड़ रुपये के होने का अनुमान है.
Statista के मुताबिक, भारत 2022 में मानव बाल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक था जिसमें भारत ने करीब 11.7 अरब रुपये के बाल निर्यात किए थे. भारत से बाल बर्मा, इटली, सिंगापुर, ब्रिटेन और बांग्लादेश में निर्यात होते हैं. वहीं भारत ने 2022 में 16.96 करोड़ रुपये के बाल आयात भी किए थे. इन आंकड़ों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दुनिया के साथ भारत में भी हेयर विग्स और पैच की डिमांड कितनी बढ़ रही है. तो आइए अब जानते हैं कि आखिरकार हेयर विग और पैच बनती कैसे हैं.
हेयर विग और पैच बनने की प्रोसेस जानने के लिए हम उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में जेमेरिया हेयर की फैक्ट्री में पहुंचे तो उसके ओनर और डायरेक्टर शशि कांत त्यागी ने पूरी प्रोसेस को काफी आसान तरीके से समझाया. शशि कांत बताते हैं, ‘हेयर्स बनाने की कुल 7 प्रोसेस होती हैं. पहली प्रोसेस में हम बालों की नीलामी में हिस्सा लेते हैं जिसमें हम बाल खरीदते हैं. इसके बाद बाल बोरे में भराकर हमारी फैक्ट्री आते हैं. इसके बाद उन बालों में से हैकलिंग प्रोसेस से उलझे बालों को अलग किया जाता है.’
‘फिर उलझे बालों को उनकी बनावट (सीधे, घुंघराले), रंग और लंबाई के आधार पर अलग-अलग किया जाता है जिसे सेग्रिगेशन कहते हैं. इसके बाद बालों को वॉश करने के लिए भेजा जाता है जहां उनकी अच्छे से धुलाई होती है और उसके बाद उन्हें सुखाया जाता है.’
‘बालों को सुखाकर उन बालों के हेड सेट (बालों के सिरों को एक जैसा काटना) किए जाते हैं. इसके बाद वे एक जैसे बाल का यूज अलग-अलग तरीके से किया जाता है. इनसे हेयर वेफ्ट (लड़ी) बनाए जाते हैं जिनका यूज हेयर विग्स और एक्सटेंशन में किया जाता है. वहीं इनका यूज हेयर पैच और विग में भी किया जाता है.’
कंपनी की डायरेक्टर मनि त्यागी ने इंडियन मार्केट में यूज होने वाली हेयर विग और पैच के बारे में बताया, ‘हमारे यहां बाल दक्षिण भारत के मंदिरों से आते हैं क्योंकि वहां के बाल सबसे अच्छे माने जाते हैं. बालों की कीमत लंबाई के हिसाब से 9-10 हजार रुपये प्रतिकिलो से शुरू होती है जो 58,000 रुपये तक भी जाती है. हम पुरुषों के लिए हेयर पैच-विग एवं महिलाओं के लिए हेयर टॉपर और एक्सटेंशन बनाते हैं. हेयर पैच और हेयर टॉपर एक ही तरीके से बनते हैं, बस उनमें अलग-अलग लंबाई के बाल इस्तेमाल होते हैं. हेयर पैच में बालों की लंबाई 4 से 10 इंच तक होती है और हेयर टॉपर में बालों की लंबाई 10 से 30 इंच तक होती है.’
मनि आगे बताती हैं, ‘इंडियन मार्केट में जो हेयर विग यूज होती हैं, वो हाई क्वालिटी विग होती है. इसे मोनोफिलामेंट फैब्रिक (मजबूत, लचीला और लंबे समय तक चलने वाला कपड़ा) पर हाथ से नोटिंग करके बनाया जाता है. एक विग को बनाने में 7-8 दिन का समय लगता है और एक ही शख्स इसे बनाता है.’
हेयर पैच के बारे में डॉक्टर्स क्या कहते हैं?
अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली के सीनियर डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. डीएम महाजन का कहना है, ‘हेयर पैच सुरक्षित हैं. लेकिन इसके लिए यह जानना भी जरूरी है कि वह अच्छे वेंडर से लिया हो और उसे बनाने में अच्छे मटेरियल का बना हो. ऐसा हेयर पैच हो जो आपकी स्किन पर फिट हो जाए और जो आपकी स्किन को बिल्कुल भी नुकसान न पहुंचाए. लंबे समय तक लगाने वाले हेयर की अपेक्षा रोजाना निकालने और लगाने वाला हेयर पैच अधिक सुरक्षित है क्योंकि लंबे समय तक लगाए रहने से हेयर पैच के नीचे इंफेक्शन भी हो सकता है.’
दिल्ली के हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन और डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. गौरांग कृष्णा का कहना है, ‘हेयर पैच लगाना वैसे तो सुरक्षित है लेकिन हमने नोटिस किया है कि जो लोग काफी महीनों या सालों तक हेयर पैच पहनते हैं, उनकी स्किन में थोड़ा बहुत डैमेज हो सकता है या उनके पुराने बालों में भी डैमेज हो सकता है इसलिए समय-समय पर हेयर पैच को निकालकर साफ करते रहें. टेप और ग्लू बाले हेयर पैच लगाना अधिक सुरक्षित है क्योंकि उसमें आप अपने स्कैल्प पर ध्यान दे पाते हैं.’
हेयर विग के बारे में इंटरेस्टिंग बातें
भारत में विग और हेयर एक्सटेंशन प्राचीन काल से पहने जा रहे हैं. इतिहासकार बताते हैं कि मुगल सम्राटों के दरबार में पुरुष 16वीं और 17वीं शताब्दी में विग पहनते थे जो पद और प्रतिष्ठा का प्रतीक मानी जाती थी.
मुगल साम्राज्य के दरबारी जो विग पहनते थे, उसे रत्नों और अलंकरणों से सजाया जाता था. इन विग्स को भी असली बालों से बनाया जाता था. धीरे-धीरे इनका चलन बढ़ता गया और 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में महिलाएं भी बालों को और घना दिखाने के लिए विग पहनने लगीं.
अब धीरे-धीरे हेयर विग की एंट्री फिल्मों में हुई और 1960-1970 के दशक में भारतीय सिनेमा में भी हीरो-हीरोइन विग पहनने लगे. बस यही वो समय रहा जब हेयर विग ने रफ्तार पकड़ी और भारत में आम लोग भी इसके बारे में जानने लगे.
लंदन यूनिवर्सिटी के गोल्डस्मिथ में ह्यूमन साइंस की प्रोफेसर और एनटैंगलमेंट: द सीक्रेट लाइव्स ऑफ हेयर बुक (2016) की राइटर एम्मा टार्लो (Emma Tarlo) का कहना है, ‘जब 1912 में चीन में मांचू (राजा) राजवंश का तख्तापलट हुआ तो एक आदेश जारी किया गया कि पुरुषों को अपनी चोटियां काटनी होंगी. जिन लोगों ने चोटियां नहीं कटवाई थीं, उन लोगों की चोटियां जबरन काट दी गई थीं. ऐसे में 1960 के दशक में चीन का हेयर बिजनेस फिर घाटे में आने लगा क्योंकि उस समय अमेरिका ने तथाकथित ”कम्युनिस्ट बालों” पर प्रतिबंध लगा दिया था. यही वह समय था जब भारतीय बाल इंडस्ट्री के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गए थे. तब से अब हेयर बिजनेस काफी बढ़ गया है.’