भरतपुर: आज के इस दौर में दिव्यांग शब्द सुनकर कोई भी यही अंदाजा लगाएगा कि एक दिव्यांग को सहारे की जरूरत होती है. लेकिन इस बात को गलत साबित किया है, 56 वर्षीय बबीता गुलाटी ने. पोलियो से उनके दोनों पैर और एक दायां हाथ खराब है फिर भी अपना घर आश्रम में रह रहे हजारों असहाय लोगों का सहारा बन समाज सेवा की एक अनमोल मिसाल पेश की. उनका यह कार्य हम सबके लिए न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि सच्ची मानवता और परोपकार का प्रतीक भी है.15 साल पहले अपना घर में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी से शुरुआत की और दो साल बाद असहाय लोगों की देखभाल करने के लिए अपने घर को छोड़कर अपना घर आश्रम से पूरी तरह जुड़ गई.अब अपना घर आश्रम की प्रशानिक अधिकारी और अध्यक्ष है.आश्रम में इलेक्ट्रॉनिक व्हील चेयर से मॉनिटरिंग करने के साथ आश्रम की सभी जिम्मेदारी संभालती है.आश्रम में रहने वाले और कार्य करने वाले सभी उन्हें बबीता दीदी के नाम से जानता है. 2025 में उनका एक ही लक्ष्य कोई भी असहाय उपचार और सेवा के अभाव में दम नहीं तोड़े.
शहर स्थित कृष्णा नगर निवासी 56 वर्षीया बबीता गुलाटी ने बताया कि जब 3 साल की थी तब पोलियो का शिकार हो गईं. पोलियो से उनके दोनों पैर और एक दायां हाथ खराब हो गया.उन्होंने कामर्स में ग्रेजुएशन कर लिया. रोजगार की तलाश में उन्होंने अपना घर में वर्ष 2009 में नौकरी शुरू की. किंतु अपना घर आश्रम में रह रहे असहायों की सेवा करने वालों को देखा तो जीवन जीने का इससे अच्छा कोई रास्ता नहीं हो सकता और मैंने अपना जीवन बिताने का यहीं फैसला लिया और नौकरी छोड़कर स्वयंसेवक की भूमिका में आ गई.
उन्होंने कहा कि आश्रम की सभी जिम्मेदारी ठाकुर जी संभालते है हम तो सिर्फ निमित मात्र है.मेरे दोनों हाथ और एक दाया हाथ काम नहीं करता लेकिन हाथ और पैरों से कुछ नहीं होता आत्मा शक्तिशाली होती है. आत्मा कभी आवाज और विकलांग नहीं होती जो व्यक्ति की सोच होती है. वह कभी अपाहिज नहीं होती अगर किसी में जज्बा है तो सब काम आसानी से होता है. यही वजह है कि भरतपुर अपना घर आश्रम में रह रहे 6 हजार 416 असहाय लोगों की देखभाल के साथ मानसिक रूप से विक्षिप्त अथवा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के रेस्क्यू, रजिस्ट्रेशन, आवास, भोजन, चिकित्सा, स्वच्छता, डिमांड, पुनर्वास, प्रशिक्षण, प्राेडेक्शन, अध्यापन और अंतिम विदाई तक की सारी व्यवस्थाएं 479 स्टाफ के सहयोग से पूर्ण होती है.
बबीता गुलाटी के नव वर्ष को लेकर एक ही पॉजिटिव सोच है कि कोई भी असहाय उपचार और सेवा के अभाव में दम नहीं तोड़े. अपना घर आश्रम भरतपुर के बझेरा गांव में स्थित है बीएम भारद्वाज और माधुरी भारद्वाज ने अपना घर आश्रम प्रारंभ किया था.देश में विभिन्न स्थानों पर 62 और एक नेपाल में संस्था है.जिनमें 15000 असहाय लोग रह रहे है.सभी आश्रमों में कार्यरत और लोकल कार्यकारिणी व्यवस्थाएं देखती है.