सरकारी आवास के प्रति कर्मचारियों का इतना प्रेम होता है कि ट्रांसफर हो जाने के बावजूद उस आवास को नहीं छोड़ते. इतना ही नहीं अपने उच्च अधिकारियों के द्वारा भेजे गए पत्र और नोटिस को भी हल्के में लेते हैं. ऐसा ही मामला गाजीपुर के रिवर बैंक कॉलोनी का सामने आया है, जहां पर जिले के अधिकारी रहते हैं और यहीं पर एक कर्मचारी जिसका एक साल पहले सैदपुर तहसील में ट्रांसफर हुआ था. बावजूद इसके वह अपना सरकारी आवास नहीं छोड़ रहा था, जिसकी जानकारी पर जिलाधिकारी ने उक्त कर्मचारी को सस्पेंकर दिया
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कर्मचारियों और अधिकारियों को सरकारी आवास आवंटित किया जाता है. जिन्हें आवास नहीं मिलता, उन्हें आवास भत्ता दिया जाता है, लेकिन स्थिति ये हो गई है कि एक बार जो कर्मचारी सरकारी आवास ले लेता है, फिर वह उसको छोड़ना नहीं चाहता. भले ही उसका ट्रांसफर किसी दूसरी तहसील में ही क्यों न हो जाए.
रिवर कॉलोनी में है बाबू का सरकारी आवास
ऐसा ही मामला गाजीपुर के रिवर कॉलोनी से जुड़ा हुआ है, जो अधिकारियों के रहने के लिए बनाया गया है. यहीं पर कुछ कर्मचारियों के आवास बने हुए हैं. इसी में से एक आवास में कलेक्ट्रेट के बाबू राधेश्याम रहते हैं. राधेश्याम का ट्रांसफर करीब एक साल पहले सैदपुर तहसील में माल बाबू के पद पर हुआ था. वह प्रतिदिन सैदपुर से आते और जाते हैं. ट्रांसफर के बाद भी उन्होंने रिवर कॉलोनी में स्थित सरकारी आवास को खाली नहीं किया.
जबकि दूसरी तहसील में ट्रांसफर हो जाने के तत्काल बाद उन्हें सरकारी आवास खाली कर देना चाहिए था. एडीएम के द्वारा कई बार उन्हें पत्र भी भेजा गया, लेकिन बाबू पर उसका कोई असर नहीं पड़ा. इसके बाद अधिकारियों ने इसे गंभीरता से लेते हुए इस मामले को जिलाधिकारी तक पहुंचाया और जिलाधिकारी ने अब इस मामले में कार्रवाई करते हुए आदेशों के अवहेलना करने के मामले में राधेश्याम को नलंबित कर दिया.
नलकूप विभाग में भी आया था इसी तरह का मामला
यह कोई एक बाबू का मामला नहीं है, बल्कि इस तरह के बहुत सारे कर्मचारी हैं, जो ट्रांसफर हो जाने के बावजूद सरकारी आवासों में आज भी बने हुए हैं. कई तो ऐसे भी हैं, जो सरकारी आवास के पात्र भी नहीं हैं, बावजूद इसके पिछले कई सालों से उन आवासों में रह रहे हैं. इस तरह का मामला गाजीपुर के नलकूप विभाग में भी सामने आया था.