बलूच लीडर मीर यार बलोच ने बुधवार को पाकिस्तान से बलूचिस्तान की आजादी की औपचारिक घोषणा कर दी, उन्होंने दशकों से चले आ रही हिंसा, जबरन गायब किए जाने और मानवाधिकार उल्लंघनों को इसकी वजह बताया है. उन्होंने X पर एक पोस्ट में कहा कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना राष्ट्रीय फैसला ले लिया है और दुनिया को अब चुप नहीं रहना चाहिए. लिहाजा उन्होंने भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन की अपील की है.
मीर यार बलोच ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक भावुक अपील में लिखा कि तुम मारोगे, लेकिन हम निकलेंगे, क्योंकि हम नस्ल बचाने निकले हैं, आओ हमारा साथ दो. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में बलूच लोग सड़कों पर हैं और ये उनका फैसला है कि बलूचिस्तान अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है और दुनिया अब मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकती.
मीर यार बलोच ने भारतीय मीडिया, यूट्यूबर्स और बुद्धिजीवियों से आग्रह किया कि वे बलूचों को ‘पाकिस्तान के अपने लोग’ कहना बंद करें. उन्होंने कहा कि हम बलूचिस्तानी हैं, पाकिस्तानी नहीं. बलूच नेता ने कहा कि ‘पाकिस्तान के अपने लोग पंजाबी हैं, जिन्होंने कभी हवाई बमबारी, जबरन गायब किए जाने और नरसंहार का सामना नहीं किया.’
PoK पर भारत के रुख का समर्थन
बलोच नेता मीर यार बलोच ने भारत की PoK को खाली कराने की मांग का पूर्ण समर्थन किया. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान पर इस क्षेत्र को खाली करने के लिए दबाव बनाने का आग्रह किया. मीर यार ने कहा कि 14 मई 2025 को बलूचिस्तान पाकिस्तान से पीओके खाली करने के लिए कहने के भारत के फैसले का पूरा समर्थन करता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान से पीओके को तुरंत छोड़ने का आग्रह करना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर पाकिस्तान ने बात नहीं मानी, तो 93000 सैनिकों की ढाका जैसी एक और शर्मनाक हार के लिए सिर्फ पाकिस्तानी सेना के लालची जनरल जिम्मेदार होंगे, जो PoK की जनता को मानव ढाल बना रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तानी सेना को हराने में सक्षम है.
मीर यार बलोच ने भारत और वैश्विक मंचों से अपील की कि वे बलूचिस्तान की स्वतंत्रता को मान्यता दें और पाकिस्तान के झूठे दावों का समर्थन न करें. उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान को बलपूर्वक और विदेशी ताकतों की मिलीभगत से पाकिस्तान में मिलाया गया था.
बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का गंभीर हनन
बलूचिस्तान में कई साल से गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों की खबरें आती रही हैं, जिनमें जबरन गुमशुदगी, फर्ज़ी मुठभेड़, और असहमति की आवाज़ों को दबाया जाना शामिल है. इन अपराधों के लिए पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और स्थानीय सशस्त्र गुटों दोनों को जिम्मेदार ठहराया गया है. आम नागरिक इस संघर्ष में पिसते हैं, जहां न मीडिया की पहुंच होती है और न ही कोई न्यायिक जवाबदेही.