बलरामपुर : जहां व्यवस्था की चुप्पी गूंज बन जाए और असुविधाएं भी संकल्प के आगे घुटने टेक दें — ऐसी ही मिसाल पेश की है बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ विकासखंड के कमारी गांव ने.गर्भवती महिला की जान बचाने के लिए परिजनों ने जो किया, वह केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि समूचे ग्रामीण भारत की जुझारू आत्मा की कहानी है.
ना एंबुलेंस, ना पक्की सड़क – फिर भी नहीं टूटा हौसला,
लोहराटांड पारा, जो आज भी सड़क सुविधा से वंचित है, वहां एक गर्भवती महिला की तबीयत बिगड़ने पर जब 102 एंबुलेंस को कॉल तक नहीं किया गया, तब परिजनों ने ठान लिया कि अब जिम्मेदारी उनकी है.उन्होंने महिला को ट्रैक्टर ट्राली में लिटाया और कीचड़, बारिश और जोखिम भरे रास्तों से कई किलोमीटर तक सफर कर शंकरगढ़ अस्पताल पहुंचाया.
ज़िंदगी मिली, क्योंकि इंसानियत जागी
महिला को समय पर प्राथमिक उपचार मिला और फिर अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया, जहां उसकी स्थिति अब स्थिर है.
बलरामपुर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बसंत कुमार सिंह ने बताया कि कमारी गांव का लोहराटांड पारा सड़क सुविधा से वंचित है.गांव तक जाने वाली कच्ची सड़क बारिश के मौसम में कीचड़ में तब्दील हो जाती है, जिससे एंबुलेंस जैसी आपातकालीन सेवाएं भी नहीं पहुंच पातीं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 102 एंबुलेंस सेवा के लिए कॉल ही नहीं किया गया था.
प्रशासन को आईना, जनता को प्रेरणा
यह घटना एक चेतावनी भी है और प्रेरणा भी — जहां सिस्टम चुप था, वहां एक गांव की जागरूकता और हिम्मत ने साबित कर दिया कि असली ताकत जमीनी स्तर पर होती है.
अब सवाल है – क्या इस जज़्बे को सिस्टम सहयोग देगा?
सरकार और प्रशासन के लिए यह अवसर है कि वह केवल रिपोर्ट न बनाए, बल्कि समाधान की नींव रखे.क्या कमारी गांव की यह गुंज प्रशासन के कानों तक पहुंचेगी?