बलरामपुर: जिले के चलगली थाना क्षेत्र के बड़कागांव में बकरी चोरी के शक में ग्रामीणों ने दो युवकों को पकड़कर इतनी बेरहमी से पीटा कि दोनों की हालत नाजुक हो गई. जानकारी के मुताबिक, प्रार्थी महेंद्र सिंह (पिता देवसरा, उम्र 26 वर्ष), निवासी शारदपुर ने पुलिस को बताया कि वह अपने बकरे को सड़क किनारे चरने के लिए बांधकर थोड़ी दूरी पर काम कर रहा था. इसी दौरान मोटरसाइकिल में सवार कार्तिक (पिता रामधनी) और सूरत (पिता शिवनारायण), निवासी ग्राम बड़कागांव वहां से गुजरे. सुनसान इलाका देखकर दोनों ने मौका पाया और बंधे हुए बकरे को खोलकर मोटरसाइकिल के बीच में रख लिया और तेजी से निकल पड़े.
बकरे के मालिक महेंद्र सिंह ने जब बकरा गायब पाया तो आसपास के लोगों से संपर्क किया और फोन के जरिए जानकारी जुटाई. कुछ ही दूरी पर उसने दोनों युवकों को बकरे के साथ देख लिया और ग्रामीणों की मदद से उन्हें घेरकर पकड़ लिया. जैसे ही यह खबर गांव में फैली, मौके पर बड़ी संख्या में लोग जुट गए. किसी ने भी पुलिस को सूचना देने की जरूरत नहीं समझी और देखते ही देखते आरोपितों की पिटाई शुरू हो गई. लाठी-डंडों और थप्पड़ों की बौछार के बीच दोनों युवक लहूलुहान होकर जमीन पर गिर पड़े. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि मारपीट इतनी तीव्र थी कि चीख-पुकार के बावजूद किसी ने हिंसा रोकने की कोशिश नहीं की.
सूचना पाकर चलगली थाना प्रभारी अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और भीड़ को तितर-बितर किया. घायलों को तुरंत वाड्रफनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) ले जाया गया. डॉक्टरों ने बताया कि दोनों की हालत गंभीर है और उन्हें बेहतर इलाज के लिए रेफर करने की तैयारी की जा रही है. फिलहाल दोनों पुलिस की निगरानी में हैं. थाना प्रभारी ने स्पष्ट कहा कि यह मामला दो तरफा है, यदि घायल युवक बकरी चोरी के दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, लेकिन साथ ही हिंसा में शामिल ग्रामीणों को भी बख्शा नहीं जाएगा. हम हर पहलू से जांच कर रहे हैं, कानून को हाथ में लेने का किसी को अधिकार नहीं है, उन्होंने कहा.
पुलिस सूत्रों के अनुसार, बलरामपुर जिले में पिछले छह महीनों में चोरी के संदेह पर कम से कम पांच मामले ऐसे सामने आए हैं, जिनमें संदिग्धों को पुलिस के हवाले करने की बजाय भीड़ ने खुद सजा दी. कई बार बाद में यह भी सामने आया कि जिस पर चोरी का शक जताया गया, वह निर्दोष था, लेकिन तब तक वह गंभीर चोटें खा चुका था. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि गांवों में चोरी की घटनाएं भले बढ़ रही हों, लेकिन ‘भीड़ न्याय’ न तो अपराध को रोकता है और न ही यह असली न्याय है, बल्कि इससे समाज में भय और अविश्वास का माहौल फैलता है.