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‘बाल विवाह पर पाबंदी सभी धर्मों के लिए’, मुस्लिम लड़की के पिता की अर्जी केरल HC से खारिज

केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 देश के सभी नागरिकों पर लागू होता है, वो चाहे किसी धर्म से संबंध रखते हों. कोर्ट ने कहा कि हर भारतीय नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म या स्थान का हो, बाल विवाह निषेध कानून का पालन करने के लिए बाध्य है. जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन (PV Kunhikrishnan) ने कहा कि देश के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की प्राथमिक स्थिति धर्म से ज्यादा अहम है. कोर्ट ने कहा कि नागरिकता प्राइमरी और धर्म सेकेंडरी है.

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हाई कोर्ट ने कहा, “हर भारतीय पहले देश का नागरिक है और उसके बाद ही वह धर्म का सदस्य बनता है. जब अधिनियम 2006 बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाता है, तो यह मुस्लिम पर्सनल लॉ को पीछे छोड़ देता है और इस देश का हर नागरिक 2006 के अधिनियक के अधीन है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो.”

क्या है पूरा मामला?

केरल हाई कोर्ट में एक शख्स ने याचिका दायर की, जिस पर बाल विवाह करवाने का आरोप था. याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने मांग रखी कि बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 10 और 11 के तहत दंडनीय बाल विवाह अपराध करने के आरोप में उसके खिलाफ कार्यवाही रद्द की जाए.

शिकायत कथित तौर पर 30 दिसंबर, 2012 को पलक्कड़ जिले के वडक्कनचेरी में इस्लामी रीति-रिवाजों के मुताबिक आयोजित बाल विवाह से संबंधित है. पहला आरोपी वह पिता है, जिसने अपनी नाबालिग बेटी की शादी दूसरे आरोपी से कर दी. तीसरा और चौथा आरोपी इस्लाम जुमा मस्जिद महल कमेटी के अध्यक्ष और सचिव हैं और पांचवे आरोपी विवाह का गवाह था.

कोर्ट ने बाल विवाह निषेध अधिनियम के उद्देश्य और प्रावधानों पर तफ्सील से चर्चा की और कहा कि अधिनियम की धारा 1(2) के मुताबिक, यह अधिनियम भारत के सभी नागरिकों पर लागू होता है. इसके साथ ही यह विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है.

मजिस्ट्रेट्स से कोर्ट की गुजारिश

कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक और गैर-सरकारी संगठन को बाल विवाह से संबंधित किसी भी जानकारी के बारे में बाल विवाह निषेध अधिकारी या को अदालत को बताना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट बाल विवाह को रोकने के लिए निर्देश जारी कर सकते हैं और अधिनियम की धारा 13 के तहत ऐसी शिकायतों पर कार्रवाई कर सकते हैं.

कोर्ट ने मजिस्ट्रेटों से गुजारिश की कि वे बाल विवाह के बारे में जानकारी मिलने पर स्वतः संज्ञान लेने की अपनी शक्तियों के बारे में सतर्क रहें. राज्य के सभी मजिस्ट्रेटों को बाल विवाह के बारे में कोई विश्वसनीय रिपोर्ट या सूचना मिलने पर संज्ञान लेने के लिए सतर्क रहना चाहिए.

‘जागरूकता फैलाए प्रिंट और विजुअल मीडिया…’

हाई कोर्ट ने आगे कहा कि प्रिंट और विजुअल मीडिया को भी राज्य में बाल विवाह को खत्म करने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए. विजुअल मीडिया को बाल विवाह पर डॉक्यूमेंट्रीज और शो भी ब्रॉडकास्ट करना चाहिए. फिल्मों और टीवी शो में बाल विवाह के निगेटिव नतीजों को दर्शाना चाहिए. विशेषज्ञों, पीड़ितों और कार्यकर्ताओं का इंटरव्यू लेना चाहिए. प्रिंट और विज़ुअल मीडिया, बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने, पब्लिक डिबेट को प्रोत्साहित करने, बाल विवाह को खत्म करने की दिशा में काम करने वाली पहलों का समर्थन और विस्तार करने, सत्ता में बैठे लोगों को कानून और नीतियों को लागू करने के लिए जवाबदेह ठहराने, बाल विवाह से होने वाले शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक नुकसान के बारे में जनता को शिक्षित करने का एक मंच होना चाहिए.

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