अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अवैध तरीके से पहुंचे लोगों को उनके स्वदेश जबरन भेजा जा रहा है. बड़ी संख्या में भारतीयों को भी डिपोर्ट किया जा रहा है. यह मुद्दा देश में लगातार तूल पकड़े हुए है. अमेरिका द्वारा भारतीयों समेत अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने का मुद्दा कलकत्ता हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान चर्चा में तब आया, जब कोर्ट ने जाली पासपोर्ट के साथ भारत में घुसने के आरोप में जेल में बंद बांग्लादेशी दंपति की जमानत याचिका खारिज कर दी.
जस्टिस देबांगसु बसाक और जस्टिस मोहम्मद शब्बर रशीदी की बेंच दुलाल सिल और उनकी पत्नी स्वप्ना सिल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने जमानत के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था. उन्होंने कोर्ट को बताया, “वे साल 2010 में बांग्लादेश से आए और पूर्वी बर्दवान में बस गए. लेकिन उन्हें 13 महीने पहले गिरफ्तार कर लिया गया था और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
HC ने अमेरिका के एक्शन का किया जिक्र
सुनवाई के दौरान भारत से गए अवैध प्रवासियों को अमेरिका से जबरन वापस भेजने की ओर इशारा करते हुए जस्टिस बसाक ने कहा, “क्या आप नहीं देखते कि अवैध रूप से अमेरिका चले गए लोगों को भारत वापस लाया जा रहा है? मैं आपसे कोर्ट को नागरिकता के दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए कहूंगा. मैं आपको तभी जमानत दे सकता हूं.”
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किलों ने उचित अधिकारियों से वास्तविक आधार कार्ड, मतदाता कार्ड और राशन कार्ड प्राप्त किए हैं. वकील ने बताया, “हमें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक आवास भी मिला है.” हालांकि इस दलील से हाई कोर्ट हैरान रह गया.
नकली पासपोर्ट से नहीं आए भारतः दंपति
जस्टिस बसाक ने कहा, “बांग्लादेश से भारत आए लोगों के पास भारत के आधार, वोटर और राशन कार्ड हैं. मुझे नहीं पता कि आप इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल कर रहे हैं या नहीं, लेकिन कई बांग्लादेशी भारत आने के बाद ऐसा करते हैं. जो लोग बांग्लादेशी पासपोर्ट के साथ भारत आए हैं, उनके पास ऐसे सभी दस्तावेज हैं.”
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि बांग्लादेशी दंपति को नागरिकता के दस्तावेज नहीं दिए जा रहे हैं. यह दावा करते हुए कि याचिकाकर्ता वास्तविक भारतीय नागरिक हैं, वकील ने इस आरोप का विरोध किया कि याचिकाकर्ता नकली पासपोर्ट के साथ भारत आया है.
दंपति ने CAA के तहत मांगी नागरिकता
वकील ने कोर्ट के सामने यह दलील भी दी कि चूंकि याचिकाकर्ता हिंदू थे और 31 दिसंबर, 2014 से पहले 2010 में भारत में आ गए थे जो कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत निर्धारित समय सीमा के अंदर है, इसलिए याचिकाकर्ता विदेशी अधिनियम के प्रावधानों के तहत नहीं आएंगे. हालांकि, बेंच ने दंपति की ओर से दी गई दलील को स्वीकार नहीं किया और याचिकाकर्ताओं की जमानत याचिका खारिज कर दी.