बांकेगंज : दिवाली नजदीक आते ही कुम्हारों के घर चाक की रफ्तार तेज हो गई है। इस बार लोगों ने दिवाली पर चाइनीज झालरों और अन्य सजावटी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय किया है और मिट्टी से बने दीयों से इको-फ्रेंडली दिवाली मनाने की तैयारी में हैं.
गोला, बांकेगंज, संसारपुर, मैलानी समेत क्षेत्र में मिट्टी के दीयों से दिवाली मनाने के लिए कुम्हारी कला में माहिर कारीगरों के घरों में चाक की रफ्तार तेज हो गई है इन दिनों सामान्य दीयों से लेकर आकर्षक दीये बनाने का काम तेजी से चल रहा है.
वैसे इस बार बाजार में चाइनीज उत्पादों और बिजली की झालरों के बहिष्कार के आह्वान का असर भी दिखाई पड़ रहा है। लोगों ने अभी से पिछले साल की अपेक्षा अधिक दीयों के ऑर्डर दिए हैं। दीयों की बढ़ी मांग ने कुम्हारी कला के माहिर कारीगरों को अभी से व्यस्त कर दिया है.
कस्बा से सटे कोठीपुर गांव में कुम्हारी कला के माहिर कारीगरों ने कमल प्रजापति, नैतिक, सूरज, अवधेश, किशोरी, गुड्डू आदि ने बताया कि पिछले साल चाइनीज वस्तुओं और बिजली की झालरों के बहिष्कार के चलते दिवाली पर मिट्टी के दीयों की मांग कई गुना बढ़ गई थी. इसके चलते इस साल वह पिछले साल की अपेक्षा दो गुना अधिक मिट्टी के दीये बना रहे हैं। बताया कि सामान्य दीयों के अलावा एक, पांच और सात बत्तियों वाले दीये भी बना रहे हैं.
असली दिवाली तो दीयों की रोशनी से
कस्बा में पर्यावरण प्रेमी और बुद्धिजीवियों विनोद गोयल, हरिकिशन अग्रवाल, रमेश गोयल, गोल्डी गोयल, राहुल माहेश्वरी आदि का कहना है कि असली दिवाली तो दीयों की रोशनी से ही होती है. उनका कहना है कि बारिश के दिनों में होने वाली गंदगी में पैदा हुए कीट दिवाली के दिन घरों की मुंडेर पर जलने वाले दीयों की रोशनी के लालच में उससे निकलने वाली लौ में जलकर मर जाते हैं. दीयों की लौ में बरसाती कीटों के मरने से बीमारियां फैलने का खतरा भी कम हो जाता है। इसके अलावा झालरों के नहीं जलने पर बिजली की भी बचत होती है.