सतना ज़िले के नागौद सिविल अस्पताल से की यह कहानी किसी मेडिकल थ्रिलर से कम नहीं लगती, फर्क बस इतना है कि यहां मरीजों की जान से नहीं बल्कि जेब से खेला गया. आरोप है कि अस्पताल में मौजूद रेडियोग्राफर बाबूलाल कोरी ने मेडिकल जांच को कोर्टरूम की ‘डील टेबल’ बना डाला. घायल युवक राकेश सेन से केस मजबूत करने के नाम पर पहले 10 हज़ार रुपये की मांग की गई, फिर मोलभाव कर सौदा 2 हज़ार पर आकर टिक गया. यानी इंसाफ भी यहां “छूट” और “डिस्काउंट ऑफर” पर उपलब्ध है.
2 हजार की रिश्वत में तय था सौदा !
कहानी की शुरुआत 6 सितंबर से होती है, जब गुनहर निवासी राकेश सेन का एक लोधी परिवार से विवाद हो गया. मामला पुलिस थाने पहुंचा और दोनों पक्षों के खिलाफ केस दर्ज कर मेडिकल जांच के लिए अस्पताल भेजा गया. यहीं पर रेडियोग्राफर बाबूलाल ने अपने ‘खास हुनर’ का प्रदर्शन किया. उसने राकेश से कहा कि वो मेडिकल रिपोर्ट को उसके पक्ष में मोड़ सकता है, बशर्ते 10 हज़ार रुपये की ‘फीस’ अदा की जाए. बाद में काफी मोलभाव के बाद सौदा 2 हज़ार रुपये में तय हुआ.
पैसे नहीं देने पर गुंडों से पिटवाया
लेकिन जब राकेश के पास तत्काल पैसे नहीं थे तो उसने कहा कि वह अपने परिचित विनोद कुशवाहा के जरिए पैसे भिजवाएगा. आरोप है कि बाबूलाल ने दोपहर करीब डेढ़ बजे विनोद को फोन कर अस्पताल बुलाया और रिश्वत के पैसे मांगे. विनोद ने जब साफ कह दिया कि वो गलत तरीके से केस बनाने में मदद नहीं करेगा, तो बात यहीं खत्म नहीं हुई. बल्कि उस पर दबाव बनाया गया और कुछ गुंडों के जरिए पिटाई तक करवा दी गई. सोचिए, अस्पताल जहां मरीजों को राहत मिलनी चाहिए, वहां गवाह और परिचितों का लाठी-डंडों से “इलाज” किया जा रहा है.
शिकायत के बाद सियासत शुरु
इस घटना के बाद पीड़ित विनोद कुशवाहा ने बीएमओ को लिखित शिकायत सौंपी. वहीं कांग्रेस ने भी ज्ञापन देकर इस पूरे प्रकरण पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है. सवाल अब यही है कि स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन इसे सिर्फ एक और कागज़ी शिकायत मानकर ठंडे बस्ते में डाल देगा, या वाकई उस रेडियोग्राफर की ‘रेडियोग्राफी’ कर सच को उजागर करेगा.