बाड़मेर: राजस्थान की मरुस्थलीय पारिस्थितिकी, ग्रामीण जीवन और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक खेजड़ी वृक्ष को बचाने और ओरण भूमि पर लगातार हो रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी को चिट्ठी लिखी है. भाटी ने आगामी विधानसभा सत्र में इस विषय पर विशेष चर्चा करवाने और प्रदेश में शीघ्र ही ‘खेजड़ी संरक्षण कानून’ लागू करने की मांग की है.
लेटर में विधायक भाटी ने लिखा है कि खेजड़ी वृक्ष सदियों से राजस्थान के मरुस्थलीय जीवन का आधार रहा है. यह केवल एक वृक्ष नहीं बल्कि ग्रामीणों की आजीविका, पशुपालन और पारिस्थितिक संतुलन का महत्वपूर्ण स्तंभ है. पशुओं के लिए चारा, सूखा-रोधी क्षमता, भूमि में नमी बनाए रखने और जैव विविधता को संरक्षित करने में खेजड़ी की भूमिका अद्वितीय है. यही कारण है कि 31 अक्टूबर 1983 को इसे राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था.
भाटी ने बताया कि ओरण भूमि और खेजड़ी के वृक्ष केवल पर्यावरणीय दृष्टि से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक व धार्मिक परंपराओं के लिए भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं. कई पीढ़ियों से ग्रामीण समुदायों ने इन वृक्षों और ओरण स्थलों को पवित्र मानकर उनकी रक्षा की है, किंतु आज यह परंपरा सरकारी लापरवाही और औद्योगिक गतिविधियों की भेंट चढ़ती जा रही है.
विधायक भाटी ने अपने पत्र में उल्लेख किया कि बीते वर्षों में सौर ऊर्जा कंपनियों और अन्य औद्योगिक परियोजनाओं के विस्तार के चलते खेजड़ी वृक्षों की बड़े पैमाने पर अवैध कटाई हुई है. केवल जैसलमेर और बीकानेर जिलों में हजारों पेड़ काटे जाने से न केवल पर्यावरणीय संकट गहराया है बल्कि भूजल स्तर भी खतरनाक स्तर तक गिर चुका है. उन्होंने कहा कि एक सोलर प्लांट के निर्माण से लगभग 26 वर्ग किलोमीटर भूमि पर हजारों खेजड़ी वृक्षों को समाप्त कर दिया गया. इससे क्षेत्र की पारिस्थितिक संरचना पर गंभीर खतरा उत्पन्न हुआ है और स्थानीय निवासियों को पशुओं के चारे, ईंधन व प्राकृतिक संसाधनों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है.
विधायक भाटी ने लिखा- खेजड़ी केवल पर्यावरणीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी प्रदेश की आत्मा से जुड़ी है. बिश्नोई समाज के अमर शहीदों की बलिदान गाथा से लेकर ग्रामीणों की आस्था तक खेजड़ी वृक्ष हमेशा संरक्षण और समर्पण का प्रतीक रहा है. परंतु आज अंधाधुंध कटाई, ओरण भूमि पर अतिक्रमण और सौर कंपनियों की मनमानी गतिविधियों के कारण यह सांस्कृतिक धरोहर भी मिटने के कगार पर है.
अपने पत्र में विधायक भाटी ने स्पष्ट किया कि केवल प्रशासनिक आदेश या अस्थायी उपाय इस समस्या का हल नहीं हैं. इसके लिए विधानसभा द्वारा ‘खेजड़ी संरक्षण कानून’ लागू करना अनिवार्य है, ताकि अवैध कटाई और अतिक्रमण पर कठोर दंड का प्रावधान हो सके. वृक्षों की सुरक्षा के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जा सके.
भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं आवश्यक हैं, लेकिन इन्हें पर्यावरणीय और सामाजिक संतुलन को नष्ट करके नहीं चलाया जा सकता. इसलिए हर परियोजना से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और स्थानीय समुदाय की सहमति अनिवार्य की जानी चाहिए.