कोरबा: मड़वारानी पहाड़ और आसपास की छोटी पहाड़ियों से बहकर बरसात का पानी पूरी तरह से बर्बाद हो जाता था. गांव तिलाईडांड, महोरा और चकोरा जैसे गांव के खेत सूखे रह जाते थे. यह क्षेत्र सरकारी रिकॉर्ड में भी असंचित और सूखाग्रस्त था. जमीन बंजर थी. किसान चाहकर भी यहां कोई फसल नहीं उगा पा रहे थे, ऐसे में एक रिटायर्ड शिक्षक ने जमीनों की तकदीर बदलने की ठानी. गांव में वाटरशेड समिति का गठन किया और खुद इसके अध्यक्ष का दायित्व संभाला.
दोहरी फसल ले रहे किसान: पहाड़ से बहकर पानी को रोकने के लिए नाले बनाए, पानी को स्टोर किया. इन ग्रामीणों के काम को देखकर नाबार्ड ने वाटरशेड समिति के प्रस्ताव को हरी झंडी दी. वित्तीय सहायता भी दी. अब गांव में स्टॉप डैम बन गया है. जो खत कभी बंजर हुआ करते थे, अब वह उपजाऊ बन चुके हैं. किसान यहां अब दोहरी फसल ले रहे उग रहे हैं.
2016-17 में हुई शुरुआत: गांव में इस बदलाव की शुरुआत 2016-17 में हुई. लगभग 8 वर्षों से शिक्षक नंदलाल गांव में बनी वाटरशेड समिति के अध्यक्ष हैं. गांव सूखाग्रस्त था, जमीन बंजर थी. जिसे उपजाऊ बनाने के लिए मिट्टी के मेढ़ और नाले का निर्माण किया गया.
नाबार्ड ने की मदद: दरअसल नाबार्ड ग्रामीणों की सहायता तभी करती है, जब वहां कोई समिति काम करे और वह समिति पूरी तरह से एक्टिव रहे. किसान समिति बनाकर खुद ही श्रमदान करने के लिए सक्षम हों और जिम्मेदारी से काम करें. गांव में रिटायर्ड शिक्षक ने सामाजिक संस्थाओं की सहायता से समिति का निर्माण किया. ग्रामीणों को और किसानों को एकजुट किया. श्रमदान करने के बाद प्रस्ताव नाबार्ड को भेजा गया. ग्रामीणों के काम को देखकर नाबार्ड ने 100 हेक्टेयर को संचित करने की स्वीकृति दी.
चार गांव के किसान हो रहे लाभांवित: गांव तिलाईडांड में स्टाप डैम बनने के बाद अब यहां के आसपास के गांव को भी सिंचाई की सुविधा मिल रही है. तिलाईडांड की वाटरशेड समिति में करताना ब्लॉक के गांव माहोरा, चकोरा और चिचोली भी शामिल हैं, जहां जल ग्रहण योजना के काम प्रस्तावित हैं. फिलहाल तिलाईडांड के लगभग 70 एकड़ खेत संचित हो चुके हैं.
किसान अब अपने खेत में किसी न किसी फसल को उगा रहे हैं. किसी किसान ने अपने खेत में धान उगाए हैं, जो अब पकने के कगार पर है. एक समय था जब इस समय तक धान सूख जाते थे, या पैदा ही नहीं होते थे. धान के साथ ही किसानों ने टमाटर, भिंडी और करेले के सब्जी भी उगाया है. खेतों में सिंचाई की सुविधा मिलने से किसान अब समृद्धि की तरफ बढ़ रहे हैं.
आसपास के गांव में भी इस तरह का डैम बनाने की योजना: किसानों के समूह से जुड़कर काम करने वाले एनजीओ के फील्ड मैनेजर दिनेश कुमार चंद्राकर कहते हैं कि ”पहले मड़वारानी पहाड़ से बहकर आने वाला पानी बर्बाद हो जाता था. ग्रामीण पहले मिट्टी का अस्थाई मेढ़ बनाते थे, जो बरसात में टूट जाता था. इसके बाद ग्रामीणों ने वाटर शेड समिति बनाई, जिनका काम और समर्पण देख नाबार्ड ने भी वित्तीय सहायता की.”
बदली तस्वीर: दिनेश कुमार चंद्राकर ने बताया कि नाबार्ड की वित्तीय सहायता के बाद गांव में स्टॉप डैम का निर्माण हुआ. अब यहां बरसात का पानी स्टोर हो रहा है. किसान सिंचाई की सुविधा ले रहे हैं. लगभग 70 एकड़ खेत में किसान धान के साथ ही सब्जी भी लगा रहे हैं. वह दो फसल एक साथ ले रहे हैं. आने वाले समय में आसपास के और भी गांव में इस तरह के स्टॉप डैम बनाने की योजना है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसके लाभ मिल सके.
पानी रोका तो अब बंजर जमीन भी हो गई उपजाऊ: गांव तिलाईडांड में किसानों के वाटरशेड समिति के अध्यक्ष रिटायर्ड शिक्षक नंदलाल बिंझवार कहते हैं कि ”गांव की जमीन पहले बंजर हुआ करती थी. किसान चाहकर भी फसल नहीं उगा पा रहे थे. हमने बरसात के पानी को रोकने की शुरुआत की. खेत में मेढ़ बनाए लेकिन, पहाड़ से बहकर आने वाले पानी को नाला बनाकर स्टोर किया. हमारे काम को देखकर नाबार्ड के जल ग्रहण समिति से हमें वित्तीय सहायता भी मिली.